लट्ठमार होली बृज का एक स्थानीय उत्सव है. मथुरा के निकटवर्ती शहरों बरसाना और नंदगाँव में होली से कुछ दिन पहले इसका आयोजन होता है. लट्ठमार होली का आनंद उठाने हर साल हजारों देशी और विदेशी पर्यटक उस स्थान पर जुटते हैं और इस उत्सव का भरपूर मज़ा उठाते हैं.
क्या है लट्ठमार होली
जैसा कि लट्ठमार नाम से ही पता चलता है कि इस नाम का अर्थ है “लट्ठ की होली”, इस होली की रस्म को शहर के लिए मुख्य आकर्षण के रूप में देखा जाता है. यह उत्सव बरसाना के राधा रानी मंदिर में होता है, कथित तौर पर देवी राधा को समर्पित होली का एकमात्र मंदिर है. लट्ठमार होली उत्सव एक सप्ताह से अधिक समय तक चलता है, जहां प्रतिभागी नृत्य करते हैं, गाते हैं और कुछ थंडाई पीते हुए रंग में डूब जाते हैं. आइए जानें इस लठमार होली के पीछे की पूरी परंपरा और इससे जुड़ी कुछ ख़ास बातों के बारे में.
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लट्ठमार होली कहां मनाते है
बरसाना और नंदगाँव में लठमार होली मनाई जाती है. बरसाना में राधा रानी मंदिर परिसर उत्सव का स्थल बन जाता है. पहले दिन नंदगांव के पुरुष बरसाना में होली खेलने आते हैं. दूसरे दिन बरसाना के पुरुष नंदगांव जाते हैं.
क्या है पौराणिक कथा
पौराणिक कथाओं के अनुसार वृंदावन में भगवान कृष्ण राधा और अन्य गोपियों के साथ रंगों के इस त्योहार को खेलते थे। मथुरा से 42 किलोमीटर दूर एक गाँव राधा की जन्मस्थली बरसाना में श्री कृष्ण की विशेष रुचि थी और वो वृन्दावन से बरसाना, होली समारोह के लिए आते थे। तभी से चली आ रही प्रथा के अनुसार कृष्ण की भूमि नंदगाँव के पुरुष आज भी बरसाना की महिलाओं के साथ होली खेलने आते हैं और श्री राधिकाजी के मंदिर पर अपना झंडा बुलंद करते हैं. लेकिन, आज के दौर में रंगों के बजाय वृन्दावन के पुरुषों को गोपियों द्वारा लाठी से अभिवादन किया जाता है. इसलिए, होली को यहां एक नया नाम मिलता है-लट्ठमार होली.
लट्ठमार होली का महत्व
लट्ठमार होली में, महिलाएं एक लट्ठ ले जाती हैं और इसका इस्तेमाल उन पुरुषों को मारने के लिए करती हैं, जो उन पर रंग डालने की कोशिश करते हैं. होली के कुछ दिन पहले होने वाली इस उत्सव को देखने के लिए बहुत से लोग इकट्ठा होते हैं. यहाँ महिलाएँ कुछ लोक गीत गाते हुए पुरुषों को पीटने की कोशिश करती हैं और राधा और कृष्ण को याद करती हैं. इस दिन पुरुष ख़ुशी -ख़ुशी लाठियों का वार सहन करते हैं और ये पुरुषों पर महिलाओं की जीत के प्रतीक की तरह काम करता है. मान्यताओं के अनुसार नंदगाँव के पुरुष हर साल बरसाना शहर आते हैं और उनका अभिवादन वहां की महिलाओं की लाठी से किया जाता है. महिलाएं पुरुषों पर लाठी मारती हैं, जो जितना हो सके खुद को बचाने की कोशिश करते हैं. इसके लिए वो एक ढाल का इस्तेमाल भी करते हैं.
पुरुष करते हैं महिलाओं का रूप धारण
बरसाने की लठमार होली के दौरान पुरुषों पर उत्साही महिलाओं द्वारा कब्जा कर लिया जाता है,तब पुरुषों को महिलाओं के कपड़े पहनने पड़ते हैं और सार्वजनिक रूप से नृत्य करना पड़ता है. यह उत्सव बरसाना में राधा रानी मंदिर के विशाल परिसर में होता है, जिसे देश का एकमात्र मंदिर कहा जाता है जो राधा जी को समर्पित है. बृज में होली उत्सव एक सप्ताह से अधिक समय तक चलता है, जहाँ कई पुरुष प्रतिभागी नृत्य करते हैं, गाते हैं और अपने आप को रंग में डुबोते हैं.
इस प्रकार होली बरसाने में बड़ी ही धूम-धाम से कई दिनों तक मनाई जाती है और वहां के स्थानीय लोग ही नहीं बल्कि दूर-दूर से लोग इस होली का मज़ा उठाने आते हैं.
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