21 सितम्बर से शुरू हो रहे हैं शारदीय नवरात्र ! जानें कलश स्थापना का शुभ मुहूर्त
नवरात्रि के दिन माता दुर्गा के नौ भिन्न-भिन्न स्वरूपों को समर्पित होते हैं माँ दुर्गा के नौ रूपों क्रमशः शैलपुत्री, ब्रह्मचारिणी, चन्द्रघंटा, कुष्माण्डा, स्कन्दमाता, कात्यायनी, कालरात्रि, महागौरी और सिद्धदात्री देवी की पूजा का विधान है। नवरात्र ही शक्ति पूजा का समय है, इसलिए नवरात्र में इन शक्तियों की पूजा करनी चाहिए।
नवरात्र के पहले दिन मंगल कामना के लिए कलश स्थापना का विधान है। ऐसी मान्यता है कि शुभ मुहूर्त में कलश स्थापना से पूजन सफल होता है और शुभ फलों की प्राप्ति होती है। घटस्थापना मुहूर्त का चयन अत्यधिक महत्तपूर्ण है। गुरुवार के दिन नवरात्र आरंभ होने के कारण राहुकाल 13:44 – 15:14 तक रहेगा। इस समय कलश स्थापना नहीं करना चाहिए। गुरूवार को प्रात 6:30 बजे से 08:18 तक शुभ मुहूर्त है व सुबह 10.34 बजे तक प्रतिपदा है इसमें घट स्थापना कर सकते हैं कुछ साधक अभिजीत महूर्त में घट स्थापना करना चाहते हैं उनको दोपहर 11:51 – 12:37 के बीच अभिजीत महुर्त में घट स्थापना कर लेनी चाहिये।
घट स्थापना विधि इस प्रकार है:
सबसे पहले उस स्थान को गाय के गोबर से लीपें, जहां घट स्थापना की जानी है। मां दुर्गा के इस महापर्व पर कलश पूजन के समय, पूर्व दिशा की ओर ही मूर्ति रखकर पूजन विधि संपन्न करें. पवित्र स्थान की मिट्टी से वेदी बनाकर उसमें जौ, गेहूं बोएं। फिर उनके ऊपर अपनी इच्छा अनुसार सोने, तांबे अथवा मिट्टी के कलश की स्थापना करें।इस कलश में कुएं का पानी भरकर या पानी मे गंगाजल मिलकर इसमें पूजा की सुपारी, सिक्का, हल्दी की गांठ डाल दें। अब इस कलश के ऊपर पान (डंठल वाले) या आम के पत्ते के साथ नारियल रख दें। यह कलश पूजन स्थान पर स्थापित कर दें। कलश के नीचे थोड़े गेहूं भी रखें। कुंकुम, फूल व चावल से इस कलश की पूजा करें। कलश को सुख समृद्धि , ऐश्वर्य देने वाला तथा मंगलकारी माना जाता है। कलश के मुख में भगवान विष्णु , गले में रूद्र , मूल में ब्रह्मा तथा मध्य में देवी शक्ति का निवास माना जाता है। घर में घट स्थापना करते समय कुछ वास्तु नियमों का पालन करना चाहिए। पूजा स्थल के सामने थोड़ा स्थान खुला होना चाहिए, जहां आसानी से बैठा जा सके। स्थापना स्थल के आस-पास शौचालय या बाथरूम नहीं होना चाहिए।
नवरात्रि व्रत के आरंभ में संकल्प कर सबसे पहले भगवान श्रीगणेश की पूजा कर साथ ही नवग्रह व वरुण का सविधि पूजन करें। फिर मुख्य मूर्ति का पूजन करें। दुर्गादेवी की आराधना-अनुष्ठान में महाकाली, महालक्ष्मी और महासरस्वती का पूजन करे । आपके पास जो भी यथा संभव सामग्री हो, उसी से आराधना करें। संभव हो तो श्रृंगार का सामान और नारियल-चुन्नी जरूर चढ़ाएं।
नवरात्रि में नौ दिन मां भगवती का व्रत रखने का तथा प्रतिदिन दुर्गा सप्तशती का पाठ करने का विशेष महत्व है जिसे कर हर मनोकामना पूरी हो जाती है साथ ही सभी प्रकार के कष्टों से छुटकारा मिलता है।
आचार्य प्रवीन चौहान