नरक चतुर्दशी यानि छोटी दिवाली को रूप चौदस भी कहा जाता है। कहते है इस दिन भगवान श्री कृष्ण ने नरकासुर नामक राक्षस का अंत किया था इसलिए इस दिन को नरक चतुर्दशी के रूप में मनाया जाता है और इस त्यौहार को नरक से मुक्ति पाने वाला त्यौहार भी कहा जाता है।
नरक चतुर्दशी को दिवाली के एक दिन पहले मनाया जाता है। रूप चौदस या नरक चतुर्दशी से कुछ पौराणिक कथाएँ भी जुडी हैं जो इस बात को उजागर करेगी आखिर नरक चतुर्दशी का त्यौहार मनाया क्यों जाता है.
श्री कृष्ण से जुड़ी कथा
एक पौराणिक कथा के अनुसार इस दिन भगवान श्री कृष्ण ने कार्तिक कृष्ण चतुर्दशी तिथि को नरकासुर नामक असुर का वध किया था। नरकासुर नाम के असुर ने 16 हजार कन्याओं को बंदी बना कर रखा हुआ था। तब भगवान श्री कृष्ण ने नरकासुर का वध करके सभी कन्याओं को उसके बंधन से मुक्त करवाया। परन्तु समाज में उन कन्याओं को किसी ने स्वीकार नहीं किया। तब भगवान श्री कृष्ण ने समाज में इन कन्याओं को सम्मान दिलाने के लिए अपनी पत्नी सत्यभामा के साथ मिलकर इन सभी कन्याओं से विवाह कर लिया। 16 हजार कन्याओं को नरकासुर के बंधन से मुक्त करवाने के उपलक्ष्य में नरक चतुर्दशी के दिन दीपदान की परंपरा शुरू हुई।
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पौराणिक नरक चतुर्दशी कथा
रंति देव नाम के एक राजा थे जो बहुत ही शांत स्वभाव और पुण्यात्मा थे। उन्होंने अनजाने में भी कोई पाप नहीं किया था। लेकिन जब मृत्यु का समय आया तो उनके समक्ष यमदूत आ खड़े हुए। तब उन्हें पता चला के उनको स्वर्ग लोक नही नरक लोक लेकर जा रहे है।
उन्होंने यमदूत को बोला मैंने तो कभी कोई पाप कर्म नहीं किया फिर आप लोग मुझे लेने क्यों आए हो अथवा मुझे नरक में क्यों लेजाने आये हो। आप मुझ पर कृपा करें और बताएं कि मेरे किस अपराध के कारण मुझे नरक लोक जाना पड़ रहा है।
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यह सुनकर यमदूत ने कहा कि हे राजन् एक बार आपके द्वार से एक ब्राह्मण भूखा लौट गया था, यह उसी पाप का कर्मफल है। इसके बाद राजा ने यमदूत से एक वर्ष का समय मांगा। तब यमदूतों ने राजा को उनके स्वभाव के कारण एक वर्ष का समय दे दिया। राजा अपनी भूल सुधारने के लिए ऋषियों और मुनियों के पास पहुंचे और उन्हें अपनी सारी कहानी सुनाकर उनसे इस पाप से मुक्ति का उपाय पूछा।
तब ऋषियों ने उन्हें बताया कि कार्तिक मास की कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी के दिन व्रत करें और ब्राह्मणों को भोजन करवा दे। इससे उनके प्रति हुए अपने अपराधों के लिए क्षमा याचना करें। राजा ने वैसा ही किया जैसा ऋषियों ने उन्हें बताया। इस व्रत के प्रभाव से राजा पाप मुक्त हो गये और एक वर्ष पश्चात् उन्हें विष्णु लोक में स्थान प्राप्त हुआ।