Lithuania सरकार ने की देसंविवि के Students को छात्रवृत्ति की संस्तुति
- देसंविवि की उपलब्धियों में एक और नया अध्याय
- देसंविवि में स्थापित है एशिया के प्रथम बाल्टिक केंद्र
हरिद्वार, लिथुआनिया के शिक्षा मंत्रालय ने देवसंस्कृति विश्वविद्यालय के करीब चालीस विद्यार्थियों को स्कालरशिप के अंतर्गत अध्ययनके लिए बुलावा भेजा है। देसंविवि के लिए यह पहला मौका है कि विवि के इतनी बड़ी संख्या में विद्यार्थी एक साथस्कालरशिप के तहत किसी दूसरे देश में पढ़ाई करेंगे।
चयनित विद्यार्थी वहाँ बाल्टिक संस्कृति सहित विभिन्न विषयों परअध्ययन करेंगे। इस आशय को लेकर बाल्टिक देश के लिथुआनिया के शिक्षा मंत्रायल ने संस्तृति पत्र जारी किया है। देसंविविके प्रतिकुलपति डॉ. चिन्मय पण्ड्या ने इस बात की पुष्टि की है। हरे समुद्र के निकट बसे बाल्टिक देशों के लात्विया, एस्टोनिया एवं लिथुआनिया में अन्य संस्कृतियों के प्रति जिज्ञासा होने केकारण एशिया में सांस्कृतिक अध्ययन केन्द्र के आरंभ को संबंधित राष्ट्रों द्वारा आशाभरी नजरों के देखा जा रहा है।
इसके अंतर्गत अगस्त 2016 में देवभूमि उत्तराखण्ड के देवसंस्कृति विश्वविद्यालय में एशिया के प्रथम बाल्टिक केंद्र का शुभारंभ किया गया।उल्लेखनीय है कि शुभारंभ के अवसर पर लात्विया के राजदूत एवरिस ग्रोजा, एस्टोनिया के राजदूत रिहोक्रुव, लिथुआनिया केराजदूत लेमोनासतलतकेल्प्सा एवं लात्विया विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. इनाद्रुविते एवं उत्तराखण्ड के राज्यपाल डॉ. के. के. पॉल, देविविवि के कुलाधिपति डॉ. प्रणव पण्डया आदि प्रमुख रूप से उपस्थित थे।
प्रतिकुलपति डॉ. चिन्मय पण्ड्या ने बताया कि विश्वविद्यालय शांतिकुंज के बाल्टिक संस्कृति एवं अध्ययन केंद्र को अधिकृतरूप से मान्यता प्रदान की गयी है जिसके अंतर्गत लिथुआनिया सरकार द्वारा देसंविवि के करीब चालीस विद्यार्थियों कोलिथुआनिया देश में स्थित विभिन्न शैक्षणिक संस्थानों में परस्पर सांस्कृतिक समानता संबंधी अध्ययन हेतु छात्रवृत्ति की मंजूरीप्रदान की गयी है।
उन्होंने बताया कि विवि का यह केंद्र भारत और बाल्टिक देशों की सांस्कृतिक गतिविधियों को बढ़ावा देने केलिए तैयार किया गया है। वर्तमान में इस केंद्र द्वारा संस्कृति के विभिन्न आयामों पर शोध कार्य, प्रोजेक्ट कार्य, कार्यशालाआदि के माध्यम से सांस्कृतिक गतिविधियों व क्रियाकलापों पर नए-नए शोधकार्य किए जा रहे हैं। प्रतिकुलपति ने बताया किइसके माध्यम से सांस्कृतिक संवाद की नवीन शोधों से ही समाज व युवा पीढ़ी को नई दिशा मिल सकेगी।