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नालंदा खंडहर को मिली अंतर्राष्ट्रीय पहचान

नालंदा खंडहर को मिली अंतर्राष्ट्रीय पहचान

बिहारशरीफ, 15 नवम्बर; करीब 700 वर्षों तक पूरे विश्व में ज्ञान की रोशनी फैलाने वाले महत्वपूर्ण शिक्षा के केंद्र के रूप में प्राचीन नालंदा विश्वविद्यालय को जाना जाता है. लगभग 800 साल पहले तबाह कर दिये गये इस प्राचीन विश्वविद्यालय के अवशेष के रूप में आज भी नालंदा खंडहर मौजूद है. पिछले वर्ष ही नालंदा खंडहर के साइट को वर्ल्ड हेरिटेज का दर्जा यूनेस्को ने दिया है. वर्ल्ड हेरिटेज में शामिल होने के बाद नालंदा खंडहर को अंतरराष्ट्रीय पहचान मिली है. यह प्राचीन विश्वविद्यालय पांचवीं सदी से लेकर 12वीं सदी तक पूरे विश्व में ज्ञान की रोशनी फैलाता रहा था. शिक्षा के इस अनमोल धरोहर का दर्शन करने प्रतिवर्ष लाखों की संख्या में देश-विदेश से पर्यटक आते हैं. अलेकजेंडर कनिंघम द्वारा खोजे गये इस महान बौद्ध विश्वविद्यालय के भग्नावशेष इसके प्राचीन वैभव का कुछ अंदाज करा देते हैं.

हींनयान बौद्ध धर्म के साथ ही साथ अन्य धर्मों की पढ़ाई

नालंदा विश्वविद्यालय में हींनयान बौद्ध धर्म के साथ ही साथ अन्य धर्मों की पढ़ाई होती थी. यहां धर्म ही नहीं राजनीति, इतिहास, ज्योतिष, विज्ञान आदि विषयों की शिक्षा दी जाती थी. नालंदा संस्कृत शब्द नालम और दा के योग से बना है. संस्कृत में नालम का अर्थ कमल होता है. कमल ज्ञान का प्रतीक है. नालंदा का अर्थ होता कमल देने वाला या ज्ञान देने वाला. कालक्रम में यहां महाविहार की स्थापना की गयी, जिसका नाम नालंदा महाविहार रखा गया. इस विश्वविद्यालय में इतनी किताबें रखी थीं कि उसे गिन पाना मुश्किल था. हर विषय की किताबें यहां मौजूद थीं. सातवीं सदी में भारत भ्रमण के लिए आये चीनी यात्री ह्वेनसांग व इत्सिंग के यात्रा विवरणी में इस विश्वविद्यालय की जानकारी मिलती है. चीनी यात्री ह्वेनसांग ने अपने जीवन के एक वर्ष यहां छात्र व शिक्षक के रूप में गुजारे थे.

विश्वभर के छात्र आते थे पढ़ने

इस विश्वविद्यालय में भारत के अलावा विश्वभर के छात्र पढ़ने आते थे. जिनमें कोरिया, जापान, चीन, तिब्बत, इंडोनेशिया, श्रीलंका फारस, तुर्की व ग्रीक आदि देशों के विद्यार्थी यहां पढ़ाई के लिए आते थे. यहां करीब दस हजार छात्र एवं दो हजार अध्यापक थे. नालंदा विश्वविद्यालय के प्रसिद्ध आचार्यों में शीलभद्र, धर्मपाल, गुणमति और स्थिरमति प्रमुख थे. सातवीं सदी में जब ह्वेनसांग यहां आया था, उस वक्त आचार्य के रूप में शीभ्रद थे. प्रसिद्ध भारतीय गणितज्ञ एवं खगोलज्ञ आर्यीभट भी विश्वविद्यालय में एक समय कुलपति रहे थे. इस विश्वविद्यालय में प्रवेश बड़ी मुश्किल से मिलता था. केवल उच्च कोटि के छात्रों को ही यहां प्रवेश मिलता था. इसके लिए छात्रों को परीक्षा देनी पड़ती थी.

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आग लगाकर किया गया था नष्ट

मुस्लिम तुर्क बख्तियार खिलजी ने 1199 ई. में हजारों दुर्लभ पुस्तकें जलाकर नष्ट कर दी थी. इस घटना में हजारों दुर्लभ पुस्तकें जलकर राख हो गयी. सारी महत्वपूर्ण किताबें व दस्तावेज आग में नष्ट हो गये. यहां की पुस्तकें तीन माह तक जलती रहीं थीं.

विश्वविद्यालय को हो रहा पुननिर्माण

इस विश्व प्रसिद्ध विश्वविद्यालय का फिर से निर्माण किया जा रहा है. राजगीर से थोड़ी दूर पर इसकी बिल्डिंग बनने वाली है. इस विश्वविद्यालय के निर्माण में कई देशों का सहयोग प्राप्त हो रहा है.

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क्या कहना है अधिकारीयों का

नालंदा संग्रहालय के पुरातत्वविद एम.के सक्सेना का कहना है, “प्राचीन काल में नालंदा विश्वविद्यालय ज्ञान का बहुत बड़ा केंद्र था. यहां पढ़ने के लिए देश-विदेश के छात्र आते थे. भारतीय पुरातत्व द्वारा यहां खुदाई की गयी है. खुदाई के दौरान मिले अवशेष इस विश्वविद्यालय की भव्यता का बयान करते हैं. अभी भी खुदाई के दौरान कुछ-कुछ नयी-नयी जानकारियां मिल रही हैं. यूनेस्कों द्वारा वर्ल्ड हेरिटेज में शामिल होने के बाद इस साइट को बेहतर तरीके से संरक्षित व रखरखाव किया जा सकेगा.”

इस आवासीय विश्वविद्यालय में पढ़ाई नि:शुल्क

प्राचीन नालंदा विश्वविद्यालय दुनिया के सबसे प्राचीन आवासीय विश्वविद्यालयों में से एक था. यहां शिक्षा, आवास व भोजन के लिए छात्रों से कोई शुल्क नहीं लिया जाता था. सभी सुविधाएं नि:शुल्क थीं. राजा व धन्ना सेठों द्वारा दिये दान से इस विश्वविद्यालय का संचालन होता था. बौद्ध धर्म के इस शिक्षण संस्थान में हिंदू व जैन धर्म का भी अध्ययन कराया जाता था. साथ ही वेद, विज्ञान, खगोल शास्त्र, सांख्य, वास्तुकला, शिल्प, मूर्तिकला, व्याकरण, दर्शन, शल्यविद्या, ज्योतिष, योग शास्त्र व चिकित्सा शास्त्र भी यहां के पाठ्यक्रम में शामिल थे.

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स्थापत्य कला का अद्भुत नमूना  

यह विश्वविद्यालय स्थापत्य कला का अद्भुत नमूना था. पूरा परिसर एक दीवार से घिरा हुआ था. प्रवेश के लिए मुख्य द्वार था. परिसर में उत्तर से दक्षिण तक मठों की कतार थी. अभी तक की खुदाई में 13 मठ मिले हैं. भव्य स्तूप व मंदिर भी मिले हैं. विश्वविद्यालय में सात बड़े कक्ष के अलावा अन्य 300 कमरे थे. कमरे में सोने के लिए पत्थर की चौकी होती थी. दीपक, पुस्तक आदि रखने के लिए आले बने हुए थे. प्रत्येक मठ के आंगन में एक कुआं था. विश्वविद्यालय में तीन प्रमुख पुस्तकालय नौ तलों का था. इन पुस्तकालयों में हस्तलिखित हजारों पुस्तकें और छपी हुई लाखों किताबें थीं.

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Post By Shweta