मकर संक्रांति क्या है ? खगोलीय विवेचना
- अभिलाषा द्विवेदी
मकर या कैप्रिकॉर्न (Capricorn या Capricornus) तारामंडल राशिचक्र का एक तारामंडल है। पुरानी खगोलशास्त्रिय पुस्तकों में इसे अक्सर एक सींगों वाले बकरे के रूप में या एक ऐसे जीव के रूप में जो आधा बकरा और एक शार्क मछली हो दर्शाया जाता था। आकाश में इसके पश्चिम में धनु तारामंडल होता है और इसके पूर्व में कुम्भ तारामंडल। दूसरी शताब्दी ईसवी में टॉलमी ने जिन 48 तारामंडलों की सूची बनाई थी यह उनमें से एक है और अंतर्राष्ट्रीय खगोलीय संघ द्वारा जारी की गई ८८ तारामंडलों की सूची में भी यह शामिल है। मकर तारामंडल आकाश में काफ़ी धुंधला नज़र आता है और कर्क तारामंडल के बाद राशिचक्र का दूसरा सब से धुंधला तारामंडल है।
राशि का अर्थ पुंज समूह से है, गणित में ✖ भाग ➗ की संख्या यानी विभाजित की जाने वाली संख्या को भी राशि कहते हैं। तो खगोलिय अध्ययन में जहां तक के पिण्ड, पुंज समूह पृथ्वी पर अपना प्रभाव डालते हैं, उन्हें कृत्रिम रेखाओं के माध्यम से विभाजित किया गया है। जो कुछ विशिष्ट कारणों से बारह भागों में विभाजित है। इन्हें भी राशि कहते हैं। जिसमें से मकर दसवीं राशि है।
मकर रेखा (Tropic of Capricorn) रेखा पृथ्वी के दक्षिणी गोलार्ध में भूमध्य रेखा के समानान्तर 23 डिग्री 26′ 22″ दक्षिण अक्षांश पर, ग्लोब पर पश्चिम से पूर्व की ओर खींची गई एक कल्पनिक रेखा हैं। २२ दिसम्बर को सूर्य मकर रेखा पर लम्बवत चमकता है। मकर रेखा या दक्षिणी गोलार्ध पाँच प्रमुख अक्षांश रेखाओं में से एक हैं जो पृथ्वी के मानचित्र पर परिलक्षित होती हैं। मकर रेखा पृथ्वी की दक्षिणतम अक्षांश रेखा हैं, जिसपर सूर्य दोपहर के समय लम्बवत चमकता हैं। यह घटना दिसंबर संक्रांति के समय होती हैं। जब दक्षिणी गोलार्ध सूर्य के समकक्ष अत्यधिक झुक जाता है। उत्तरी गोलार्ध में कर्क रेखा उसी भांति है, जैसे दक्षिणी गोलार्ध में मकर रेखा। मकर रेखा के दक्षिण में स्थित अक्षांश, दक्षिण शीतोष्ण क्षेत्र मे आते हैं। मकर रेखा के उत्तर तथा कर्क रेखा के दक्षिण मे स्थित क्षेत्र उष्णकटिबन्ध कहलाता है।
यह काल मौसम में बदलाव का है। बदलाव के समय विशेष सावधानी बरतनी चाहिए। इस समय सूर्य दक्षिणायन से उत्तरायन में प्रवेश करता है। इसलिए स्वस्थ्य बने रहने के लिए गर्म पानी का प्रयोग सर्वोत्तम रहता है। गरिष्ठ भोजन करने से बचें और हल्का-फुलका भोजन करें। यही कारण है कि सुपाच्य दही चूड़ा और खिचड़ी खाने का नियम बनाया गया। कैल्शियम से भरपूर तिल और लौह तत्व से परिपूर्ण गुड़ व घी से बने खाद्य पदार्थों का सेवन इस दौरान करना अच्छा माना जाता है।
हमें जानना चाहिए कि Tropic ट्रोपिक शब्द ग्रीक से आया है (τροπικός) और “बैक” का अर्थ है। खगोलीय क्षेत्र में, ट्रॉपिक शब्द का उपयोग उत्तर (कर्क का कर्क रेखा) और पृथ्वी के दक्षिण में (मकर रेखा) से अधिक अक्षांशों को नामित करने के लिए किया जाता है, जिस पर सूर्य आंचल तक पहुंच सकता है, अर्थात इसकी अधिक ऊंचाई। आकाश में.
इसका मतलब यह है कि, वर्ष के एक निश्चित समय में, सूर्य पूरी तरह से पृथ्वी की सतह पर लंबवत रूप से मकर रेखा के हालात से प्रभावित होता है। घटना को संक्रांति कहा जाता है।
मकर रेखा के ट्रॉपिक के नाम की उत्पत्ति लगभग 2000 साल पहले से है। जब शास्त्रीय पुरातनता में, दक्षिणी गोलार्ध में संक्रांति देखी गई, तो सूर्य मकर राशि के नक्षत्र में था, इसलिए उसका नाम मकर संक्रांति कहा गया। पारंपरिक नाम सदियों से आज तक कायम है.
मकर रेखा (Tropic of Capricorn) एक अक्षांश से जुड़ा एक समानांतर है जिसकी शास्त्रीय प्राचीनता के बाद भी काफी प्रासंगिकता रही है। इस ट्रॉपिक द्वारा चिह्नित पृथ्वी के चारों ओर अक्षांश रेखा भूगोल और खगोल विज्ञान जैसे विषयों के लिए मौलिक है। दोनों ही विज्ञान प्राकृतिक घटनाओं की एक श्रृंखला का पता लगाने के लिए जैसे कि, मकर के ट्रोपिक (और उत्तरी गोलार्ध में इसके समकक्ष, कैंसर के ट्रॉपिक) द्वारा सीमांकित स्थलीय क्षेत्रों का उपयोग करते हैं। पृथ्वी के अक्षांश में इन स्थितियों की गणना और प्रभाव को समझाने, बताने के लिए पंचांग का निर्माण किया गया था।
हमें जानना चाहिए कि Tropic ट्रोपिक शब्द ग्रीक से आया है (τροπικός) और अर्थ है “पार्श्व भाग” या ‘back’। खगोलीय क्षेत्र में, ट्रॉपिक शब्द का उपयोग उत्तर (कर्क रेखा) और पृथ्वी के दक्षिण में (मकर रेखा) से अधिक अक्षांशों को नामित करने के लिए किया जाता है, जिस पर सूर्य आकाश में इस अधिकतम ऊंचाई पर पहुँच सकता है। इसका मतलब यह है कि, वर्ष के एक निश्चित समय में, सूर्य पूरी तरह से पृथ्वी की सतह पर लंबवत रूप से मकर रेखा के हालात से प्रभावित होता है। घटना को संक्रांति कहा जाता है।
मकर रेखा के ट्रॉपिक के नाम की उत्पत्ति लगभग 2000 साल पहले से है। जब शास्त्रीय पुरातनता में, दक्षिणी गोलार्ध में संक्रांति देखी गई, तो सूर्य मकर राशि के नक्षत्र में था, इसलिए उसका नाम मकर संक्रांति कहा गया। पारंपरिक नाम सदियों से आज तक कायम है।
मकर रेखा (Tropic of Capricorn) एक अक्षांश से जुड़ा एक समानांतर है जिसकी शास्त्रीय प्राचीनता के बाद भी काफी प्रासंगिकता रही है। इस ट्रॉपिक द्वारा चिह्नित पृथ्वी के चारों ओर अक्षांश रेखा भूगोल और खगोल विज्ञान जैसे विषयों के लिए मौलिक है। दोनों ही विज्ञान प्राकृतिक घटनाओं की एक श्रृंखला का पता लगाने के लिए जैसे कि, मकर के ट्रोपिक (और उत्तरी गोलार्ध में इसके समकक्ष, कैंसर के ट्रॉपिक) द्वारा सीमांकित स्थलीय क्षेत्रों का उपयोग करते हैं। पृथ्वी के अक्षांश में इन स्थितियों की गणना और प्रभाव को समझाने, बताने के लिए पंचांग का निर्माण किया गया था।
अब स्पष्ट हो जाना चाहिए कि ज्योतिष विज्ञान का खगोल विज्ञान से क्या अंतर्संबंध है। ज्योतिष से इसके संबंध पर भी चर्चा होती है। इसे भी समझते हैं। ज्योतिष शब्द का निर्माण ‘ज्योति और भविष्य के मेल-जोल से हुआ है, जिसका अर्थ है भविष्य पर ज्योति यानी प्रकाश डालना। इसी प्रकार एस्ट्रॉलजी शब्द का निर्माण ग्रीक भाषा के एस्ट्रोन (Astron) और लॉजिया (logia) के मिलन से हुआ है। एस्ट्रोन का अर्थ है ‘तारा मंडल’ या ‘तारा समूह’ और लॉजिया का अर्थ है अध्ययन।
कुल मिलाकर ज्योतिष या एस्ट्रॉलजी का शाब्दिक अर्थ है आकाशीय पिंडों का मनुष्य के जीवन, मन-मस्तिष्क व व्यवहार पर प्रभाव का अध्ययन और उसके द्वारा भविष्य का अनुमान लगाने की विद्या।
वेदों को भारतीय संस्कृति का मूल माना जाता है। वेद सिर्फ धर्मग्रंथ ही नहीं है, बल्कि वह विज्ञान की प्रथम किताब है, जिसमें फिजिक्स, केमेस्ट्री, मेडिकल साइंस व एस्ट्रॉनमी का विस्तृत वर्णन मिलता है। भारतीय ज्योतिष का प्रथम उल्लेख वेदों में मिलने के कारण इसे वैदिक ज्योतिष भी कहा जाता है।
ज्योतिष अध्ययन का मूल आधार उसके 12 खानें यानी 12 भाव और 12 राशि हैं। हर भाव, खाना या स्थान की एक राशि होती है और हर राशि का एक स्वामी होता है। इसी के आधार पर भूत, भविष्य, वर्तमान के साथ गुण, दोषों, क्षमता, स्वास्थ्य, सफलता, आनंद, शोक इत्यादि तमाम बातों का अध्ययन किया जाता है। प्रत्येक कुंडली में 9 ग्रह इन्ही 12 भावों में विचरते हैं और इन्हीं से निर्मित होती हैं अलग-अलग स्थितियां। इन ग्रहों में मित्र भी हैं और शत्रु भी। इन राशियों में दोस्त भी हैं और दुश्मन भी।
क्या है राशि और क्या है राशिचक्र ?
ब्रह्मांड अनगिनत तारों, ग्रहों, उपग्रहों और पिण्डों से भरा हुआ है। दूर से देखने से तारों के वहां ढेरो समूह हैं, जिनकी अलग-अलग आकृतियां प्रतीत होती हैं। तारों के इन्ही एक-एक झुंड को नक्षत्र कहा जाता है। आकाश मंडल में इस तरह के 27 समूह हैं, जिन्हें 27 नक्षत्र कहते हैं। इन नक्षत्रों के अलग-अलग गुण धर्म हैं। इन 27 नक्षत्रों को 12 भाग यानी नक्षत्रों के छोटे-छोटे समूह में विभाजित किया गया है। यही 12 भाग यानी नक्षत्रों के छोटे-छोटे 12 समूह राशिचक्र कहलाते हैं।
क्या होगी हमारी राशि ?
आकाश मंडल में परिक्रमा करते हुए चंद्रमा हमारे जन्म के समय जिस राशि में होगा, वहीं हमारी राशि कहलाएगी। इस राशि और राशि के स्वामी के स्वभाव और गुण दोषों का हमारे व्यक्तित्व पर पूरा असर होता है। हमारे शुभ और अशुभ या भविष्य का अनुमान लगाने के लिए इसी राशि का प्रयोग होता है। इसे मून साइन या चंद्र राशि भी कहा जाता है। पाश्चात्य ज्योतिष सूर्य राशि को राशि मानते हैं। यानी हमारे जन्म के समय सूर्य जिस राशि में विराजमान हो वही हमारी राशि माना जाएगा। सूर्य राशि से हम बाहरी व्यक्तित्व के बारे में जानकारी प्राप्त करते हैं। पर मन, बुद्धि, घन, सफलता आदि के आकलन के लिए चंद्र राशि ही महत्वपूर्ण है।
लेखक – अभिलाषा द्विवेदी
ईमेल – info.hsft@gmail.com