महाभारत की प्रेमकथाएं
महाभारत में चौदह प्रेमकथाएं उपलब्ध हैं, सभी प्रेमकथाओं में किसी (कन्या अथवा कुमार) ने समाज की अथवा माता-पिता की भावना को आहत नहीं किया तथा शास्त्र की मर्यादा का भी उल्लंघन नहीं किया। माता-पिता की अनुमति मिली तो विवाह कर लिया, नहीं तो नहीं किया। आजकल के प्रेमीजन भी उनसे शिक्षा ले सकते हैं।
नल ने दमयन्ती के तथा दमयन्ती को नल के रूप व गुणों को सुना, प्रत्यक्ष मिले बिना ही उन दोनों परस्पर प्रेम हो गया। दमयन्ती ने नल का स्वयम्वर में वरण कर लिया तथा इनका परस्पर विवाह हो गया ।
शाल्व व अम्बा भी विवाह से पूर्व परस्पर प्रेम करते थे, परस्पर मिलकर विवाह का निश्चय भी कर लिया था, किन्तु भीष्म ने अम्बा का अन्य दो बहनों के साथ ही अपहरण कर लिया तथा इनका विवाह नहीं हो सका ।
तृतीय प्रेमकथा देवगुरु बृहस्पति के पुत्र कच व शुक्राचार्य पुत्री देवयानी की है, जो एकपक्षीय है, कच से देवयानी प्रेम करती थी, कच उसको गुरुपुत्री मानता था । उनका परस्पर विवाह नहीं हो सका था ।
ये तीनों प्रेमकथायें किशोर अवस्था की है, अन्य सभी एकादश प्रेमकथायें यौवन की है । यौवन में दृष्टि मिली व प्रेम हो गया ।
रुरु का प्रमद्वरा से, पुलोमा राक्षस का भृगु ऋषि की पत्नी व च्वयन ऋषि की जननी पुलोमा से, दुष्यन्त का शकुन्तला से, उलूपी का अर्जुन से, अर्जुन का सुभद्रा तथा चित्राङ्गदा से, महर्षि च्यवन का सुकन्या से, सावित्री का सत्यवान से, देवयानी का कच से तथा कच के द्वारा स्वीकार न किये जाने के पश्चात् ययाति से, हिडिम्बा का भीम से तथा कुरुवंशी राजा संवरण का सूर्यपुत्री तपती से प्रथम दृष्टि में ही प्रेम हो गया था। प्रेम तो संसार में सभी युगों व कालखंडो में लोग करते रहे हैं, किन्तु प्रेम के लिये मर्यादा का उल्लंघन नहीं करते थे, ऐसा करना कभी किसी को शोभा नहीं देता है ।
- सोमदेव गिरी महाराज (लेखक)