होली 2018 : होलिका दहन, रंगवाली होली का मुहुर्त और कथा
आप सभी को होली की हार्दिक शुभकामनाएं…..
होली वसंत ऋतु में मनाया जाने वाला एक महत्वपूर्ण भारतीय और नेपाली लोगों का त्यौहार है। यह पर्व हिंदू पंचांग के अनुसार फाल्गुन मास की पूर्णिमा को मनाया जाता है। रंगों का त्यौहार कहा जाने वाला यह पर्व पारंपरिक रूप से दो दिन मनाया जाता है। यह प्रमुखता से भारत तथा नेपाल में मनाया जाता है। हिंदुओं के पवित्र त्योहारों में से होली एक प्रमुख त्यौहार है जिसे पुरे भारत में बड़े हर्षोउल्लास के साथ मनाया जाता है। इस पर्व को भी असत्य पर सत्य की विजय के रूप में मनाया जाता है। जहां एक तरफ होली वाले दिन सभी तरह तरह के रंगों में रंगे दिखाई पड़ते है तो वहीं दूसरी तरफ इससे एक दिन पहले होलिका दहन मनाई जाती है, जिसे भक्त प्रह्लाद के विश्वास और उसकी भक्ति के रूप में मनाया जाता है। धार्मिक ग्रंथों के अनुसार होलिका दहन को होलिका दीपक या छोटी होली के नाम से भी जाना जाता है जो होली से एक दिन पहले मनाया जाता है।
यह त्यौहार कई अन्य देशों जिनमें अल्पसंख्यक हिन्दू लोग रहते हैं वहाँ भी धूम-धाम के साथ मनाया जाता है।होली का त्योहार सभी के जीवन में खुशियां और रंग भर देता है। जीवन को रंगीन बनाने के कारण इस पर्व को रंग महोत्सव भी कहा जाता है। होली के त्योहार को एकता और प्यार का प्रतीक भी माना जाता है। यह एक पारंपरिक और सांस्कृतिक हिंदू त्योहार है। परंपरागत रुप से इसे बुराई पर अच्छाई की सफलता का प्रतीक माना जाता है। यह पर्व हिंदुओं का महत्वपूर्ण पर्व माना जाता है, मान्यताओं के अनुसार इस दिन होलिका जलाई जाती है और अगले दिन रंगों से होली खेली जाती है। होलिका दहन के दिन पवित्र अग्नि जलाई जाती है जो बुराई पर अच्छाई की जीत का संकेत है | होली वसंत ऋतु के आने और सर्दियों के जाने का प्रतीक है। यह शुभ दिन फाल्गुन महीने में पूर्णिमा को पड़ता है।
जानिए इस वर्ष फाल्गुन पूर्णिमा 2018 पर कैसे होगा भद्रा और पूर्णिमा के बीच संतुलन
इस बार 1 मार्च को सुबह 8 बजे से पूर्णिमा तिथि लग रही है, लेकिन खास बात ये है कि इस दिन भ्रद्रा भी लग रही है। कहा जाता है कि भद्रा में होलिका दहन नहीं किया जाता है। ऐसे में होलिका दहन फाल्गुन मास की शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा को भद्रा समय को त्याग करने के बाद किया जायेगा। इस वर्ष गुरुवार को पूर्णिमा रात्रि और प्रातकाल 6:30 तक है, मघा नक्षत्र रात्रि 11:45 तक, अतिगंड योग प्रातः काल 7:45 तक इसके बाद सुकर्मा योग और भद्रा प्रातः काल 9:9 से सायं काल 7:51 तक है।
होलिका दहन का शुभ मुहूर्त
राहुकाल दोपहर 1.56 मिनट से 3.24 मिनट दिन
होलिका दहन की पूजा का मुहूर्त दोपहर 12.08 से 12.54
रंगवाली होली
2 मार्च 2018 पूर्णिमा तिथि प्रारंभ : 1 मार्च 2018 को प्रातः 08:57 बजे से पूर्णिमा तिथि समाप्त : 2 मार्च 2018 को प्रातः06:21 बजे तक
ज्योतिषाचार्य पंडित दयानन्द शास्त्री जी ने बताया की ने बताया कि इस बार की होली पर शनि धनु राशि में रहेगा। वहीं 28 वर्षों के बाद शनि देवगुरु बृहस्पति की राशि में है। इससे पहले यह 1990 में योग बना था। होली के साथ बसंत ऋतु का भी आगमन होता है। 2 मार्च 2018 को (शुक्रवार) सूर्योदय दिल्ली में सुबह छह बजकर 53 मिनट पर है। सत्यनारायण व्रत, पूर्ण चंद्रमा की पूजा और पूर्णिमा का व्रत गुरुवार को ही मनाया जाएगा।
होली मिलन, होली का रंग खेलना दो फरवरी दिन शुक्रवार को मनाया जाएगा। क्योंकि शास्त्रों में विधान है कि चैत्र कृष्ण प्रतिपदा में होली खेलनी चाहिए। ऐसा नियम है कि भद्रा काल में होलिका दहन नहीं करना चाहिए इससे अशुभ फल प्राप्त होता है। शाम में 7 बजकर 37 मिनट पर भद्रा समाप्त हो जाएगा इसके बाद से होलिका दहन किया जाना शुभ रहेगा। वैसे शास्त्रों में बताए गए नियमों के अनुसार इस साल होलिका दहन के लिए बहुत ही शुभ स्थिति बनी हुई है।
धर्मसिंधु नामक ग्रंथ के अनुसार होलिका दहन के लिए तीन चीजों का एक साथ होना बहुत ही शुभ होता है। पूर्णिमा तिथि हो, प्रदोष काल हो और भद्रा ना लगा हो। इस साल होलिका दहन पर ये तीनों संयोग बन रहे हैं। इसलिए होली आनंददायक और शुभ रहेगी।
ये होगा होलिका दहन का शुभ महूर्त
1 तारीख को सांयकाल 7:00 बज कर 51 मिनट के बाद क्षेत्र परंपरा के अनुसार होलिका दहन का कार्य किया जाएगा भारत के विभिन्न अंचलों में अपने अपने क्षेत्र परंपरा के अनुसार यह कार्य किया जाएगा। ध्यान रखें भद्रा में होलिका दहन करने से जनसमूह का नाश होता है। प्रतिपदा चतुर्दशी भद्रा और दिन में होलिका जलाना सर्वथा त्याग योग्य है। संयोगवश यदि होलिका जला दी जाए तो वहां के राजा राज नगर और मनुष्य अद्भुत उत्पादों से एक ही वर्ष में हीन हो जाते हैं।
पंडित दयानन्द शास्त्री ने बताया इस वर्ष 2018 होली के दिन फाल्गुन पूर्णिमा होने के साथ ही भद्रा भी लगा रही है। भद्र और प्रतिपदा में होलिका दहन नहीं किया जाता है। भद्रा काल में होलिका दहन करने से अनिष्ट होने का भय रहता है, पर शाम 7 बजकर 40 मिनट पर भद्रा समाप्त हो जाएगी। इसके बाद से होलिका दहन किया जाना शुभ रहेगा। होलिका दहन का मुहूर्त विभिन्न स्थानों पर 1 मार्च को सायंकाल 06 बजकर 30 मिनट से रात्रि 08 बज कर 55 मिनट तक रहेगा। इस तरह से इसी अवधि के भीतर सभी को होलिका की पूजा करनी है।
होलिका दहन मुहूर्त
वर्ष 2018 में होलिका दहन 1 मार्च 2018, बृहस्पतिवार को मनाई जाएगी। जिसके अगले दिन यानी, 2 मार्च 2018, शुक्रवार को रंगवाली होली मनाई जाएगी।
होलिका दहन का शुभ मुहूर्त = 18:26 से 20:55
मुहूर्त की अवधि = 2 घंटे 29 मिनट
भद्रा पूँछ = 15:54 से 16:58
भद्रा मुख = 16:58 से 18:45
रंगवाली होली = 2 मार्च 2018
पूर्णिमा तिथि प्रारंभ = 1 मार्च 2018 को 08:57 बजे से
पूर्णिमा तिथि समाप्त = 2 मार्च 2018 को 06:21 बजे तक
इस तरह करें होलिका की पूजन
होली की पूजा के लिए रोली, कच्चा सूत, चावल, पुष्प, साबुत हल्दी, बतासे, श्रीफल और बुल्ले आदि इकट्ठा कर ले, और एक थाली में समस्त पूजन सामग्री रख ले। साथ ही एक जल का लोटा भी अवश्य रखें। इसके पश्चात होली पूजन के स्थान पर पहुंच करके मंत्र या पूजन करें। सबसे पहले संकल्प लें अपना नाम, पिता का नाम, गोत्र का नाम और चित्र का नाम लेते हुए अक्षत हाथ में उठायें और भगवान गणेश और अंबिका का ध्यान करें और हालिका पर अक्षत अर्पित कर दें। तत्पश्चात भक्त प्रहलाद का नाम ले और पुष्प चढ़ायें। अब भगवान नरसिंह का ध्यान करते हुए पंचोपचार पूजन करें। होली के सम्मुख खड़े हो जाएं और अपने दोनों हाथ जोड़कर मानसिक रूप से समस्त मनोकामनाएं निवेदित करें तत्पश्चात गंध, अक्षत और पुष्प में हल्दी श्रीफल चढ़ायें। कच्चा सूत हाथ में लेकर होलिका पर लपेटते हुए हाथ जोड़कर परिक्रमा करें। अंत में लोटे में भरा जल रही होली का पर चढ़ा दें।
जानिए होली से सम्बंधित कुछ कथाएं
जिसमें से कुछ प्रसिद्ध कथाएं इस प्रकार हैं |कथाएं पौराणिक हो, धार्मिक हो या फिर सामाजिक, सभी कथाओं से कुछ न कुछ संदेश अवश्य मिलता है | इसलिए कथाओं में प्रतिकात्मक रूप से दिए गए संदेशों को अपने जीवन में ढालने का प्रयास करना चाहिए |
इससे व्यक्ति के जीवन को एक नई दिशा प्राप्त हो सकती है |
हिंदू कैलेंडर के अनुसार होली महोत्सव फाल्गुन माह की पूर्णिमा के दिन मनाया जाता है। फाल्गुन को चंद्र मास भी कहा जाता है, इस माह के अंतिम दिन और नए मौसम के स्वागत की खुशी में मनाया जाता है। इसी कारण से इसे मौसमीय त्योहार भी माना जाता है। होली शब्द ‘होला’ से उत्पन्न हुआ है जिसका अर्थ नई फसल प्राप्त करने के लिए भगवान का पूजन। इस दिन नई और स्वस्थ्य फसल पाने के लिए पूजा की जाती है। होली का त्योहार होलिका दहन को भी इंगित करता है। माना जाता है कि जो भक्त प्रहलाद की तरह भगवान के प्रिय हैं उनकी रक्षा होगी और होलिका जैसे पापी हैं उन्हें दंडित किया जाएगा।
होली उमंग और उत्साह का त्योहार माना जाता है, इस दिन भगवान विष्णु के भक्त व्रत करते हैं और होलिकादहन के बाद व्रत पारण करते हैं। पवित्र अग्नि में विष्णु के नास से आहुति दी जाती है। होली का पर्व भारतवर्ष में अति प्राचीनकाल से मनाया जाता आ रहा है। इतिहास की दृष्टि से देखें तो यह वैदिक काल से मनाया जा रहा है। हिंदू मास के अनुसार होली के दिन से नए संवत की शुरुआत होती है। इन सभी कारणों से रंगोत्सव मनाया जाता है। नरसिंह रुप में भगवान विष्णु ने इस दिन अवतार लिया था और हिरण्यकश्यप नामक महासुर वध करके भक्त प्रहलाद को दर्शन दिए थे। रंग लगाकर प्रेम और एकता को बढ़ाया जाता है, इसी कारण से इसे रंगोत्सव का नाम दिया गया है।
होलिका कथा
एक बार महाराज युधिष्ठिर ने भगवान श्री कृष्ण जी से प्रश्न किया कि फाल्गुन मास की पूर्णिमा को होली क्यों जलाई जाती है? और साथ ही उसके दूसरे दिन बसंत ऋतु का आगमन होता है, उस दिन दिन क्या करना चाहिए? भगवान श्री कृष्ण जी ने बताया कि हे पार्थ ! सतयुग में रघु नामक एक शूरवीर सर्वगुण संपन्न दानी राजा थे. उनके राज्य में सभी सुखी रहते थे. एक दिन नगर के लोग राजद्वार एकत्र होकर त्राहि,त्राहि पुकारने लगे , तब राजा ने सभी लोगों से इसका कारण पूछा. नगर वासियों ने बताया कि ढोंढा नाम की राक्षसी हर रोज उनके बालकों को कष्ट देती है. जिसके ऊपर किसी प्रकार का तंत्र-मंत्र, औषधि आदि का प्रभाव नही होता है. नगर वासियों की बात सुन राजा चिंतित हो गए, उन्होंने राज्यपुरोहित महर्षि वसिष्ठ मुनि जी से उस राक्षसी के विषय में पूछा, तब उन्होंने राजा को बताया राजन माली नामक एक दैत्य है. उसी की एक पुत्री है जिसका नाम ढोंढा है.
ढोंढा चरित्र
ढोंढा ने बहुत समय तक तपस्या करके शिव जी को प्रसन्न करके उनसे वरदान प्राप्त किया कि प्रभू, देवता, दैत्य, मनुष्य, आदि मुझे ना मार सकें तथा अस्त्र- शस्त्र आदि से भी मेरा वध न हो, साथ ही दिन में ,रात में, शीत काल में, उष्णकाल में और वर्षाकाल में, भीतर या बाहर कहीं भी मुझे किसी से भय न हो. इससे भगवान शिव जी ने तथास्तु कह कर यह भी कहा कि तुम्हें उंमत्त बालकों से भय रहेगा. वही ढोंढा नामक राक्षसी नित्य बालकों को कष्ट देती है. जो ‘अडाडा’ मंत्र का उच्चारण करने पर शांत हो जाती है.
महर्षि वशिष्ठ जी ने फिर उससे बचने का उपाय बताया…
राजन! आज फाल्गुन मास के शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा को सभी लोगों को निडर होकर खेलना करनी चाहिए. बालक लकड़ियों से बनी तलवार लेकर वीर सैनिकों भांति खुशी से युद्ध के लिए निकलें और आनंद मनाएं. इसी के साथ सुखी लकड़ी, उपले, सुखी पत्तियां आदि एकत्र करके रक्षा मंत्रों से अग्नि प्रज्वलित करके हंसकर ताली बजाएं. जलती हुई लकड़ियों की 3 बार परिक्रमा करने से बच्चों, बुजुर्गों को आनंद की प्रप्ति होगी. इस प्रकार हवन और कोलाहल करने से और साथ ही बालकों द्वारा तलवार से प्रहार करने से उस राक्षसी का निवारण होगा.
इस कथन को सुन कर राजन ने सम्पूर्ण राज्य में इस उत्सव को करने को कहा और स्वयं भी इसमे शामिल हुए, जिससे राक्षसी विनष्ट हो गई. तभी से यह ढोंढा उत्सव प्रसिद्ध हुआ और अडाडा की परंपरा चली आ रही है. ब्राह्मणों द्वारा सभी दुष्टों और सभी रोगों को शांत करने वाला वसोर्धारा-होम इस दिन किया जाता है, इसी लिए इसको होलिका भी कहते हैं.
सभी तिथियों का सार और परम आनंद देने वाली यह फाल्गुन पूर्णिमा तिथि है. इस दिन रात्रि को बालकों की विशेष रूप से रक्षा करनी चाहिए. घर में बालकों से लकड़ी से बनी तलवार से घर पर स्पर्श करना चाहिए , साथ ही उत्सव मनाना चाहिए उसके बाद बच्चों को मिठाई खिलानी चाहिए.
फिर भगवान श्री कृष्ण जी ने बताया कि होली के दूसरे दिन प्रतिपदा को प्रातः काल उठ के देवताओं लिए तर्पण पूजन करनी चाहिए और सभी दोषों की शांति लिए होलिका की विभूति की वंदना को शरीर में लगानी चाहिए.
होलिका दहन की एक कथा जो सबसे अधिक प्रचलन में है, वह हिर्ण्यकश्यप व उसके पुत्र प्रह्लाद की है.
प्रह्लाद होलिका दहन कथा
राजा हिर्ण्यकश्यप अहंकार वश स्वयं को ईश्वर मानने लगा. उसकी इच्छा थी की केवल उसी का पूजन किया जाए, लेकिन उसका स्वयं का पुत्र प्रह्लाद भगवान विष्णु का परम भक्त था. पिता के बहुत समझाने के बाद भी जब पुत्र ने श्री विष्णु जी की पूजा करनी बंद नहीं कि तो हिरर्ण्यकश्यप ने अपने पुत्र को दण्ड स्वरूप नाना प्रकार दण्ड दिए फिर भी प्रह्लाद की आस्था और भक्ति कम नहीं हुई फिर उसे आग में जलाने का आदेश दिया. इसके लिए राजा ने अपनी बहन होलिका से कहा कि वह प्रह्लाद को जलती हुई आग में लेकर बैठ जाए, क्योंकि होलिका को यह वरदान प्राप्त था कि वह आग में नहीं जलेगी.
इस आदेश का पालन हुआ, होलिका प्रह्लाद को लेकर आग में बैठ गई. लेकिन आश्चर्य की बात थी की होलिका जल गई, और प्रह्लाद नारायण का ध्यान करते हुए होलिका से बच गया. तभी से ये होलिका पर्व मनाया जाने लगा.
इस कथा से यही धार्मिक संदेश मिलता है कि प्रह्लाद धर्म के पक्ष में था और हिरण्यकश्यप व उसकी बहन होलिका अधर्म निति से कार्य कर रहे थे. अतंत: देव कृपा से अधर्म और उसका साथ देने वालों का अंत हुआ. इस कथा से प्रत्येक व्यक्ति को यह प्ररेणा लेनी चाहिए, कि प्रह्लाद प्रेम, स्नेह, अपने देव पर आस्था, द्र्ढ निश्चय और ईश्वर पर अगाध श्रद्धा का प्रतीक है. वहीं, हिरण्यकश्यप और होलिका ईर्ष्या, द्वेष, विकार और अधर्म के प्रतीक है.
यहां यह ध्यान देने योग्य बात यह है कि आस्तिक होने का अर्थ यह नहीं है, जब भी ईश्वर पर पूर्ण आस्था और विश्वास रखा जाता है. ईश्वर हमारी सहायता करने के लिए किसी न किसी रुप में अवश्य आते हैं.