महालक्ष्मी आवाहन मंत्र – मां लक्ष्मी को दीपावली पर कैसे करें प्रसन्न
- श्री सूक्त महालक्ष्मी की आराधना का वैदिक और प्रभावशाली मंत्र है
- श्री सूक्त ऋग्वेद में ऋषि आनंदकर्दम द्वारा श्री देवता को समर्पित सूक्त है
श्री सूक्त ऋग्वेद में ऋषि आनंदकर्दम द्वारा श्री देवता को समर्पित सूक्त है। इस सूक्त की सोलहवीं ऋचा फलश्रुति है। 17 वीं ऋचा से लेकर 25वीं ऋचा तक मूल सूक्त के प्रभावों को विविध रूप में वर्णन किया गया है। यह ऋचाएं श्रीसूक्त के महान फल की तरफ संकेत करती है। सोलहवीं ऋचा के अनुसार श्रीसूक्त की प्रारंभिक 15 ऋचाएं ही उपासना के लिए प्रयोज्य हैं।
श्री सूक्त महालक्ष्मी की आराधना का वैदिक और प्रभावशाली मंत्र है। इसका उल्लेख ऋग्वेद में हुआ है। ऐसी मान्यता है कि श्रीसूक्त की साधना कभी भी विफल नहीं होती। दीपावली के दिन श्रीसूक्त का पाठ करना विशेष फलदायी माना जाता है। यह दरिद्रता और नैराश्य का नाश करता है। इस सूक्त की ऋ चाओं में से 15 ऋचाओं को मूल ‘श्री-सूक्त’ माना जाता है।
भाग्योदय हेतु श्रीमहा-लक्ष्मी की तीन मास की सरल, व्यय रहित साधना है। ज्योतिषाचार्य पंडित दयानन्द शास्त्री जी बताते हैं कि यह साधना कभी भी ब्राह्म मुहूर्त्त पर प्रारम्भ की जा सकती है। ‘दीपावली’ जैसे महा्पर्व पर यदि यह प्रारम्भ की जाए, तो अति उत्तम।
‘साधना’ हेतु सर्व-प्रथम स्नान आदि के बाद यथा-शक्ति (कम-से-कम १०८ बार) “ॐ ह्रीं सूर्याय नमः” मन्त्र का जप करें। फिर ‘पूहा-स्थान’ में कुल-देवताओं का पूजन कर भगवती श्रीमहा-लक्ष्मी के चित्र या मूर्त्ति का पूजन करे। पूजन में ‘कुंकुम’ महत्त्वपूर्ण है, इसे अवश्य चढ़ाए।
पूजन के पश्चात् माँ की कृपा-प्राप्ति हेतु मन-ही-मन ‘संकल्प करे। फिर विश्व-विख्यात “श्री-सूक्त” का १५ बार पाठ करे। इस प्रकार ‘तीन मास’ उपासना करे। बाद में, नित्य एक बार पाठ करे। विशेष पर्वो पर भगवती का सहस्त्र-नामावली से सांय-काल ‘कुंकुमार्चन’ करे। अनुष्ठान काल में ही अद्भुत परिणाम दिखाई देते हैं। अनुष्ठान पूरा होने पर “भाग्योदय” होता है।
धन की अधिष्ठात्री देवी मां लक्ष्मी जी की शीघ्र कृपा प्राप्ति के लिए ऋग्वेद में वर्णित श्रीसूक्त का पाठ एक ऐसी साधना है जो कभी व्यर्थ नहीं जाती है। महालक्ष्मी की प्रसन्नता के लिए ही शास्त्रों में नवरात्रि, दीपावली या सामान्य दिनों में भी श्रीसूक्त के पाठ का महत्व और विधान बताया गया है l
दरिद्रता और आर्थिंक तंगी से छुटकारे के लिए यह अचूक प्रभावकारी माना जाता है। माँ महालक्ष्मी के आह्वान एवं कृपा प्राप्ति के लिए श्रीसूक्त पाठ की विधि द्वारा आप बिना किसी विशेष व्यय के भक्ति एवं श्रद्धापूर्वक माँ महालक्ष्मी की आराधना करके आत्मिक शांति एवं समृद्धि को स्वयं अनुभव कर सकते हैं।
यदि संस्कृत में मंत्र पाठ संभव न हो तो हिंदी में ही पाठ करें। दीपावली पर्व पांच पर्वों का महोत्सव है। कार्तिक कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी (धनतेरस) से प्रारंभ होकर कार्तिक शुक्ल द्वितीया (भैयादूज) तक पांच दिन चलने वाला दीपावली पर्व धन एवं समृद्धि प्राप्ति, व्यापार वृद्धि ऋण मुक्ति आदि उद्देश्यों की पूर्ति के लिए मनाया जाता है।
श्रीसूक्त का पाठ (महालक्ष्मी आवाहन मंत्र) धन त्रयोदशी से भैयादूज तक पांच दिन संध्या समय किया जाए तो अति उत्तम है। पंडित दयानन्द शास्त्री जी ने बताया कि यह साधना धन त्रयोदशी के दिन गोधूलि वेला में साधक स्वच्छ होकर पूर्वाभिमुख होकर सफेद आसन पर बैठकर करें। अपने सामने लकड़ी की पटरी पर लाल अथवा सफेद कपड़ा बिछाएं। उस पर एक थाली में अष्टगंध अथवा कुमकुम (रोली) से स्वस्तिक चिह्न बनाएं। गुलाब के पुष्प की पत्तियों से थाली सजाएं, संभव हो तो कमल का पुष्प भी रखें। उस गुलाब की पत्तियों से भरी थाली में मां लक्ष्मी एवं विष्णु भगवान का चित्र अथवा मूर्ति रखें। साथ ही थाली में श्रीयंत्र, दक्षिणावर्ती शंख अथवा शालिग्राम में से जो भी वस्तु आपके पास उपलब्ध हो रखें। सुगंधित धूप अथवा गुलाब की अगरबत्ती जलाएं। थाली में शुद्ध गौ घी का एक दीपक भी जरूर जलाएं। खीर अथवा मिश्री का नैवेद्य रखें। तत्पश्चात् निम्नलिखित विधि से श्री सूक्त की ऋचाओं का पाठ करें।
निम्नांकित ऋचाओं से गाय के शुद्ध घी से नियमित हवन करने से अलक्ष्मी (अर्थात दुःख, दरिद्रता की देवी) की अकृपा प्राप्त होती है। इन ऋचाओं में अलक्ष्मी की अकृपा एवं लक्ष्मी की संपूर्ण कृपा की कामना की गई है। जिन व्यक्तियों के जीवन में धन प्राप्ति होकर भी सदैव कर्ज बना रहता है उनके लिए यह सर्वश्रेष्ठ एवं अतिउपयोगी है। जिन व्यक्तियों को धन कभी न रहा हो किंतु रोग आदि की वजह से अन्न न खा सकते हों उनके लिए भी यह सर्वाधिक उपयोगी है।
ज्योतिषाचार्य पंडित दयानन्द शास्त्री जी के अनुसार श्री सूक्त की ऋचाओं से नियमित हवन करने से विभिन्न कष्ट दूर होकर ऐश्वर्य व भोग की प्राप्ति होती है। अलक्ष्मी की अकृपा प्राप्त होने से एक ओर जहाँ दुःख दरिद्रता, रोग, कर्ज से मुक्ति मिलती है, वहीं दूसरी ओर लक्ष्मी की कृपा से भोग की प्राप्ति होती है। महालक्ष्मी आवाहन मंत्र
।। अथ श्रीसूक्तम..।।
ॐ हिरण्यवर्णां हरिणीं सुवर्णरजतस्रजाम्।
चंद्रां हिरण्यमणीं लक्ष्मीं जातवेदो म आवह॥
तां म आवह जातवेदो लक्ष्मीमनपगामिनीम्।
यस्यां हिरण्यं विंदेयं गामश्वं पुरुषानहम्॥
अश्वपूर्वां रथमध्यां हस्तिनादप्रमोदिनीम्।
श्रियं देवीमुपह्वये श्रीर्मा देवी जुषताम्॥
कां सोस्मितां हिरण्यप्राकारामार्द्रां ज्वलंतीं तृप्तां तर्पयंतीम्।
पद्मे स्थितां पद्मवणा तामिहोपह्वये श्रियम्॥
चंद्रां प्रभासां यशसा ज्वलंतीं श्रियं लोके देवजुष्टामुदाराम्।
तां पद्मिनीमीं शरणं प्रपद्ये अलक्ष्मीर्मे नश्यतां त्वां वृणे॥
आदित्यवर्णे तपसोऽधि जातो वनस्पतिस्तव वृक्षोऽथ बिल्वः।
तस्य फलानि तपसानुदन्तु या अंतरा याश्च बाह्या अलक्ष्मीः॥
उपैतु मां देवसखः कीतिश्च मणिना सह।
प्रादुर्भूतोऽस्मि राष्ट्रेऽस्मिन् कीर्तिमृद्धिं ददातु मे॥
क्षुत्पिपासामलां ज्येष्ठामलक्ष्मीं नाशयाम्यहम्।
अभूतिमसमृद्धि च सर्वां निर्णुद से गृहात्॥
गंधद्वारां दुराधर्षां नित्यपुष्टां करीषिणीम्।
ईश्वरीं सर्वभूतानां तामिहोपह्वये श्रियम्।
मनसः काममाकूतिं वाचः सत्यमशीमहि।
पशूनां रूपमन्नस्य मयि श्रीः श्रयतां यशः॥
कर्दमेन प्रजा भूता मयि सम्भव कर्दम।
श्रियं वासय मे कुले मातरं पद्ममालिनीम्॥
आपः सृजन्तु स्निग्धानि चिक्लीत वस मे गृहे।
नि च देवीं मातरं श्रियं वासय मे कुले॥
आर्द्रां पुष्करिणीं पुष्टिं पिंगलां पद्ममालिनीम्।
चंद्रां हिरण्मयीं लक्ष्मीं जातवेदो म आवह॥
आर्द्रां यः करिणीं यष्टिं सुवर्णां हेममालिनीम्।
सूर्यां हिरण्मयीं लक्ष्मीं जातवेदो म आवह ।
तां म आवह जातवेदो लक्ष्मीमनपगामिनीम् ।
यस्यां हिरण्यं प्रभूतं गावो दास्योऽश्वान्
विंदेयं पुरुषानहम् ॥
यः शुचिः प्रयतो भूत्वा जुहुयादाज्यमन्वहम् ।
सूक्तं पंचदशर्च च श्रीकामः सततं जपेत् ॥
॥ इति श्री सूक्तम् संपूर्णम् ॥
सुनिए श्री सूक्तम्
।।स्तुति-पाठ।।
।।ॐ नमो नमः।।
पद्मानने पद्मिनि पद्म-हस्ते पद्म-प्रिये पद्म-दलायताक्षि।
विश्वे-प्रिये विष्णु-मनोनुकूले, त्वत्-पाद-पद्मं मयि सन्निधत्स्व।।
पद्मानने पद्म-उरु, पद्माक्षी पद्म-सम्भवे।
त्वन्मा भजस्व पद्माक्षि, येन सौख्यं लभाम्यहम्।।
अश्व-दायि च गो-दायि, धनदायै महा-धने।
धनं मे जुषतां देवि, सर्व-कामांश्च देहि मे।।
पुत्र-पौत्र-धन-धान्यं, हस्त्यश्वादि-गवे रथम्।
प्रजानां भवति मातः, अयुष्मन्तं करोतु माम्।।
धनमग्निर्धनं वायुर्धनं सूर्यो धनं वसुः।
धनमिन्द्रा वृहस्पतिर्वरुणो धनमश्नुते।।
वैनतेय सोमं पिब, सोमं पिबतु वृत्रहा।
सोमं धनस्य सोमिनो, मह्मं ददातु सोमिनि।।
न क्रोधो न च मात्सर्यं, न लोभो नाशुभा मतीः।
भवन्ती कृत-पुण्यानां, भक्तानां श्री-सूक्तं जपेत्।।
विधि
उक्त महा-मन्त्र के तीन पाठ नित्य करे। ‘पाठ’ के बाद कमल के श्वेत फूल, तिल, मधु, घी, शक्कर, बेल-गूदा मिलाकर बेल की लकड़ी से नित्य १०८ बार हवन करे। ऐसा ६८ दिन करे। इससे मन-वाञ्छित धन प्राप्त होता है।
हवन-मन्त्रः- “ॐ श्रीं ह्रीं महा-लक्ष्म्यै सर्वाभीष्ट सिद्धिदायै स्वाहा।” – महालक्ष्मी आवाहन मंत्र