दिव्यांगों को उड़ने की आरज़ू देता है नारायण सेवा संस्थान
खुश रहना और संतोषजनक जीवन जीना हर किसी के बस की बात नहीं है, खासकर शारीरिक रूप से असमर्थ लोगों के लिए. उदयपुर, राजस्थान में नारायण सेवा संस्थान की डायरेक्टर वंदना अग्रवाल पिछले 15 सालों से हजारों दिव्यांगों के लिए शारीरिक, सामाजिक और आर्थिक रूप से सशक्त बनाने का काम निस्वार्थ भाव से कर रही है. वंदना ने दिव्यांगों के लिए एक ऐसी दुनिया का निर्माण किया जहाँ हर सुविधा दिव्यांगों को चिकित्सा सेवायें,दवाइयों और प्रौद्योगिकी का निशुल्क लाभ देकर पूर्ण सहायता प्रदान की गई है.
वर्ष 2003 से नारायण सेवा संस्थान की डाइरेक्टर,वंदना ने 8,750 दिव्यांगों को कौशल विकास की ट्रेनिंग देकर उन्हें सशक्त बनाया और पूर्ण रूप से दूसरों पर उनकी निर्भरता समाप्त की. 2,830 दिव्यांग लड़के और लड़कियों को कंप्यूटर और हार्डवेयर का कौशल प्रदान कर उन्हें आर्थिक रूप से सहायता प्रदान की. यही नहीं,वंदना ने सभी दिव्यांगों की प्रतिभा अनुसार उन्हें निखारा और राष्ट्रीय स्तर पर फैशन और टैलेंट शो का आयोजन कर उन्हें एक ऐसा मंच दिया जहां उनकी प्रतिभाओं को नई उड़ान दी.
यह भी पढ़ें-A Saviour of Vedic Traditions : Sadhguru Brahmeshanandacharya
राजस्थान के अजमेर शहर में पली बढ़ी वंदना ने पढ़ाई पूरी करते ही अपना पूरा जीवन महिलाओं और दिव्यांगों के सशक्तिकरण और सहायता में लगा दिया. समाजसेवी वंदना ने दिव्यांग महिलाओं और ग्रामीण क्षेत्रों मेंभी बढ़चढ़ कर काम किया है. उन्हें मुफ्त घर,कपड़े,हैंडपंम्प,विधवाओं को आटा चक्की और उनके बच्चों की पढ़ाई में भी सहायता करती है.
मदर टेरेसा को अपना आर्दश मानने वाली वंदना ने गांवों में जा-जाकर महिलाओं के विकास के लिए हर लड़ाई में भागीदारी निभाई . महिलाओं को सशक्त करने के लिए,उन्हें मुफ्त में सिलाई की ट्रेनिंग भी मुहैया कराती है जिसके बाद सिलाई मशीन भी दी जाती है जिससे महिलाएं आत्मर्निभर रह सके.
अपना अनुभव साझा करते हुए वंदना बताती है कि दिव्यांगों के लिए काम करते करतेउन्होंने अपनी क्षमताओं को जाना. दिव्यांगों के उत्साह और उनकी लगन को देख के उन्हें नयी ऊर्जा मिलती है जिससे वह अपने काम को और बखूभी कर पाती है.
वंदना ने बताया कि “हाल ही में,रेखा सेन के परिवार को संस्थान की ओर से राशन शुरू कराया गया . साथ में, गांव में जाकर हालातों का जायजा लिया.फिर इनको रोजगार से जोड़ने का निर्णय लिया. रेखा और उनकी माँ भी काम करना चाहती है,ऐसे में उनके जज़्बे को देख संस्थान ने उनके लिए श्रृंगार सामग्री की दुकान खुलवा है.”
वंदना अपने आप में एक प्रेरणा है जो दिव्यांगों के संपूर्ण विकास में सहयोग करने को तत्पर रहती है .