श्रीमदभगवत गीता को केवल धार्मिक पुस्तक नहीं कहा जा सकता बल्कि गीता में लिखी हुई बातें आज के युग में भी प्रासंगिक है. गीता हमें लाइफ मैनेजमेंट की कई बातें सिखाती हैं, जिसे फॉलो करके हम अपनी संघर्षॉ से भरी जिंदगी में चुनौती को पार करके सफल हो सकते हैं।
जीवन में ऐसे आएगी खुशहाली
श्रीकृष्ण कर्म से सिद्धि होने की बात अर्जुन को बताते हैं लेकिन साथ ही यह भी कहते हैं कि कर्म करते समय हमारे भाव हमेशा अनासक्त होने चाहिए यानी उसमें प्रतिफल की कामना नहीं होनी चाहिए। कर्म करने के बाद फल की प्राप्ति की चिंता अपने ऊपर न लेकर प्रभु पर छोड़ दीजिए। इस बात को हम अपने पारिवारिक और सामाजिक जीवन पर लागू करके अपने जीवन में खुशियां भर सकते हैं। इससे कार्य के सफल और असफल होने पर आपको कष्ट नहीं होग और रिश्तों में मधुरता बनी रहेगी।
कर्म के बिना कुछ भी संभव नहीं
गीता के तीसरे अध्याय में भगवान कृष्ण अर्जुन को कर्म का महत्व बताते हुए कहते हैं, हे अर्जुन! मैं स्वयं नारायण का अंश हूं और मेरे लिए कोई कर्म बाकी नहीं है लेकिन फिर भी मैं बिना आलस किए कर्म करता रहता हूं क्योंकि प्रकृति मनुष्य को कर्म करने के लिए बाध्य करती है। कर्म के बिना जीवन शून्य है। हम इस बात को वर्तमान जीवन में अपने नौकरी और व्यवसाय से जोड़कर देख सकते हैं।कर्तव्य पालन से मिलती है।
यह भी पढ़ें-गीता ज्ञान: इस घटना के बाद शुरू हुई श्रीमद भागवत कथा सुनने की परंपरा
कर्तव्य पालन से मिलती है शांति
कृष्ण भगवान गीता में कहते हैं कि जब तक मनुष्य के मन में कोई भी कामना या इच्छा रहती है तब तक उसे शांति नहीं मिल सकती। हम जो कर्म करते हैं उसके साथ अपेक्षित परिणाम को साथ में देखने लगते हैं। अपनी पसंद के परिणाम की इच्छा हमें दिन पर दिन कमजोर करने लगती है। मन में ममता या अहंकार आदि भावों को मिटाकर तन्मयता से कर्तव्यों का पालन करने से ही शांति मिलती है।
आगे बढ़ने के लिए अपनाएं यह तरीका
गीता के बारहवें अध्याय में भगवान श्रीकृष्ण ने भक्ति के रूप और महत्व का वर्णन किया है। श्रीकृष्ण कहते हैं कि जो व्यक्ति स्थिर मन के साथ मेरे सगुण स्वरूप की भक्ति करता है, वह मुझे अवश्य प्राप्त कर लेता है। एकाग्र मन के साथ भगवान की इस भक्ति को आप आज के जीवन में ध्यान के महत्व की तरह समझ सकते हैं। जब मन एकाग्र होता है, तब लक्ष्य स्पष्ट रूप से दिखाई देते हैं।
अपने–अपने धर्म का करें पालन
श्रीकृष्ण कहते हैं कि हर मनुष्य को अपने-अपने धर्म का पालन करते हुए कर्म करना चाहिए। जैसे- विद्यार्थी का धर्म है विद्या को प्राप्त करना, सैनिक का कर्म है देश की रक्षा करना, जो लोग कर्म नहीं करते, उनसे श्रेष्ठ वे लोग होते हैं जो कर्म करते हैं, क्योंकि बिना कर्म किए तो शरीर का पालन-पोषण संभव नहीं होता है। जिस व्यक्ति का जो कर्तव्य निर्धारित किया गया है उसका पालन करते रहना चाहिए।