नागपंचमी का महत्व और पूजा विधि
हम सभी जानते हैं नाग पंचमी का त्यौहार सावन (श्रावण) के महीने में आता है। प्रचलित हिंदु मान्यता के अनुसार पृथ्वी शेषनाग के फन पर टिकी है और भगवान शिव जी भी सर्प माला को पहने रहते हैं इसलिये सर्प को देवता के रूप में पूजा जाता है।
भारत में नागों की पूजा करने का एक वैज्ञानिक कारण भी है, खेतों में फसलों को नुकसान पहुॅचानें वाले चूहे आदि जीवों का सर्प नष्ट कर देता है, जिससे किसानों की फसल सुरक्षित रहती है।
एक कहानी केे अनुसार एक सर्प ने भाई बनकर अपनी बहन की सुरक्षा की थी और भाई का फर्ज निभाया था, इसलिये इस दिन महिलायें नागों को दूध पिलाती हैं और उसमें प्रार्थना करती हैं उनकी और उनके परिवार की सुुरक्षा करें।
सर्प ही धन की रक्षा के लिए तत्पर रहते हैं और इन्हें गुप्त, छुपे और गड़े धन की रक्षा करने वाला माना जाता है. नाग, मां लक्ष्मी की रक्षा करते हैं । जो हमारे धन की रक्षा में हमेशा तत्पर रहते हैं इसलिए धन-संपदा व समृद्धि की प्राप्ति के लिए नाग पंचमी मनाई जाती है.
इस दिन श्रीया, नाग और ब्रह्म अर्थात शिवलिंग स्वरुप की आराधना से मनोवांछित फलों की प्राप्ति होती है और साधक को धनलक्ष्मी का आशिर्वाद मिलता है ।
हर साल सावन के शुक्ल पक्ष की पंचमी के दिन नागपंचमी का त्योहार मनाया जाता है. इस बार 15 अगस्त 2018 को देशभर में नागपंचमी मनाई जाएगी. इस दिन नाग देवता के 12 स्वरूपों की पूजा की जाती है. ऐसी मान्यता है कि नाग देवता की पूजा करने और रुद्राभिषेक करने से भगवान शंकर प्रसन्न होते हैं और मनचाहा वरदान देते हैं. मान्यता यह भी है कि इस दिन सर्पों की पूजा करने से नाग देवता प्रसन्न होते हैं. प्राचीन धार्मिक ग्रंथों के मुताबिक, अगर किसी जातक की कुंडली में कालसर्प दोष हो तो उसे नागपंचमी के दिन भगवान शिव और नागदेवता की पूजा करनी चाहिए।
कालसर्प योग यज्ञ का आरम्भ या समाप्ति पंचमी, अष्टमी, दशमी या चुतुर्दशी तिथिवार चाहें जो भी हो, भरणी, आद्र्रा, पुनर्वसु, पुष्य, आश्लेषा, उत्तराषाढ़ा, अभिजित एवं श्रवण नक्षत्र श्रेष्ठ माने जाते हैं। परन्तु जातक की राशि से ग्रह गणना का विचार करना परम आवश्यक होता है।
यह हैं नाग पंचमी पूजा विधि
नाग पंचमी के दिन घर के सभी दरवाजों पर खड़िया (पाण्डु/सफेदे) से छोटी-छोटी चौकोर जगह की पुताई की जाती है और कोयले को दूध में घिसकर मुख्यत दरवारों बाहर दोनों तरफ, मंदिर के दरवाजे पर और रसोई में नाग देवता के चिन्ह (फोटू) बनाये जाते हैं, आज-कल यह फोटो बाजारों में मिलते हैं, जिन्हें आप इस्तेमाल कर सकते हैं, नागों की पूजा मीठी सेंवई खीर से की जाती हैं और इस दिन नागों को दूध पिलाने की परंपरा है, जिसके लिये खेतों में या किसी ऐसे स्थान पर जहॉ सर्प होने की संभावना हो वहॉ एक कटोरी में दूध रखा जाता है।
ऐसे करें नागपंचमी की पूजन
- सबसे पहले प्रात: घर की सफाई कर स्नान कर लें।
- इसके बाद प्रसाद के लिए सेवई और चावल बना लें।
- इसके बाद एक लकड़ी के तख्त पर नया कपड़ा बिछाकर उस पर नागदेवता की मूर्ति या तस्वीर रख दें।
- फिर जल, सुगंधित फूल, चंदन से अर्ध्य दें।
- नाग प्रतिमा का दूध, दही, घृ्त, मधु ओर शर्कर का पंचामृ्त बनाकर स्नान कराएं।
- प्रतिमा पर चंदन, गंध से युक्त जल अर्पित करें।
नये वस्त्र, सौभाग्य सूत्र, चंदन, हरिद्रा, चूर्ण, कुमकुम, सिंदूर, बेलपत्र, आभूषण और पुष्प माला, सौभाग्य द्र्व्य, धूप दीप, नैवेद्ध, ऋतु फल, तांबूल चढ़ाएं…आरती करें…
अगर काल सर्पदोष है तो इस मंत्र का जाप करें: ”ऊँ कुरुकुल्ये हुं फट स्वाहा”
ऐसे करें कालसर्प पूजन…
प्रातःकाल स्नान आदि से निवृत्त होकर पूजा के स्थान पर कुश का आसन स्थापित करके सर्व प्रथम हाथ में जल लेकर अपने ऊपर व पूजन सामग्री पर छिड़कें, फिर संकल्प लेकर कि मैं कालसर्प दोष शांति हेतु यह पूजा कर रहा हूं।
अतः मेरे सभी कष्टों का निवारण कर मुझे कालसर्प दोष (पितृदोष/अंगारक दोष/चाण्डाल दोष/ग्रहण दौड़) से मुक्त करें।
तत्पश्चात् अपने सामने चौकी पर एक कलश स्थापित कर पूजा आरम्भ करें। कलश पर एक पात्र में सर्प-सर्पनी का यंत्र एवं कालसर्प यंत्र स्थापित करें, साथ ही कलश पर तीन तांबे के सिक्के एवं तीन कौड़ियां सर्प-सर्पनी के जोड़े के साथ रखें, उस पर केसर का तिलक लगायें, अक्षत चढ़ायें, पुष्प चढ़ायें तथा काले तिल, चावल व उड़द को पकाकर शक्कर मिश्रित कर उसका भोग लगायें, फिर घी का दीपक जला कर निम्न मंत्र का उच्चारण करें…
ऊं नमोस्तु सर्पेभ्यो ये के च पृथिवीमनु।
ये अंतरिक्षे ये दिवितेभ्यः सर्पेभ्यो नमः स्वाहा।।
राहु का मंत्र – ऊं भ्रां भ्रीं भ्रौं सः राहवे नमः।
इसके बाद सर्वप्रथम गणपति जी का पूजन करें, नवग्रह पूजन करें, कलश पर रखी समस्त नाग-नागिन की प्रतिमा का पूजन करें व रूद्राक्ष माला से उपरोक्त कालसर्प शांति मंत्र अथवा राहू के मंत्र का उच्चारण एक माला जाप करें। उसके पश्चात् कलश में रखा जल शिवलिंग पर किसी मंदिर में चढ़ा दें, प्रसाद नंदी (बैल) को खिला दें, दान-दक्षिणा व नये वस्त्र ब्राह्मणों को दान करें। कालसर्प दोेष (पितृदोष/ग्रहण दोष/अंगारक दोष/चाण्डाल दोष) वाले जातक को इस दिन व्रत अवश्य करना चाहिए।
ज्योतिर्विद पण्डित दयानन्द शास्त्री ने बताया कि अग्नि पुराण में लगभग 80 प्रकार के नाग कुलों का वर्णन मिलता है, जिसमें अनन्त, वासुकी, पदम, महापध, तक्षक, कुलिक, कर्कोटक और शंखपाल यह प्रमुख माने गये हैं।
स्कन्दपुराण, भविष्यपुराण तथा कर्मपुराण में भी इनका उल्लेख मिलता है।
जानिए क्यों करवाएं नागपंचमी पर पूजन…
यदि आपकी कुंडली में कालसर्प योग (दोष), अंगारक दोष/यिग, या चाण्डाल दोष एवम ग्रहण दोष अथवा पित्र दोष है और उसके कारण आपके जीवन में (कई कामों में) विघ्न पड़ रहा है तो परेशान न हों।
नाग पंचमी का दिन कालसर्प योग(दोष), अंगारक दौड़, पितृदोष एवम ग्रहण दोष तथा चाण्डाल दोष जैसे दोषों की शांति के लिए बेहद फलदायी होता है।
ज्योतिषाचार्य पण्डित दयानन्द शास्त्री ने बताया कि राहू के जन्म नक्षत्र ‘भरणी’ के देवता काल हैं एवं केतु के जन्म नक्षत्र ‘अश्लेषा’ के देवता सर्प हैं।
अतः राहू-केतु के जन्म नक्षत्र देवताओं के नामों को जोड़कर “कालसर्प योग” कहा जाता है। राशि चक्र में 12 राशियां हैं, जन्म पत्रिका में 12 भाव हैं एवं 12 लग्न हैं। इस तरह कुल 144+144 = 288 कालसर्प योग घटित होते हैं।
15 अगस्त 2018 यानी नाग पंचमी के दिन कालसर्प योग/दोष, अंगारक दोष, चाण्डाल दोष या ग्रहण दोष अथवा पितृदोष आदि की शांति कराकर विघ्नों को दूर किया जा सकता है।
यह रहेगा पूजा का समय और विधि…
पंचमी तिथि प्रारंभ – 15 अगस्त को सुबह 03:27 बजे शुरू
पंचमी तिथि समाप्ति – 16 अगस्त को सुबह 01:51 बजे खत्म
पूजा का सबसे शुभ मुहूर्त – 15 अगस्त को सुबह 05:55 से 8:31 तक
नागपंचमी की पूजा 15 अगस्त को सुबह 5:55 बजे से 8:31 बजे तक की जा सकती है. धार्मिक ग्रंथों के मुताबिक अगर किसी जातक की कुंडली में कालसर्प दोष है तो उसे नागपंचमी के दिन भगवान शिव और नागदेवता की पूजा करनी चाहिए।
पितृ दोष से मुक्ति के लिए नाग पंचमी पर जरूर करें यह पूजा…
इस वर्ष नाग पंचमी पर्व 15 अगस्त (बुधवार) को, परंपरागत तरीके से पूरे उत्तर भारत में मनाया जाएगा। इस दिन विक्रम सम्वत 2075 के श्रावण मास की शुक्ल पक्ष की पंचमी तिथि, हस्त नक्षत्र ओर चंद्रमा कन्या राशि का रहेगा ।
उत्तर भारत में इस दिन घरों में प्रतीक रूप से नाग पूजा की जाएगी। नागपंचमी को शिव की आराधना करने से कालसर्प योग, पितृ दोष, चांडाल योग, मंगल दोष का निवारण होगा। इस दिन सूर्य और बृहस्पति सिंह और चंद्रमा कन्या राशि में होंगे। यह संयोग सुख शांति और समृद्धि प्रदान करने वाला है। नाग पंचमी के दिन भगवान शिव के विधिवत पूजन से हर प्रकार का लाभ प्राप्त होता है।
प्रत्येक वर्ष शुक्ल श्रावण पंचमी को नागपंचमी का पर्व मनाया जाता है। इस दिन नाग देवता का पूजन होता है। इस दिन काष्ठ पर एक कपड़ा बिछाकर उसपर रस्सी की गांठ लगाकर सर्प का प्रतीक रूप बनाकर, उसे काले रंग से रंग दिया जाता है। कच्चा दूध, घृत और शर्करा तथा धान का लावा इत्यादि अर्पित किया जाता है। पूर्वी उत्तर प्रदेश में इस दिन दीवारों पर गोबर से सर्पाकार आकृति का निर्माण कर सविधि पूजन किया जाता है। प्रत्येक तिथि के स्वामी देवता हैं। पंचमी तिथि के स्वामी देवता सर्प हैं। इसलिए यह कालसर्पयोग की शांति का उत्तम दिन है।
प्रचलित मान्यताओं के अनुसार पितृ दोष से मुक्ति के लिए इस दिन उनकी पूजा का विधान किया गया है । नागपंचमी पर नाग की पूजा प्रत्यक्ष मूर्ति या चित्रों के रूप में की जाती है। इसी दिन सर्पो के प्रतीक रूप को दूध से स्नान करा कर उनकी पूजा करने का विधान है । दूध पिलाने से, वासुकी कुंड में स्नान करने, निज गृह के द्वार में दोनों और गोबर के सर्प बनाकर उनका दही, दु़र्वा, कुशा, गंध, अक्षत, पुष्प, मोदक और मालपुओं आदि से पूजा करने से घर में सर्पो का भय नहीं होता।
हम सभी जानते हैं भगवान विष्णु की शैया “अनन्त” नामक नागराज की है।
धर्म ग्रंथों में उल्लेख है कि – महाभारत में कृष्ण और अजरुन ने भी मणिनाग की पूजा की। बौद्ध व जैन धर्म के अनुसार मुचलिंद नाग ने फन फैलाकर भगवान बुद्ध और भगवान पाश्र्वनाथ की भी तपस्या के दौरान धूप व हवा से रक्षा की थी।
वेद-पुराणों के अनुसार नागों की उत्पति महर्षि कश्यप की पत्नी कद्रु से हुई, इनका निवास स्थान पाताल लोक है।
विशेष – नागपंचमी को चंद्रमा की राशि कन्या होती है और राहु का स्वगृह कन्या राशि है। राहु के लिए प्रशस्त तिथि, नक्षत्र एवं स्वगृही राशि के कारण नागपंचमी सर्पजन्य दोषों की शांति के लिए उत्तम दिन माना जाता है। पंचमी तिथि को भगवान आशुतोष भी सुस्थानगत होते हैं। इसलिए इस दिन सर्प शांति के अंतर्गत राहु-केतु का जप, दान, हवन उपयुक्त होता है। अन्य दुर्योगों के लिए शिव का अभिषेक, महामृत्युंजय मंत्र का जप, यज्ञ, शिव सहस्रनाम का पाठ, गाय और बकरे के दान का भी विधान है।
नाग पंचमी पर्व पर शिव आराधना करें…
नाग पंचमी के दिन नाग की पूजा के साथ-साथ नागों के देवता देवाधिदेव महादेव की भी पूजा करना चाहिए।
काल सर्प दोष निवारण के लिए नाग पंचमी के दिन नागनुमा अंगूठी बनवाकर उसकी प्राण-प्रतिष्ठा कर उसे धारण करें। इस दिन ब्रह्म मुहूर्त में तांबे का सर्प बनवाकर उसकी पूजा करके शिवलिंग पर चढ़ाएं तथा इससे पूर्व एक रात उसे घर में ही रखें।
नाग पंचमी को एक नाग-नागिन सपेरों से बंधन मुक्त कराने से विशेष पुण्य की प्राप्ति होती है ।
इस अवसर पर पितृ तर्पण कर नागाबली और नारायण नागाबली का प्रयोग पितरों की मुक्ति ओर शांति हेतु उज्जैन के सिद्धवट या गया कोठा तीर्थ पर अवश्य करना चाहिए।
इसके अलावा मात्र गया तीर्थ(गुजरात), पिचाश मोचनि कुण्ड(बनारस), कालहस्ती , नारायणी शिला(हरिद्वार) गया जी (बिहार) आदि प्रमुख तीर्थ स्थलों पर यह प्रयोग सम्पन्न किया जा सकता हैं।
ज्योतिषाचार्य पण्डित दयानन्द शास्त्री ने बताया कि इस दिन पितृ दोष से परेशान जातक को “ऊं नम: शिवाय मंत्र” का जाप करना चाहिए।
राहु कवच या राहु स्त्रोत का पाठ करें। राहु की तेल से भगवान शिव का रुद्राभिषेक करवाने से भी तत्काल ओर प्रभावी परीणाम मिलते हैं।
सातमुखी रुद्राक्ष गले में पहने तथा काल सर्प योग के साथ-साथ चंद्र राहु, चंद्र केतु, सूर्य-केतु, एक भी ग्रहण योग हो तो केतु का रत्न लहसुनिया मध्यमा अंगुली में पहनें।
ग्रहण योग की शांति भी इस सम्पन्न की जा सकती हैं। जैसे – सूर्य -राहु।सूर्य -केतु। चन्द्र -केतु या चन्द्र-राहु।
इसके अलावा आप घर व कार्यालय में मोर पंख रखें व कालसर्प निदान के लिए शांति विधान करें। चंदन की लकड़ी पर चांदी का जोड़ा बनवाकर पूजा करके धारण करें।
जानिए कैसे करें अपनी राशि के अनुसार करें पूजन…
नागपंचमी पर अपनी राशि के अनुसार नागों की मूर्तियों की पूजा करने से विशेष फल की प्राप्ति होती है।
मेष को अनन्त नाग, वृष को कुलिक नाग, मिथुन को वासुकि नाग, कर्क को शंखपाल नाग, सिंह को पद्य नाग, कन्या को महापद्य नाग की पूजा करनी चाहिए।
वहीं तुला को तक्षक नाग, वृश्चिक को ककरेटक नाग, धनु को शंखचूर्ण नाग, मकर को घातक नाग, कुम्भ को विषधर नाग और मीन को शेषनाग की प्रतिमा की पूजा नाग पंचमी को करनी चाहिए। इससे विशेष फल की प्राप्ति होती है।
शुभ भी होता है कालसर्प योग
गरुड़ पुराण के अनुसार नाग पंचमी के दिन नाग देवता की पूजा करने से सुख-शांति की प्राप्ति होती है। राहु को सर्प का मुख और केतु को उसकी पूंछ माना जाता है।
जब भी समस्त ग्रह इन दोनों ग्रहों के मध्य में आते हैं तो वह कालसर्प योग कहलाता है। कालसर्प योग शुभ व अशुभ दोनों प्रकार के होते हैं। इसकी शुभता और अशुभता अन्य ग्रहों के योगों पर निर्भर करती है।
जब भी कालसर्प योग में पंच महापुरुष योग, रुचक, भद्र, मालव्य व शश योग, गज केसरी, राज सम्मान योग महाधनपति योग बनें तो व्यक्ति उन्नति करता है।
जब कालसर्प योग के साथ अशुभ योग बने जैसे-ग्रहण, चाण्डाल, अशांरक, जड़त्व, नंदा, अंभोत्कम, कपर, क्रोध, पिशाच हो तो वह अनिष्टकारी होता है।
ज्योतिर्विद पण्डित दयानन्द शास्त्री के अनुसार ज्योतिषशास्त्र में 576 प्रकार के कालसर्प योग बताए गए हैं जिनमें लग्न से द्वादश स्थान तक मुख्यत: 12 प्रकार के सर्प योगों में अन्नत, कुलिक, वासुकी, शंखपाल, पदम, महापदम, तक्षक, कर्कोटक, शंखनाद, पातक, विशान्त तथा शेषनाग शामिल है।
कालसर्प योग दोष निवारण के लिए नागपंचमी के दिन सर्प की पूजा करना सर्वाधिक अच्छा रहता है ।
जानकारी – इस वर्ष कालसर्प दोष/कालसर्प योग शांति महायज्ञ 15 अगस्त 2018 (बुधवार) को नागपंचमी तक विश्व प्रसिद्द सिद्धवट, उज्जैन (मध्यप्रदेश) में संपन्न होगा।
पंडित “विशाल” दयानंद शास्त्री