अप्प दीप भव : अपने प्रकाश से सबको खुशियां दें
- संजीव कृष्ण ठाकुर जी
स्वयं प्रकाश में रहते हुए दूसरों को प्रकाशित करने के पावन पर्व का नाम ही तो दीपावली है।
यह बात तो सर्वमान्य है कि प्रभु श्री राम का आगमन होने वाला था तो पूरा अवध दीपों से भर गया अर्थात जब पूरा अवध दीपों से प्रकाशित हुआ तत्पश्चात उसमें प्रभु श्रीराम का आगमन हुआ।
जिस हृदय रूपी अवध में सत्य, प्रेम और करुणा का दीपक अपना प्रकाश बिखेरता है उस हृदय में माँ जानकी सहित प्रभु श्री राम का आगमन भी अवश्य होता है,भले ही प्रतिक्षा की अवधि 14 वर्ष ही क्यों न हो।
वर्तमान समय में प्रकाश पर्व दीपावली अपने वास्तविक स्वरूप से हटकर केवल बाहरी चकाचौंध तक ही यह पावन पर्व सिमट कर रह गया है। वास्तविकता में दीपावली बाहर के नहीं अपितु भीतर के दीये जला कर अपने हृदय को आलौकित कर उसे प्रभु का निवास स्थान बनाना ही है। हमारे हृदय रुपी अवध में प्रभु का आगमन ही इस मानव देह की परम सार्थकता है।हृदय में प्रभु का आना अर्थात जीवन का दैवीय गुण सम्पन्न हो जाना है।
दीपावली के दिन घर के भीतर और बाहर दोनों जगह दीपक जलाने के पीछे भी बड़ा ही महत्वपूर्ण कारण है। जहां एक तरफ इस दिन घर के भीतर दीपक जलाकर अन्तःकरण को स्वच्छ व निर्मल बनाने का संदेश दिया जाता है तो वही घर के बाहर दीपक जलाकर पर सुख व पर मंगल की कामना करना भी है।
वर्तमान समय में हमारे पर्व अपने मूल स्वरूप से हटकर कई विकृतियाँ उनमें आ चुकी हैं। दीपावली जैसा प्रकाश पर्व अब केवल एक प्रदुषण पर्व बनकर रह गया है। जिस समय पुरी दुनियाँ ग्लोबल वार्मिंग की चपेट में आ गई है उस समय इन पटाखों के शोर और प्रदुषण के बीच यह पर्व मनाना कितना सार्थक है……? इस पर हम सबको मिलकर विचार जरुर करना होगा।
आओ हम सब मिलकर इस दीपावली पर कुछ नया करने का संकल्प लें!
केवल बाहर ही नहीं अपितु हमारा अन्तःकरण भी प्रकाशित हो। केवल दीये की रोशनी ही पडोसियों और असहायों के घर तक न पहुंचे अपितु हमारा प्रेम, स्नेह और सहायता भरे हाथ भी उन तक पहुंचे और इस पावन पर्व पर केवल पटाखे ही न जलाएं अपितु अपने दुर्गुणों को भी हम सब जलाना सीखें।
आओ हम सब मिलकर पुनः संकल्प लें!
इस बार दीपावली के पावन पर्व को प्रकाशयुक्त और प्रदुषण मुक्त बनाने का।
संजीव कृष्ण ठाकुर जी ( भागवताचार्य )
संस्थापक- समर्पण गौशाला गोवर्धन