दुख-दारिद्रता को दूर करने व रूप-यौवन प्राप्ति का त्योहार है नरक चतुर्दशी
- आज बुधवार (18 अक्टूबर 2017 ) को नरक चतुर्दशी, यम चतुर्दशी, नरक चौदस पर विशेष
कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी को नरक चतुर्दशी, यम चतुर्दशी, नरका चौदस का त्योहार मनाया जाता है। इस दिन को हनुमान जयंती के रूप में भी मनाते हुए बजंरग बली की पूजा-अर्चना करते हैं। प्रचलित मान्यताओं के अनुसार महाबली भगवान् हनुमान जी ने आज ही के दिन जन्म लिया था। इसी दिन देवाधीदेव महादेव के एकादश अवतार बजरंग बली भगवान हुनमान जी की जयंती मनाई जाती है। हिन्दू साहित्य बताते हैं कि असुर (राक्षस) नरकासुर का वध कृष्ण, सत्यभामा और काली द्वारा इस दिन पर हुआ था। यह दिन सुबह धार्मिक अनुष्ठान, उत्सव और उल्हास के साथ मनाया जाता है।
ज्योतिषाचार्य पंडित दयानन्द शास्त्री ने बताया की छोटी दिवाली से पहले के दिन (आज बुधवार –18 अक्टूबर 2017 ) को ही नरक चतुर्दशी कहा जाता है। इस दिन यमराज की पूजा करने का विधान है। कहा जाता है कि इस दिन दीपदान करने और यमराज की पूजा करने से यमराज प्रसन्न होते हैं। यही नहीं इस घर के बाहर रात को चौमुखी दीपक जलाना चाहिए।मान्यतानुसार इस दिन जो व्यक्ति सूर्योदय से पूर्व अभ्यंग-स्नान अर्थात तिल का तेल लगाकर अपामार्ग अर्थात चिचड़ी की पत्तियां जल में डालकर स्नान करता है, उसे यमराज की कृपा वश नरक गमन से मुक्ति मिलती है। व्यक्ति के सारे पाप नष्ट होते हैं। इस दिन से पाप व नरक से मुक्ति हेतु व्रत भी प्रचलित है। प्रातः काल अभ्यंग-स्नान के बाद राधा-कृष्ण के मंदिर में दर्शन करने से पाप नाश होता है और सौन्दर्य व रूप की प्राप्ति होती है।
क्या है मान्यता?
ऐसा बताया जाता है कि इस दिन अालस्य और बुराई को हटाकर जिंदगी में सच्चाई की रोशनी का आगमन होता है. रात को घर के बाहर दिए जलाकर रखने से यमराज प्रसन्न होते हैं और अकाल मृत्यु की संभावना टल जाती है. एक कथा के मुताबिक इसी दिन भगवान श्रीकृष्ण ने नरकासुर का वध किया था.
नरकासुर का वध (संहार)
उज्जैन के ज्योतिषाचार्य पंडित दयानन्द शास्त्री ने बताया की दिवाली के एक दिन पहले यानी कि 18 अक्टूबर को नरक चतुर्दशी मनाई जाएगी। इसे नर्क चतुर्दशी, नर्का पूजा और छोटी दिवाली के नाम से भी जाना जाता है। हिंदू शास्त्रों में इस दिन का बड़ा महत्व माना जाता है। मान्यता है कि आज के दिन ही भगवान श्री कृष्ण ने अत्याचारी नरकासुर का संहार कर सोलह हजार एक सौ कन्याओं को बंदी गृह से मुक्त कराया था। इस उपलक्ष्य में उस समय दिए सजाए गए थे। इस दिन बुराई को हटाकर सच्चाई की जीत के लिए भी जाना जाता है। इसलिए नरक चतुर्दशी पर सुबह स्नान आदि करने के बाद भगवान कृष्ण की पूजा व दर्शन करना शुभ होता है। भगवान् कृष्ण ने एक देश जो कि वर्तमान में ईराक है, को मुक्त कराया था| नरकासुर नामक एक राक्षस उस समय ईराक पर शासन करता था| उसकी 16000 उपपत्नियां (रखैलें) थीं और वह सभी को सताया करता था| उस देश की समस्त जनता परेशान थी| वह देश वर्तमान के ईराक में है| उसके पुत्र का नाम भागदत्त था| और भागदत्त के कारण ही उस शहर को बग़दाद के नाम से जाना जाता है| अतः कहा जा सकता है कि ईराक आज जो सह रहा है वो 5000 हजार वर्षों पहले भी उसके साथ घटित हो चुका है| 5000 वर्ष पहले भी ईराक में इसी प्रकार की शासन व्यवस्था थी| जब मैं ईराक में था तो कुर्दिस्तान में लोगों ने मुझे बताया कि वहां सैकड़ों गाँव ऐसे हैं जिनमें एक भी पुरुष नहीं हैं क्योंकि सद्दाम हुसैन ने सभी पुरुषों को मार दिया है| उन सैकड़ों गावों में लोग इतने कष्ट में थे| हमने कुछ ग्रामीणों से बात की और वे सब की सब महिलायें थीं| वे सामने आ कर अपनी दुःखभरी कहानी सुना रही थीं|
यह बहुत ही निराशाजनक है कि इस युग में भी ऐसी असुरी प्रकृति की सोच विद्यमान हो सकती है| आपने युगांडा में भी इसी प्रकार की घटनाओं के विषय में सुना होगा| किसी ने फ्रिज में बहुत सारी खोपड़ियाँ इकट्ठी कर रखी थीं| नहीं सुना है क्या इसके बारे में ? हाँ! और कम्बोडिया में भी लाखों लोग सताए जाते हैं, यहाँ तक कि आज भी वहां इस प्रकार की ज्यादतियां देखने को मिल जाती हैं| कम्बोडिया में एक कम्युनिस्ट जनरल ने सभी को खेती करने के लिए कहा| और लोगों को खेती करना नहीं आता था, जो लोग व्यापारी थे, खेती के बारे में कुछ नहीं जानते थे, उसने उनपर जबरदस्ती की| जिसने भी उसकी बात मानने से इनकार किया जनरल ने उसे मार दिया| लाखों लोग मारे गए| कम्बोडिया की एक तिहाई जनता एक आदमी के हाथों मारी गई|
अतः ऐसी आसुरी मानसिकता 5000 वर्ष पहले भी विद्यमान थी| नरकासुर ने 16000 स्त्रियों से जबरदस्ती विवाह किया, उन्हें बंदी बना के रखा और अपना दास बना लिया| अतः जब वो श्रीकृष्ण के हाथों मारा गया तो उन सभी स्त्रियों का उद्धार हो गया| श्रीकृष्ण ने उन्हें मुक्त कर दिया| इसके बाद उन 16000 स्त्रियों ने कहा कि हम सभी आत्महत्या कर लेंगे| वे सभी सामूहिक आत्महत्या करना चाहती थीं क्योंकि उन दिनों स्त्रियों के लिए वर्जित था कि वे बिना पति के रहें| उन्हें समाज में वो सम्मान नहीं मिलता था, विशेषकर एक आसुरी प्रकृति वाले व्यक्ति के पत्नी को| इसलिए उन सभी ने श्रीकृष्ण से कहा कि ‘इस व्यक्ति के साथ रहने के कारण अब हमारा परिवार हमें नहीं अपनाएगा और ये संसार भी हमें स्वीकार नहीं करेगा क्योंकि हम उस आसुरी प्रकृति वाले व्यक्ति जिसने लाखों लोगों के जीवन का विनाश किया है, की पत्नियाँ हैं| इसलिए अच्छा है कि हम सब मर जाएँ|
इस पर श्रीकृष्ण ने उनसे कहा, नहीं! मैं तुम सब को अपना उपनाम दूंगा| तुम्हें अपने आपको “ये या वो” अथवा “नरकासुर की पत्नी” कहलवाने की आवश्यकता नहीं है| श्रीकृष्ण उस काल में एक बहुत ही सम्मानीय एवं जाने- माने व्यक्ति थे| ऐसा करने पर वे सभी स्त्रियाँ मर्यादा के साथ रह सकती थीं इसलिए उन्होंने कहा कि वे उन स्त्रियों को अपना नाम दे कर अथवा उनके स्वामी बन कर या उन्हें अपना पति मानने दे कर, मर्यादा प्रदान कर रहे हैं| यह एक कथा है, एक पक्ष है| इस प्रकार श्रीकृष्ण ने नरकासुर की उन सभी 16000 उपपत्नियों (रखैलों) को अपना नाम दे कर एक सम्मानजनक जीवन प्रदान किया| ऐसा कर के उन्होंने कितना अच्छा काम किया न? इस प्रकार श्रीकृष्ण ने उन्हें एक नया जीवन दिया| परन्तु उनकी वास्तविक पत्नियाँ तो रुक्मिणी, सत्यभामा एवं जाम्बवती ही थीं|
कुछ अन्य प्रचलित कथाएं
शास्त्रीय कथानुसार आज ही के दिन भगवान श्री कृष्ण ने अत्याचारी और दुराचारी दु्र्दान्त असुर नरकासुर का वध किया था और सोलह हजार एक सौ कन्याओं को नरकासुर के बंदी गृह से मुक्त कर उन्हें सम्मान प्रदान किया था। भगवान श्रीकृष्ण द्वारा नरकासुर को उसके अंत समय दिए वर के अनुसार इस दिन सूर्योदय से पूर्व जो अभ्यंगस्नान ( शरीर में तेल लगा कर ) करता है, उसे कृष्ण कृपा से नरक यातना नहीं भुगतनी पडती, उसके सारे पाप क्षयं हो जाते है । इस दिन से पाप और नर्क से मुक्ति हेतु भूलोक में कार्तिक चतुर्दशी के दिन का व्रत प्रचलित है। स्नान के पश्चात विष्णु मंदिर और कृष्ण मंदिर में भगवान का दर्शन करना अत्यंत पुण्यदायक कहा गया है। इससे पाप का नाश होता है और रूप सौन्दर्य की प्राप्ति होती है।अन्य प्राचीन कथानुसार प्राचीन समय में रन्तिदेवी नामक राजा हुए थे । वह पुर्व जन्म में एक धर्मात्मा तथा दानी थे । इस जन्म में भी वे दानी थे उनके अन्तिम समय में यमदूत उन्हे नरक में ले जाने लिए आए । राजा ने कहा मैं तो दान दक्षिणा तथा सत्यकर्म करता रहा हूँ । फिर मुझे नरक क्यो ले जाना चाहते हो । यमदुतो ने बताया कि एक बार तुम्हारे द्वार से भुख से व्याकुल ब्राह्यण लौट गया था। इसलिए तुम्हे नरक मे जाना पडेगा । यह सुनकर राजा ने यमदूतो से विनती कि की मेरी आयु एक वर्ष और बढा दी जाए यमदुतो ने बिना सोच विचार किये राजा की प्रार्थना स्वीकार कर ली। यमदूत चले गये। राजा ने ऋषियो के पास जाकर इस पाप से मुक्ति का उपाय पुछा । ऋषियो ने बताया – हे राजन! तुम कार्तिक मास की कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी का व्रत रखकर भगवान कृष्ण का पूजन करना, ब्राह्यणो को भोजन कराकर दक्षिणा देना तथा अपना अपराध ब्राह्यणा को बताकर उनसे क्षमा याचना करना, तब तुम पाप से मुक्त हो जाओगे । कार्तिक कृष्ण चतुर्दशी को राजा ने नियम पूर्वक व्रत रखा और विष्णु लोक को प्राप्त हुआ |
कथा यह भी है की पुरातनकाल में है हिरण्यगर्भ नाम के स्थान पर एक योगीराज रहते थे । उन्होंने भगवान की घोर आरधना के लिए समाधि शुरू की। समाधि लगाए कुछ दिन ही बीते थे कि उनके शरीर में कीडे पड गए । योगीराज को काफी दुख हुआ।
नारद मुनि उस समय वहाँ से निकले और योगीराज को व्यथित देख उनके के दुख का कारण पूछा। योगीराज ने अपना दुख बताया तो नारद बोले कि हे योगीराज आपने आपध्धर्म अर्थात देह आचार का पालन नहीं किया इसलिए आपकी यह दशा हुई । अब आप कार्तिक मास की कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी को व्रत रख भगवान का स्मरण करे व पूजा करे तो आपकी देह पहले जैसी हो जाएगी व आप रूप सौन्दर्य को प्राप्त करगे। योगीराज ने नारद मुनि के सुझाव अनुसार कार्तिक मास की कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी का व्रत सम्पूर्ण विधि से किया और भगवान कृष्ण की पूजा आरधना की और रूप सौन्दर्य को प्राप्त किया।
ऐसे करें यम पूजा
नरक चतुर्दशी के दिन सूर्योदय से पहले शरीर पर तेल की मालिश करके नहाना शुभ माना जाता है। स्नान के दौरान अपामार्ग पौधे की टहनियों को अपने ऊपर से सात बार घुमाकर सिर पर रखना होता है। साथ थोड़ी सी मिट्टी भी रखी जाती है। इसके बाद पानी डालकर इसके बहा दिया जाता है। अंत में पानी में तिल डालकर यमराज को तर्पण किया जाता है। इसके बाद सांध्य बेला में घर के बाहर तेल का एक दीपक जलाकर यमराज का ध्यान किया जाता है। यमराज के लिए किए गए इस दीपदान को लेकर माना जाता है कि इसकी रोशनी से पितरों के रास्ते का अंधेरा दूर हो जाता है।
आज बुधवार (18 अक्टूबर 2017 ) को कार्तिक कृष्ण चतुर्दशी पर्व पर सूर्योदय से पूर्व अभ्यंग-स्नान करने का विधान शास्त्रों में बताया गया है। अभ्यंग-स्नान के लिए शास्त्रों ने ब्रह्म मुहूर्त का समय निर्देशित किया है। चतुर्दशी के दिन अभ्यंग स्नान बहुत ही महत्वपूर्ण होता है। अभ्यंग स्नान के दौरान उबटन के लिए तिल के तेल का उपयोग किया जाता है। अभ्यंग स्नान के लिए मुहूर्त का समय चतुर्दशी तिथि के प्रचलित रहते हुए चंद्रोदय व सूर्योदय के मध्य रहना चाहिए।
इसी के तहत अभ्यंग स्नान मुहूर्त बुधवार दी॰ 18.10.17 को सुर्यौदय से पूर्व और चंद्रमा के उदय रहते हुए प्रातः 04:47 से प्रातः 06:27 तक रहेगा। इसकी अवधि 1 घंटे 40 मिनट रहेगी।
इस मुहुर्त में करें पूजन
इस बार यम दीपदान व पूजन मुहूर्त शाम को 6 बजे से शाम 7 बजे तक रहेगा।
यह दीपक जलाते समय,
सितालोष्ठसमायुक्तं संकण्टकदलान्वितम्। हर पापमपामार्ग भ्राम्यमाण: पुन: पुन:…मंत्र का जाप करना चाहिए।
मान्यता है कि दीपदान करने से यमराज खुश होते हैं। पापों की मुक्ति के साथ मृत्यु के भय से भी मुक्ति मिलती है। इतना ही नहीं इससे नरक जाने से बचा जा सकता है। इस दिन को हुनुमान जयंती के रूप में भी मनाते हुए बजंरग बली की पूजा-अर्चना करते हैं। प्रचलित मान्यताओं के अनुसार महाबली भगवान् हनुमान जी ने आज ही के दिन जन्म लिया था।
इस मंत्र का करें जाप
सितालोष्ठसमायुक्तं संकण्टकदलान्वितम्। हर पापमपामार्ग भ्राम्यमाण: पुन: पुन:।।
यह हैं नरक चतुर्दशी पर पूजा करने की विधि
- – नरक चतुर्दशी के दिन शरीर पर तिल के तेल की मालिश करें.
- – सूर्योदय से पहले स्नान करें.
- – स्नान के दौरान अपामार्ग (एक प्रकार का पौधा) को शरीर पर स्पर्श करें.
- – अपामार्ग को निम्न मंत्र पढ़कर मस्तक पर घुमाए.
- – नहाने के बाद साफ कपड़े पहनें.
- – तिलक लगाकर दक्षिण दिशा की ओर मुख करके बैठ जाए.
निम्न मंत्रों से प्रत्येक नाम से तिलयुक्त तीन-तीन जलांजलि देनी चाहिए
ऊं यमाय नम:, ऊं धर्मराजाय नम:, ऊं मृत्यवे नम:, ऊं अन्तकाय नम:, ऊं वैवस्वताय नम:, ऊं कालाय नम:, ऊं सर्वभूतक्षयाय नम:, ऊं औदुम्बराय नम:, ऊं दध्राय नम:, ऊं नीलाय नम:, ऊं परमेष्ठिने नम:, ऊं वृकोदराय नम:, ऊं चित्राय नम:, ऊं चित्रगुप्ताय नम:
इस दिन दीये जलाकर घर के बाहर रखते हैं. ऐसी मान्यता है की दीप की रोशनी से पितरों को अपने लोक जाने का रास्ता दिखता है. इससे पितर प्रसन्न होते हैं और पितरों की प्रसन्नता से देवता और देवी लक्ष्मी भी प्रसन्न होती हैं. दीप दान से संतान सुख में आने वाली बाधा दूर होती है. इससे वंश की वृद्धि होती है |
कार्तिक कृष्ण चतुर्दशी हनुमत जयंती
इसी दिन देवाधिदेव महादेव के एकादश अवतार बजरंग बली भगवान हुनमान जी की जयंती भी मनाई जाती है।
सारे पापों से मुक्त करने ओर हर तरह से सुख-आनंद एवं शांति प्रदान करने वाले हनुमान जी की उपासना लाभकारी एवं सुगम मानी गयी है। पुराणों के अनुसार कार्तिक कृष्ण चतुर्दशी मंगलवार, स्वाति नक्षत्र मेष लग्न में स्वयं भगवान शिवजी ने अंजना के गर्भ से रुद्रावतार लिया | विभिन्न मतों के अनुसार देश में हनुमान जयंती वर्ष में दो बार मनाई जाती है। पहली चैत्र शुक्ल पूर्णिमा को व दूसरी कार्तिक कृष्ण चतुर्दशी को। बाल्मीकि रामायण के अनुसार हनुमान जी का जन्म कार्तिक कृष्ण चतुर्दशी को हुआ है। आज के दिन हनुमान जी का षोडशोपचार पूजन करे | पूजन के उपचारो मे गंधपूर्ण तेल मे सिंधूर मिलाकर उससे मूर्ति चर्चित करे| पुन्नाम (हजारा ,गुलहजारा) आदि के फूल चढ़ाए और नैवैद्य मे चूरमा या आटे के लड्डू व फल इत्यादि अर्पण करके ‘वाल्मिकीय रामायण’ अथवा श्री राम चरितमानस के सुंदरकाण्ड का पाठ करे और रात के समय दीप जलाकर छोटी दीपावली का आनद ले |
कार्तिक कृष्ण चतुर्दशी को हनुमत जयन्ती मनाने का यह कारण है लंका विजय के बाद जब हनुमानजी को अयोध्या से विदा करते समय सीता जी ने हनुमानजी को बहुमूल्य आभूषण दिये किन्तु हनुमान जी संतुष्ट नहीं हुए, तब माता सीता जी ने उन्हें अपने ललाट से सिंदूर प्रदान किया और कहा कि “इससे बढ़कर मेरे पास अधिक महत्व कि वस्तु कोई नहीं है, अतएव इसको धारण करके अजर-अमर रहो” यही कारण है इस दिन हनुमान जी को सिंदूर अवश्य लगाया जाता है और हनुमान जयन्ती मनाई जाती है | हनुमत जयंती के पावन अवसर पर हनुमान चालीसा, हनुमत अष्टक व बजरंग बाण का पाठ करने से शनि, राहु व केतु जन्य दोषों से मुक्ति पाई जा सकती है। इस दिन सुंदर कांड का पाठ करते हुए अष्टादश मंत्र का जप भी करना चाहिए।
अष्टादश मंत्र
|| ॐ भगवते आन्जनेयाय महाबलाय स्वाहा ||
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|| शुभम भवतु||
||कल्याण हो ||