महर्षि चरक जयंती
- आयुर्वेद की विकास यात्रा
- हम सभी को मिलकर आयुर्वेद को पुनर्जीवित करना होगा
25 जुलाई, ऋषिकेश। आयुर्वेद विशारद महर्षि चरक की जयंती के अवसर पर परमार्थ निकेतन के परमाध्यक्ष स्वामी चिदानन्द सरस्वती जी ने कहा कि आयुर्वेद की विकास यात्रा में महर्षि चरक का महत्वपूर्ण योगदान है। महर्षि चरक कुषाण राज्य के राजवैद्य थे। इनके द्वारा रचित चरक दीपजं एक प्रसिद्ध आयुर्वेदिक ग्रन्थ है। इसमें रोगनाशक एवं रोगनिरोधक दवाओं का उल्लेख है साथ ही सोना, चाँदी, लोहा, पारा आदि धातुओं के भस्म एवं उनके उपयोग का वर्णन भी मिलता है। महर्षि चरक की गणना भारतीय औषधि विज्ञान के मूल प्रवर्तकों में होती है। महर्षि चरक की शिक्षा तक्षशिला में हुई थी। उनके द्वारा रचा हुआ ग्रंथ चरक संहिता आज भी आयुर्वेद का अनुपम और अद्वितीय ग्रंथ माना जाता है।
आयुर्वेद, ‘आयु’ और ‘वेद’, दो शब्दों से मिलकर बना है, जिसका अर्थ होता है जीवन विज्ञान व समग्र जीवन पद्धति। इसके अनुसार जीवन का उद्देश्यों है धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष की प्राप्ति के लिये स्वास्थ्य को उत्तम बनाये रखना। आयुर्वेद के अनुसार मानव का स्वास्थ्य उसके सम्पूर्ण व्यवहार यथा सामाजिक, मानसिक तथा आध्यात्मिक पहलुओं से प्रभावित होता हैं।
आयुर्वेद तन, मन और आत्मा के बीच संतुलन स्थापित कर व्यक्ति के स्वास्थ्य एवं जीवनचर्या में सुधार करता है। इसमें न केवल उपचार होता है बल्कि यह जीवन जीने का ऐसा तरीका सिखाता है, जिससे जीवन दीर्घायु, स्वस्थ और खुशहाल हो जाता है। आयुर्वेद का संबंध मानव के शरीर में स्थित वात, पित्त और कफ तीनों मूल कारकों से होता है।
आयुर्वेद, शरीर के भीतर तीनों कारकों के मध्य संतुलन स्थापित करता है। इन तत्वों के संतुलन से मानव शरीर में कोई भी बीमारी नहीं हो सकती, परन्तु इन कारकों के असंतुलन से बीमारियां शरीर पर हावी होने लगती है। इसके अतिरिक्त आयुर्वेद शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाने पर विशेष जोर देता है ताकि मनुष्य सभी प्रकार के रोगों से मुक्त रह सके। इसके माध्यम से विभिन्न रोगों का इलाज हर्बल उपचार, घरेलू उपचार, आयुर्वेदिक दवाओं, आहार-विहार, जीवनचर्या, मालिश, योग और ध्यान के माध्यम से किया जाता है।
प्राचीन चिकित्सा प्रणाली में बीमारियों के इलाज और एक स्वस्थ जीवन शैली के लिये आयुर्वेद को ही सर्वोत्तम स्थान दिया था। वर्तमान समय में वैश्विक महामारी कोविड-19 से लड़ने के लिये तथा शरीर की प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाने के लिये आयुर्वेदिक काढ़ा के उपयोग हेेतु भी भारत सरकार ने जोर दिया है साथ ही अनेक आयुर्वेदिक संस्थाओं ने भी काढ़ा का उपयोग करने की सलाह दी हैै।
स्वामी जी ने सभी से आह्वान किया कि स्वस्थ रहने के लिये आयुर्वेद को अपनायें क्योंकि यह एक समग्र चिकित्साशास्त्र है। यह रोग के प्रबंधन के साथ रोगों की रोकथाम और रोगों को उत्पन्न करने वाले मूल कारणों को भी समाप्त करता है। स्वामी जी ने कहा कि हम सभी को मिलकर आयुर्वेद को पुनर्जीवित करना होगा। उन्होंने कहा कि हमारे पास तो हिमालय के रूप में औषधियोेें का अपार भण्डार है। जो दिव्य औषधियों का खजाना है अतः इन औषधियों का उपयोग करें, इसे वैश्विक स्वरूप प्रदान करे। आत्मनिर्भर भारत के निर्माण में हिमालयी औषधियों का खजाना महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकता है। आईये आयुर्वेद को अपनाये और स्वस्थ जीवन पाये।
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