महात्मा ज्योतिबा फुले 19वी सदी के महान समाज सुधारक, विचारक, दार्शनिक और लेखक थे। उन्होंने भारतीय समाज में फैली अनेक कुरीतियों को दूर कर हिंदू समाज में समरसता लाने का प्रयास किया।
उनके द्वारा किए गए कार्यों से भारतवर्ष में एक नई चेतना का विकास हुआ और समाज के उस तबके को जीने की नई राह मिली जो अभी तक दुनिया के विकास की रोशनी से वंचित था।
वंचितो, शोषितों और समाज में हाशिए पड़े हुए लोगों के उत्थान के लिए उन्होंने कई कल्याणकारी कार्य किए और समाज में अलग-थलग रह रहे लोगो को समाज की मुख्यधारा से जोड़ने का महत्वपूर्ण कार्य किया।
प्रार्थना समाज के थे संस्थापक
महात्मा ज्योतिबा फुले का पूरा नाम ज्योतिराव गोविंदराव फुले था। उनका जन्म 11 अप्रैल 1827 को पूणे में हुआ था। उनके पिता का नाम गोविंदराव फुले और माता का नाम चिमणा बाई था। उनका परिवार सतारा से फूलों के गजरे लाकर बेचने का काम करता था।
7 साल की उम्र में को स्कूल पढ़ने के लिए गए, लेकिन जातिगत भेदभाव की वजह से उनको स्कूल छोड़ना पड़ा। इसलिए उन्होंने घर पर ही रहकर आगे की पढ़ाई पूरी की।
1840 में ज्योतिबा का विवाह सावित्रीबाई से हुआ। उस समय महाराष्ट्र में धार्मिक सुधार आंदोलन अपने चरम पर था। उन्होंने जातिप्रथा का विरोध करते हुए प्रार्थना समाज की स्थापना की। इसके प्रमुख गोविंद रानाडे और आरजी भंडारकर थे।
बालिका शिक्षा के लिए देश का पहला स्कूल खोला
उन्होंने महिला शिक्षा के पक्ष में भी काफी काम किया। 1848 में उन्होंने देश के पहले बालिका स्कूल की स्थापना की थी। जब लड़कियों को पढ़ाने के लिए कोई शिक्षक नहीं मिला तो उन्होंने अपनी पत्नी को इसके लिए तैयार किया।
औऱ इस तरह उनकी पत्नी सावित्री बाई फूले देश की पहली महिला शिक्षिका बनी। इसके बाद लड़कियों को शिक्षा देने के लिए उन्होंने तीन और स्कूल खोले।
1873 में उन्होंने दलित वर्ग के उत्थान और उनको न्याय दिलवाने के लिए ‘सत्य शोधक समाज’ की स्थापना की। उनकी समाजसेवा और वंचितो के लिए उनके द्वारा किए गए कार्यों से प्रभावित होकर उनको 1888 में मुंबई में एक विशाल सभा का आयोजन कर महात्मा की उपाधि दी गई।
वे बाल-विवाह के विरोधी और विधवा-विवाह के कट्टर समर्थक थे। 1854 में उन्होंने उच्च वर्ग की विधवाओं के लिए एक विधवाघर भी बनवाया।
उन्होंने जनविरोधी सरकारी कानून कायदे के खिलाफ भी संघर्ष किया। जिसके कारण सरकार ने एग्रीकल्चर एक्ट पास किया।
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उन्होंने कई पुस्तकें भी लिखी, जिनमें गुलामगिरी, तृतीय रत्न, छत्रपति शिवाजी, राजा भोसला का पखड़ा और किसान का कोड़ा प्रमुख है।
ज्योतिबा फुले और सावित्रिबाई को कोई संतान नहीं थी इसलिए उन्होंने एक विधवा के बच्चे को गोद लिया था,जो उनके समाजसेवा के काम को आगे बढ़ाने के लिए डॉक्टर बना।
1888 से ज्योतिबा फूले का स्वास्थ्य ठीक नहीं रहता था। उनको लकवे का अटैक आया था। 28 नवम्बर 1890 को हिंदुस्तानी समाज को नई दिशा देने वाले इस महात्मा का निधन हो गया।
लेकिन उनके द्वारा किए गए कार्य आज भी समाज में मिसाल बने हुए हैं और उनके बताए गए मार्ग पर चलकर ही समाज आज प्रगति कर रहा है।
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