मन की विशेषताओं को जगाता है ध्यान : डॉ. प्रणव पण्ड्या
- कुलाधिपति ने मन को शान्त करने की बताई विधि
हरिद्वार १३ अप्रैल। आज पूरा समाज शान्ति की खोज में है, दु:ख एक प्रमुख समस्या बन गई है। इसका कारण है भाव सम्वेदना की कमी, बेचैन, अशान्त मन और एकाग्रता की कमी। ध्यान से अपने मन की विशेषताओं को जगाया जा सकता है और देवमानव, महामानव बना जा सकता है।
यह कहना है देवसंस्कृति विश्वविद्यालय के कुलाधिपति एवं गायत्री परिवार प्रमुख डॉ. प्रणव पण्ड्या जी का। वे देवसंस्कृति विश्वविद्यालय के मृत्युंजय सभागार में ध्यान की विशेष कक्षा में बच्चों को मार्गदर्शन दे रहे थे। उन्होंने गीता के द्वितीय अध्याय के श्लोक ६६ का उदाहरण देते हुए कहा कि योगरहित पुरुष की निश्चयात्मिका बुद्धि नहीं होती और उस अयुक्त पुरुष में आत्म विषयक भावना नहीं होती। भावनाहीन मनुष्य को शान्ति नहीं मिलती है और अशान्त मनुष्य को सुख कहाँ मिल सकता है?
उन्होंने कहा कि सुख की प्राप्ति के लिए मनुष्य के अन्दर भाव सम्वेदना का होना जरूरी है। भाव सम्वेदना ही मनुष्य के अन्दर मनुष्यत्व का विकास करती है, मनुष्यत्व से देवत्व की ओर बढऩे में प्रेरित करती है। ध्यान के माध्यम से हम इसी भाव सम्वेदना को जगाने का प्रयास करते हैं।
डॉ. पण्ड्या ने कहा कि नियमित ध्यान करने से मन की विशेष्यताओं को, उनकी शक्तियों को जगाया जा सकता है। ध्यान से जीवन में शान्ति आती है, एकाग्रता का भाव जाग्रत होता है तथा अन्तर्जगत का परिमार्जन होता है। साथ ही कुलाधिपति जी ने मन को शान्त करने की विभिन्न विधियों पर भी प्रकाश डाला।
उल्लेखनीय है कि विद्यार्थियों में शिक्षा के साथ-साथ सुसंस्कारों के समावेश तथा उनमें आध्यात्मिकता की ओर रूझान पैदा कर सार्थक जीवन जीने की दिशा में प्रेरित करने के उद्देश्य से देवसंस्कृति विश्वविद्यालय में प्रति सप्ताह विशेष ध्यान की कक्षा कुलाधिपति जी द्वारा ली जाती है। इससे विद्यार्थी न केवल शिक्षा के क्षेत्र में आगे बढ़ते हैं, बल्कि जीवन जीने की कला के क्षेत्र में भी कुशल बनते हैं।
इसके साथ ही कुलाधिपति डॉ. प्रणव पण्ड्या जी ने विद्यार्थियों की विविध शंकाओं का समाधान भी किया। इससे पूर्व संगीत विभाग के भाईयों ने ध्यान पर विशेष गीत प्रस्तुत किया। इस अवसर पर कुलपति शरद पारधी, प्रतिकुलपति डॉ. चिन्मय पण्ड्या, कुलसचित संदीप कुमार सहित दंवसंस्कृति विश्वविद्यालय के समस्त आचार्य एवं विद्यार्थी उपस्थित थे।