विषय – अक्षर ब्रम्ह योग । (8वां अध्याय – श्री कृष्ण द्वारा अर्जुन के पूछे सात प्रश्नों के उत्तर)
नवरात्र प्रथम दिवस – विषय की भूमिका
- 8वां अध्याय अर्जुन और भगवान कृष्ण जी के बीच वार्तालाप है ।
- अर्जुन श्री कृष्ण जी से प्रश्न पूछते हैं उनमें जिज्ञासा हैं । जिज्ञासा अच्छी चीज है ।
- यह वार्तालाप जो होता है बड़ा महत्वपूर्ण होता है इसमें कई समाधान हो जाते हैं । जो वार्तालाप सुनते हैं उनका भी समाधान हो जाता है और जो कर रहे हैं उनका भी समाधान हो जाता है ।
- अक्षर ब्रह्म योग– आठवां अध्याय । इसमें 7 प्रश्न है जो कि अर्जुन भगवान श्री कृष्ण से पूछते हैं – ब्रह्म क्या है? अध्यात्म क्या है? कर्म क्या है? अधिभूत क्या है? अधिदैव क्या है? अधियज्ञ क्या है? और अंतकाल में आप कैसे स्मरण में आते हैं?
- आज इस अध्याय में बताए गए प्रश्नों से पहले कृष्ण जी और अर्जुन के बीच जो संवाद है उसकी भूमिका लेंगे ।
- गीता ज्ञान की गंगोत्री है ।
- गीत – अब नवयुग की गंगोत्री से बही ज्ञान की धारा है….।
विद्यार्थियों द्वारा प्रश्नोत्तरी के सार –
- यदि किसी चीज को हम दिल से चाहते हैं तो क्यों नही मिलती है?
- किसी भी चीज का मिलना योग्यता और पात्रता पर निर्भर है भले ही आप उसे कितने भी दिल से चाहें यदि आपमें वह पात्रता है योग्यता है तो वह जरूर मिलेगी । मांग के साथ–साथ पात्रता और योग्यता देखा जाता है ।
- अंतर्मुखी होने का मतलब है इंट्रोवर्ड होना, मतलब अपने आपको देखना, अपने आप को जानना । अंतर्मुखी होना अच्छी बात है पर निरंतर अंतर्मुखी बने रहना व्यक्ति को डिप्रेशन में तनाव में ले जा सकता है । इसलिए अंतर्मुखी के साथ–साथ बहिर्मुखी भी होना चाहिए दोनों को बैलेंस करके चलना चाहिए।
- धर्म और संप्रदाय क्या है?
- धर्म एक है, शाश्वत है, अनादि है, अनंत है और संप्रदाय अलग–अलग होते हैं अलग–अलग तरह के छोटे–छोटे शाखा संप्रदायों के रूप में हैं।
धर्म एक ही है जिसका नाम है सनातन धर्म । सभी धर्म से निकलते हैं – हिन्दू, मुस्लिम, सिख, ईसाई, बौद्ध आदि । धर्म कभी भागों में नहीं बट सकता ।
- पं. श्री राम शर्मा आचार्य जी से श्रद्धेय डॉ. प्रणव पण्ड्या जी की पहली मुलाकात 1963 में तपोभूमि मथुरा में हुयी ।
- गुरू से प्यार और परमात्मा से प्यार का कोई विकल्प नहीं होता एक बार प्यार हो गया तो बस हो गया।
- मनुष्य का वास्तविक विकास तब होता है जब उसे गुरु मिल जाते हैं बिना गुरु के इंसान का जीवन अंधकार की तरह है ।
विषय वस्तु सार–
- नवरात्र प्रथम दिवस – आज की देवी है शैलपुत्री ।
दुर्गा का प्रथम स्वरुप, चेतना के विकास का प्रथम चरण जो कि पत्थर/हिम को भेदकर निकलती है । चेतना जब विकसित होती है तो पर्वत राज हिमालय के यहां से निकलती है । हिमालय राज के घर चेतना पाषाण भेदकर अंकुरित होती है पर्वत कन्या के रूप में । तपश्चर्या का पहला दिन । साधना के लिए संकल्पित होकर आती हैं ऐसा कहा जाता है देवी ने हजारों वर्षों तक कड़ी तपस्या की । बिल्वकेश्वर पर्वत (हरिद्वार स्थित) में तपस्या की । शिव की पत्नी पार्वती का स्वरुप है, ऐसे देवी के नौ रूप है । दुर्गा के पार्वती स्वरूप का प्रथम अवतरण शैलपुत्री के रूप में हुआ । आज का दिन पुत्री रूप में देवी का दिन, संकल्प यही हो पुत्री बचाओ का । दहेज की वजह से मारी जाती हैं उनको भी और जो गर्भ में कन्या मार दी जाती हैं उनको भी बचाएं ।
- भगवत गीता का आठवां अध्याय भगवान श्री कृष्ण के वचनों का विषय है । अध्याय आठ भगवान श्री कृष्ण और अर्जुन के बीच संवाद है । भगवान श्री कृष्ण अक्षर ब्रम्ह योग में सात प्रश्नों के उत्तर देते हैं ।
- गीता के हर अध्याय के अंत में लिखा है श्री कृष्ण अर्जुन संवादे । ये क्या है – गुरु शिष्य के बीच संवाद है । यह संवाद बड़ा विलक्षण है क्योंकि श्री कृष्ण विराट है परम ब्रम्ह हैं, वह शिव, विष्णु और ब्रह्म के ऊपर है । भगवान श्री कृष्ण के विराट रुप दिखने से पहले ही अर्जुन पूछ लेते हैं ब्रम्ह का स्वरूप क्या होता है इसके साथ और भी कई प्रश्न पूछ लेते हैं । इसप्रकार भगवान श्री कृष्ण और अर्जुन के संवाद से भगवत गीता का प्रारंभ होता है ।
- भगवत गीता भगवान श्री कृष्ण का गीत है । गीत से गीता बना है । पुराणों में संकलनों में लगभग 24 गीताओं की चर्चा की गई है । लेकिन एक गीता में एक विशेषण लगाया गया “श्रीमद् भगवत” गीता के पहले । श्रीमद सम्मान के लिए और भगवत भगवान की कही हुई गीता । गीता कई सारी हैं पर ये श्रीमद् भगवत गीता है ।
- और कई ऐसी गीता है जैसे अष्टावक्र गीता जिसमें राजा जनक के प्रश्नों का समाधान अष्टावक्र करते हैं उसे अष्टावक्र गीता कहा गया है ।
- भगवान श्री कृष्ण के नाम से कई गीता ग्रंथ है जैसी कि भागवत में उद्धव गीता । उद्धव ने प्रश्न पूछे हैं और भगवान कृष्ण ने जवाब दिया।
- उद्धव भगवान कृष्ण के बहुत पुराने मित्र थे । उद्धव ब्रज के समय से उनके दोस्त थे । अर्जुन से तो बाद में मुलाकात हुई जब वह द्वारिका गए।
- उद्धव बड़े ज्ञानी थे, शास्त्रों के मर्मज्ञ थे, बड़े विचारशील थे और ऐसा कहा जाता है कि संबंधों में भी भगवान कृष्ण के भाई लगते थे ।
- जब भगवान श्रीकृष्ण गोकुल से मथुरा आये तो उन्होंने कंस का वध किया । विधि का विधान ऐसा होता कि सब सामयिक हो जाता है सारा सत्य । ऐसा लगने लगता है कि कैसे होगया सब ।
- वसुदेव सुतं देवं कंस चाणूर मर्दनम् । देवकी परमानंदं कृष्णं वंदे जगद्गुरुम् ॥
(वसुदेव के पुत्र, कंस और चाणूर के मर्दन करने वाले, माता देवकी को परम आनन्द प्रदान करने वाले, सम्पूर्ण जगत् के गुरु श्री कृष्ण की मैं वन्दना करता हूँ।)
कंस और चाणूर को मारा उन्होंने । भगवान श्री कृष्ण ढेर सारे राक्षसों को मार चुके थे इसलिए भगवान कृष्ण के विलक्षण रुप को तो लोग देख चुके थे।
- भगवान श्री कृष्ण और राम जी में अंतर क्या है? – भगवान राम मर्यादाओं के अंतर्गत थे इसलिए मर्यादा पुरुषोत्तम कहलाए । और भगवान कृष्ण लीला करते थे इसलिए लीला पुरुषोत्तम कहलाए । भगवान राम 16 कला के अवतार हैं और भगवान कृष्ण 20 कलाओं के ।
- कृष्ण जी की हर लीलाओं के पीछे एक रहस्य छिपा रहता है । चाहे वह गोपियों के प्रसंग में हों या अन्य और कोई ।
- छोटी उम्र में ही उन्होंने कंस और चाणूर को मारा, लगभग 12 वर्ष की उम्र में । उन्होंने हाथी पर विराजमान होकर एक मुट्ठी मारी और कंस मर गया ।
- तब मथुरा के महाराज अग्रसेन ने शासन संभाला । और सबसे ज्यादा विरह में जो थे वो कौन थे कृष्ण के प्रेम में – गोपिका ।
- कृष्ण और गोपिकाओं के बीच का प्रेम आध्यात्मिक प्रेम था ।
- श्री कृष्ण के अलावा जीवन में और कोई है गोपिकाओं को मालूम ही नहीं था, उनकी समस्या थी उस प्रेम को कैसे सुलझाएं, उस प्रेम के विषाद को जो गोपियों में था उसको कैसे दूर करें।
- ऐसे में उद्धव जो कृष्ण जी के मित्र थे उनसे उन्होंने कहा – उद्धव तुम गोकुल चले जाओ वृंदावन चले जाओ और देख कर के आओ कि मुझे जो प्रेम करती थी उन गोपीकाओं की स्थिति क्या है? जब बात होती थी नंदगाव की, जब बात होती थी बरसाने की, जब बात होती थी गोवर्धन की भगवान कृष्ण और विकल हो जाते थे । अब उद्धव को समझ नहीं आता था कृष्ण जैसा ज्ञानी, तबतक श्री कृष्ण धीरे–धीरे करके गुरुकुल में पढ़कर के ज्ञान अर्जित कर चुके थे । संदीपनी ऋषि के आश्रम में रहे सुदामा के साथ में । बड़े–बड़े विद्वानों का सानिध्य मिला उनको । तो उद्धव ने सोचा कि कृष्ण जैसा ऐसा महान ज्ञानी विकल क्यों होता है? मन स्थिर क्यों नहीं रहता है?
- उद्धव को अपने ज्ञान पर बड़ा अभिमान था । सोचता था जहां ज्ञान है वहां पर यह रोना धोना अच्छा नहीं लगता, क्या रोते रहते हो ज्ञान की बातें करो।
- ज्ञानी व्यक्ति को ज्ञान का अहंकार होता है और जो प्रेम करता है, स्नेह करता है, जो अन्तर्जगत से प्रेम करता है उसको अभिमान नहीं होता । सबसे बड़ी बात यह है कि कृष्ण से आप प्रेम कर सकते हैं तो प्रेम के माध्यम से ही उनको प्राप्त कर सकते हैं ज्ञान के माध्यम से नहीं।
- उन्होंने सोचा कि सबसे पहले तो प्रेम की स्थिति क्या है? मोह नहीं है ये प्रेम है ये समझाना चाहिए उद्धव को । उद्धव को कहते हैं कि मैं इन्हें नहीं समझा सकता कि मुझसे प्रेम मत करो, मेरे वश में तो नहीं हैं इन्हें समझना तुम(उद्धव) समझा दो उन्हें जाकर । उद्धव ने कहा इसमें क्या बात है ज्ञान की दो तीन बातें सिखाएंगे । उद्धव ने कहा ठीक है तुम हमारे मित्र हो इतना हम तुम्हारे लिए करेंगे हम गोपिकाओं को समझाएंगे । ताकि ज्ञानी बनने के बाद वो कुछ करें।
- उद्धव गए उन्होंने गोपियों की दशा देखी, गोपियों की बातें सुनी । जब ब्रम्ह की चर्चा की, जीवन की चर्चा की तो ज्ञान समाधान के प्रश्न उपजते हैं । गोपियों की दशा प्रेम में विकल थीं । उद्धव ने जब पूछा तुम ब्रम्ह के बारे में जानती हो? ईश्वर को जानती हो? तब गोपियों ने कहा उद्धव तुम्हारा ज्ञान बासी है, उधार का है । हमको जो ज्ञान मिला है श्री कृष्ण से मिला है । वो ज्ञान प्रेम का मिला है ।
- ब्रज क्षेत्र की परिक्रमा होती है 84 कोषों की । ब्रज मतलब विचरण करना, विराम न लेना वहीं पर रहना । श्री कृष्ण जी कहते हैं मैं ब्रज क्षेत्र से एक कदम भी कहीं नहीं जाता । मैं ब्रज में ही विचरण करता रहता हूँ । मैं कहीं भी रहूं मेरा मन वहीं बसता है । ब्रज क्षेत्र मुझे बैकुंठ से भी ज्यादा प्रिय है । भगवान क्षीर सागर में बैठें हैं, बैकुंठ में बैठे हैं पर इसके बावजूद मन जो है वह वहां हैं क्यों? क्योंकि ब्रज जो हैं वहां प्रेम बसा है, भक्ति बसी हुई है । इसलिए मैं वहाँ रहता हूँ जहां प्रेम बसा है ।
- इसलिए भगवान कृष्ण गीता के 10वें अध्याय के 10 श्लोक में कहते हैं ददामि तं बुद्धियोगम।
तेषां सततयुक्तानां भजतां प्रीतिपूर्वकम्।
ददामि बुद्धियोगं तं येन मामुपयान्ति ते॥
भावार्थ – उन निरंतर मेरे ध्यान आदि में लगे हुए और प्रेमपूर्वक भजने वाले भक्तों को मैं वह तत्त्वज्ञानरूप योग देता हूँ, जिससे वे मुझको ही प्राप्त होते हैं॥10/10॥
- कहते हैं गोपिकाओं की दशा उस समय ऐसी थी –
बिनु गोपाल बैरिन भई कुंजैं।
तब ये लता लगति अति सीतल¸ अब भई विषम ज्वाल की पुंजैं।
बृथा बहति जमुना¸ खग बोलत¸ बृथा कमल फूलैं अलि गुंजैं।…
- जब उद्धव ने ज्ञान की बातें की तो गोपियों ने एक बात कही–
उधो, मन न भए दस बीस।
एक हतो सो गयौ स्याम संग, को अवराधै ईस॥
उद्धव हमारा मन दस बीस नहीं है एक ही है । एक मन था वह श्याम के साथ चले गया अब कौन तुम्हारे ब्रम्ह के साथ रहे ।
- ऐसा प्रगाढ़ प्रेम, प्रगाढ़ भक्ति ऐसा प्रगाढ़ समर्पण । उद्धव ज्ञान नहीं बता पाए और गोपियों के प्रश्नों का उत्तर भी नहीं दे पाए । गोपिकाओं ने उद्धव को भक्ति योग सीखा दी, कि भक्ति योग की महिमा क्या है?
- जब उद्दव लौटे तो प्रेम के रस से झलक रहे थे । प्रेम से भरे हुए थे।
- बात यह है कि प्रश्न कहां से पूछे जाएं और उत्तर कहां से दिए जाएं।
- प्रश्न कौन पूछ रहा है, किस धरातल पर पूछ रहा है और उत्तर कौन दे रहा है किस धरातल पर दे रहा है । इससे प्रश्नोत्तरी का क्रम बनता है ।
- भगवत गीता और अन्य जो ग्रंथ हैं उसमें प्रश्न है उत्तर है ।
- अर्जुन के सात प्रश्नों की हम चर्चा करेंगे । इससे पहले ये भी समझना पड़ेगा कि प्रश्न किसे कहते हैं? प्रश्न करने वाला कौन होता है, उत्तर देने वाला कौन होता है । प्रश्न के कई आयाम हैं।
- पहला आयाम क्या है? – कि पूछने वाले को विषय से ज्यादा मतलब है कि नहीं । पहला आयाम जो प्रश्न का है वह है कौतूहल, जिज्ञासा है कि नहीं । जैसे बच्चा कौतूहल के मारे माँ से 4,5 प्रश्न कर पूछ लेता है । बच्चे के मन की कौतूहल(चंचल भाव दशा) स्थिति, जिज्ञासा वाली स्थिति।
- दूसरा आयाम जो होता है वाद के लिए होता है । प्रश्न तर्क के लिए पूछे जाते हैं , वाद के लिए किए जाते हैं । वाद–विवाद के प्रश्न होते हैं । हमारे यहां दर्शन लिखे गए, उपनिषद लिखे गए । पर उपनिषदों में स्वर जो है पूरा का पूरा भावों का है भक्ति का है, दर्शन में बुद्धिवाद का है । हर एक में गहरी शिक्षा छिपी हुई है वह है प्रेम।
- तीन चीजें है तर्क(logics), तथ्य(facts) और प्रमाण । (Evidences)
- प्रश्न को तर्क, तथ्य के द्वारा प्रमाणित करना ।
- कुल मिलाकर प्रश्नों की संख्या कम नहीं होती । प्रश्न करने वाला संतुष्ट नहीं होता, कभी कभी तो उत्तर देने वालों का मजाक भी उड़ा देता है । पूछने वाला आपकी परीक्षा लेना चाहता है या आपका मजाक उड़ाना चाहता है समझ में नहीं आता।
- परीक्षा दो तरह की होती है लिखित और मौखिक।लिखित में आपके ज्ञान का परिचय होता है और मौखिक में आपके व्यक्तित्व का । दोनों परीक्षाओं के लिए अपने आप को तैयार करना पड़ेगा।
- वास्तव में प्रश्न परीक्षा के लिये नहीं पूछे जाते हैं प्रश्न ज्ञान की पिपासा के लिए पूछा जाता है गुरु से । जैसे अर्जुन ने भगवान श्री कृष्ण से पूछा । उसके अंदर कुछ प्यास है, जानने की इच्छा है, ललक है इसके लिए हम अपने वरिष्ठ से गुरु से प्रश्न पूछते हैं।
- प्रश्न का यहां पर एक और आयाम है जहां पर संवाद होता, जहां तर्क नहीं होते । विविध तल पर समाधान होते हैं।
- प्रश्न के क्या आयाम होते हैं? उत्तर के क्या आयाम होते हैं? इसके ऊपर Depend करता है कि आप क्या बोल रहे हैं । आपकी जो जिज्ञासा है, आपके जो प्रश्न हैं उसके उत्तर में एक प्रकाश होता है ।
- आपका मन प्रकाशित होकर उस उत्तर को ग्रहण कर लेता है ।
- प्रश्न के उत्तर देने के कई प्रकार हैं – एक प्रकार है वाणी । शब्द । शब्दों में घुले हुए विचार । शब्दों में लिपटे हुए तर्क । शब्दों में लिपटे हुए अनुभूति, जीवन का यथार्थ । जीवन के अनुभवों से उत्तर।
- जब प्रश्न पूछा जाता है तो उत्तर देने वाला वहां उपस्थित है कि नहीं यह देखा जाता है ।अगर आप उपस्थित नहीं हैं वहां, तो आप जवाब नहीं दे सकते।
- हमारे यहां जो साहित्य रचा गया । उसमें विचित्र प्रकार के तल लेखन के मिलते हैं । जहां जिज्ञासा है, समाधान है, समाधान की प्रेरणा है ऐसे प्रश्न और उत्तरों का स्थल हमें उपनिषदों में मिलता है । जैसे ये ।
- कई ऐसे प्रसंग है जहां प्रश्न उत्तर के वाद मिलते है । जैसे यक्ष प्रश्न ।
- युधिष्ठिर से यक्ष ने पूछे । यक्ष स्वयं यमराज थे । यमराज स्वयं आये थे परीक्षा लेने के लिए । युधिष्ठिर के व्यक्तित्व की चेतना का तल ऊंचाई में था । उनके व्यक्तित्व से वे संतुष्ट हो गए । व्यक्तिव की परख के लिए प्रश्न पूछे गए थे।
- प्रश्नों के कुछ और ऐसे तल है जिसकी चर्चा पुराणों में मिलती है । जैसे जनक के प्रसंग में । राजर्षि जनक विदेह कहलाते थे देह से परे । अष्टावक्र के प्रश्न पूछने के प्रसंग में ये कथा है ।
- अष्टावक्र के पिता महान विद्वान थे परम ज्ञानी थे । उनका गुरुकुल चलता था जिसमें कई विद्यार्थी पढ़ते थे । वहां के प्रसिद्ध प्रतिष्ठित आचार्य थे । उनका नाम था कोहड़ । अष्टावक्र के पिता महर्षि कोहड़ शास्त्र ज्ञान की बातें कर रहे थे, कई लोग इकट्ठे थे उनकी गर्भवती पत्नी भी साथ बैठीं थी उनके । गर्भ में अष्टावक्र पनप रहे थे । पत्नी को कुछ समझा रहे थे और जो लोग आए थे उनको भी ज्ञान की बातें बता रहे थे । उनके ज्ञान के सामने कोई तर्क नहीं करता था । क्यों– उनका ज्ञान सर्वोपरि था । तो अंदर से अष्टावक्र बोले पिता जी आपके इन बातों का कोई अर्थ नहीं है ये सब बासी हो गयी हैं । हजारों साल से पढ़ी जा रहीं है वो सब बातें हैं । आप स्वयं इसमें अनुपस्थित हैं । आपकी उपस्थिति ही नहीं है इसमें । पिता पढ़ा हुआ पुराना ज्ञान बोल रहे थे । आपकी स्मृति बड़ी तीव्र है लेकिन ये नहीं पता चलता कि आपके पास ज्ञान भी है कि नहीं । बेटा अंदर से ज्ञान दे रहा है गर्भ से ही । बिना गहराई के प्रश्नों के जवाब दिए जा रहे हैं पहले प्रश्नों की गहराई में जाओ सोचो फिर जवाब दो ऐसे कुछ भाव थे गर्भस्थ अष्टावक्र के । आपको प्रश्नों में उपस्थित होना चाहिए । जो मन में आये वो जवाब दिए जा रहे हो बिना उपस्थिति के । गर्भस्थ शिशु पिता के ज्ञान का उपहास उड़ाए वह भी वो पिता जो परम ज्ञानी समझते हैं अपने आपको उस समय । बड़े प्रतिष्ठित थे ज्ञानियों के बीच वे, समाज में इनकी प्रतिष्ठा थी । ब्राम्हण थे, तपस्वी थे तप का प्रकाश था उनके अंदर पर संवेदना नहीं थी संवेदना होती तो श्राप नहीं देते अपने बेटे को । ऊर्जा थी और तप की ऊर्जा से श्राप निकलता है अगर संवेदना नहीं है तो । उन्होंने गर्भस्थ शिशु को श्राप दिया कि हमारे ज्ञान का, शब्दों का, विचार का उपहास कर रहा है, हमारी बात का मजाक उड़ाता है गर्भ से ही । मैं सिर्फ बौद्धिक हूँ ये बोल रहे हो मुझे, जाओ मैं तुम्हें शरीर में आठ जगहों से टेढ़े – मेढ़े होने का श्राप देता हूँ कि 8 जगहों से तू टेढ़ा–मेढ़ा होकर पैदा होगा । अष्टांग योग में तुम प्रवीण नहीं होगे । इस श्राप के पीछे तपोबल था, संवेदना नहीं थी ।
- ऐसा प्रसंग सुखदेव और व्यास के बीच भी देखने को मिलता है ।
- अष्टावक्र जो थे पिता जी का श्राप सुनने के बाद भी गर्भ में हंसे और बोले पुराण कथा कहती है कि आंगन के टेढ़े होने से आकाश टेढ़ा नहीं होता । शरीर के टेढ़े होने से क्या होता है? आप ही बताइए आप तो ज्ञानी है । आंगन(शरीर) के टेढ़े होने से क्या होता है मुझे तो परब्रम्ह खोजना है आकाश खोजना है । मुझे शरीर से कोई मतलब नहीं मुझे तो भगवान की आराधना करनी है । शरीर टेढ़ा है तो क्या हुआ कोई बात नहीं परंतु मेरे अंदर की चेतना निरंतर परमात्मा को तलाशती रहेगी।
- अनुभवों के साथ ज्ञान में स्वयं प्रतिष्ठित थे अष्टावक्र । कथा कहती है अष्टावक्र ने जन्म लिया, उनके पिता जी परम विद्वान थे । जनक के यहां बुलावा आया विद्वता के लिए, विद्वानों के परीक्षण के लिए । ऐसा कहा जाता है कि जनक के यहां एक मंत्री था उनका, वंदी था अर्थात जो वंदन करते हैं, वंदना करने वाला – वंदी । वंदी वेश में विद्वान था राजा जनक के यहां आने वालों की परीक्षा लेता था और जो परीक्षा में पास होते थे उनको छोड़ देता था और जो फेल हो जाते थे उनको समुद्र में डूबा देता था । अभी तक उसके पास आकर कोई पास ही नहीं हुआ था । विचित्र था बड़ा इनाम देता था जीतने वालों को भी हारने वालों को भी । इनाम के चलते लोग वंदी के पास चले जाते थे।
- ये पूरी कथा महाभारत में आई है । बड़े प्रतिष्ठित प्रश्न, अष्टावक्र के पिता को भी समुद्र में डूबा दिया था क्योंकि वह जवाब नहीं दे पाए थे।
- बहुत कठिन प्रश्न पूछता था । माँ रोयीं, अष्टावक्र को गुस्सा आया कि पिता जी गए थे जनक के यहां शास्त्रार्थ करने, प्रश्नों का उत्तर देने और असफल हुए तो वंदी ने समुद्र में डूबा दिया । ऐसे कई विद्वानों को डूबा दिया गया । माँ बोली हम क्या करें? अष्टावक्र बोले चिंता न करें माँ मैं जाऊंगा और इस वंदी के प्रश्नों का उत्तर दूंगा । आप चिंता न करें कुछ नहीं होगा । हमारे पास परमात्मा का ज्ञान है ।
- अष्टावक्र की चेतना वंदी की चेतना से भी ऊपर थी । अंततः वंदी के प्रश्न पराजित होगये अष्टावक्र के उत्तर जीत गए । उन्होंने कहा कुछ और पूछो, वंदी ने कहा अब कुछ नही पूछना । वे वंदी को बोले तुम पराजय स्वीकार करते हो तो जाओ समुद्र में डूबो और जितने लोग समुद्र में डूबे उनको लेकर आओ । वंदी ने पराजय स्वीकार की और अपना परिचय दिया में वरुण देव का दूत हूँ । वरुण लोक में एक बहुत बड़ा यज्ञ होने वाला है उसके लिए विद्वान ब्राम्हणों की जरूरत है इसलिए उनके द्वारा हमें नियुक्त किया गया था कि जनक के दरबार में विद्वानों का सत्संग होता रहता है और आप वहां जाओ और विद्वान ब्राम्हणों की परख करो और लेकर आओ । वंदी बोले हमने उनको समुद्र में डुबाया नहीं है सभी वरुण लोक में है यज्ञ के बाद सबको वापस कर दिया जाएगा।
- पहली बार छोटे बालक अष्टावक्र की मेधा प्रतिभा का लोहा माना जनक ने ।
- अष्टावक्र गीता का जन्म यहीं से होता है । यह अष्टावक्र और जनक के बीच संवाद है । यह शब्दों का खेल नहीं अनुभूतियों का सम्प्रेषण है । अपने आप में विलक्षण है । जो कुछ भी है संवाद है । प्रश्न और उत्तर दोनों का तल समान था । दोनों ज्ञानी स्तर के थे ।
- जहाँ समबुद्धि वहां संवाद ।
- ऐसे ही एक और प्रसंग आता है । श्री माँ और महर्षि अरविंद के बीच जब महर्षि अरविंद सावित्री महाकाव्य लिख रहे थे । 1950 से लिखने लगे और अपनी महासमाधि से पहले समाप्त किये ।
- अर्जुन के साथ प्रश्नों की चर्चा से पहले हमें समझना चाहिए कि प्रश्न किसको कहते हैं? – प्रश्न वह होते हैं जो एक विद्यार्थी और शिक्षक के बीच में सेतु बनाते हैं, संबंध बनाते हैं । प्रश्नोत्तरी में कुछ बातें ऐसी होती हैं जो हमारे दिल को छू जाती हैं । विचार मिलते हैं भावनाएं झंकृत होती हैं।
- एक और संवाद हैं यम–नचिकेता संवाद । कठोपनिषद का ।
- यम मृत्यु के देवता हैं और नचिकेता के गुरु बन गए । नचिकेता को श्राप मिला हुआ था यम को सौपें जाने का । जब यम के यहां गए तो यम वहां थे ही नहीं प्रतीक्षा करते रहे । यम आये तब क्षमा मांगी । और कहा तुम तीन वर मांगो तब उन्होंने आपने लिए कुछ नहीं मांगा सब अन्यों के लिए मांगा ।
- अगर अष्टावक्र ज्ञान के शिखर पर थे तो नचिकेता जिज्ञासा के शिखर पर ।
- इस प्रकार आगे और पूरी की पूरी कथा है यम–नचिकेता संवाद।उपनिषदों के ज्ञान का एक तल।
- यहां हम बात कर रहे हैं भागवत गीता की । प्राण अर्जुन कर रहे हैं और श्री कृष्ण उत्तर दे रहे हैं।
- एक और गीता भगवान ने कही थी जिसका नाम था अनुगीता ।
- अर्जुन ने यह कहा आपने युद्ध क्षेत्र में गीता कही थी उसे फिर से सुनना चाहता हूं । मेरा मन स्थिर एकाग्र नहीं था अब मेरा मन शांत है । भगवान ने कहा मैं कुछ कह तो देता हूँ लेकिन वो तल नहीं आएगा यहां पर।
- युद्ध क्षेत्र में परमात्मा के रूप में श्रीकृष्ण जी ने गीता कही थी । कृष्ण अनुपस्थित थे वहां और परम ब्रम्ह की उपस्थिति थी वहां पर । गीता में श्री कृष्ण उवाच नहीं आता बल्कि श्री भगवानुवाच आता है । कृष्ण के व्यक्तित्व से गीता है । इसलिए तुम जो सुन रहे हो अभी वह अनुगीता है । असली तो वही है जो युद्ध क्षेत्र में कहा गया।
- कृष्ण कहते हैं वहां पर तो कृष्ण थे ही नहीं क्योंकि भगवत गीता में तो मैं अपना परिचय स्वयं देता हूँ।
- भगवान अध्याय 10 मेंकहतेहैं
वृष्णीनां वासुदेवोऽस्मि पाण्डवानां धनञ्जयः।
मुनीनामप्यहं व्यासः कवीनामुशना कविः॥
भावार्थ–
वृष्णिवंशियों में (यादवों के अंतर्गत एक वृष्णि वंश भी था) वासुदेव अर्थात् मैं स्वयं तेरा सखा, पाण्डवों में धनञ्जय अर्थात् तू, मुनियों में वेदव्यास और कवियों में शुक्राचार्य कवि भी मैं ही हूँ॥10/37॥
- इसी प्रकार वृक्षों में पीपल के रूप में मौजूद हूँ और मंत्रों में, छंदों में गायत्री के रूप में हूँ । विभूतियों के रूप में हैं कृष्ण पर असली में परम ब्रम्ह हैं वह।
- एक संवाद और है गीता में जो संजय और धृतराष्ट्र के बीच है ।
- दो संवाद है एक संजय और धृतराष्ट्र संवाद । दूसरा संवाद है कृष्ण और अर्जुन के बीच ।
- धृतराष्ट्र पूछते हैं –
धर्मक्षेत्रे कुरुक्षेत्रे समवेता युयुत्सवः।
मामकाः पाण्डवाश्चैव किमकुर्वत संजय॥1/1
भावार्थ–
धृतराष्ट्र बोले– हे संजय! धर्मभूमि कुरुक्षेत्र में एकत्रित, युद्ध की इच्छावाले मेरे और पाण्डु के पुत्रों ने क्या किया? ॥1/1॥
- अर्जुन की यात्रा विषाद से आरंभ होती है, विषाद की वजह से प्रश्न ही नहीं पूछता है, अर्जुन बार बार बोलते हैं कि युद्ध नहीं करूंगा नहीं करूंगा तब भगवान बोलते हैं – अपने अंदर के विषाद को छोड़ो । दुर्बलता को त्यागो।
क्लैब्यं मा स्म गमः पार्थ नैतत्त्वय्युपपद्यते।
क्षुद्रं हृदयदौर्बल्यं त्यक्त्वोत्तिष्ठ परन्तप॥ (2/3)
भावार्थ–
इसलिए हे अर्जुन! नपुंसकता को मत प्राप्त हो, तुझमें यह उचित नहीं जान पड़ती । हे परंतप! हृदय की तुच्छ दुर्बलता को त्यागकर युद्ध के लिए खड़ा हो जा॥2/3॥
- अर्जुन भगवान से पूछते हैं कि मैं क्या करूँ? आज हर युवा के मन में यही प्रश्न है क्या करना चाहिए और क्या नहीं करना चाहिए बस युवा के रूप में अर्जुन संकेतवाचक है जो श्रीकृष्ण से पूछते हैं कि मैं क्या करूं?
- अर्जुन बोलते हैं मुझे अपने शरण में ले लीजिए (अध्याय 2/7) । इसके बाद भी अर्जुन बोलते हैं कि नहीं लड़ूंगा, नहीं लड़ूंगा । भगवान बोलते हैं –
कार्पण्यदोषोपहतस्वभावः पृच्छामि त्वां धर्मसम्मूढचेताः।
यच्छ्रेयः स्यान्निश्चितं ब्रूहि तन्मे शिष्यस्तेऽहं शाधि मां त्वां प्रपन्नम्॥
भावार्थ–
इसलिए कायरता रूप दोष से उपहत हुए स्वभाव वाला तथा धर्म के विषय में मोहित चित्त हुआ मैं आपसे पूछता हूँ कि जो साधन निश्चित कल्याणकारक हो, वह मेरे लिए कहिए क्योंकि मैं आपका शिष्य हूँ, इसलिए आपके शरण हुए मुझको शिक्षा दीजिए ॥2/7॥
- इसकेबादभगवानबोलतेहैं
अशोच्यानन्वशोचस्त्वं प्रज्ञावादांश्च भाषसे।
गतासूनगतासूंश्च नानुशोचन्ति पण्डिताः॥
भावार्थ–
श्री भगवान बोले, हे अर्जुन! तू न शोक करने योग्य मनुष्यों के लिए शोक करता है और पण्डितों के से वचनों को कहता है, परन्तु जिनके प्राण चले गए हैं, उनके लिए और जिनके प्राण नहीं गए हैं उनके लिए भी पण्डितजन शोक नहीं करते ॥2/11॥
- अर्जुन के प्रश्नों के विविध आयाम हैं पर तर्क के जाल में भगवान कृष्ण नहीं फंसते । क्योंकि भगवान कृष्ण पुरुषोत्तम है ।
- गीता नर और नारायण के बीच का संवाद है । भगवत गीता अनुभूतियों की यात्रा है । भगवान, अर्जुन को इस लायक बनाते हैं कि वह अपने अनुभूतियों से कुछ पूछ सके।
- अर्जुन ने सात प्रश्न पूछे श्रीभगवान् कृष्ण से – वह ब्रम्ह क्या है? अध्यात्म क्या है? कर्म क्या है? अधिभूत क्या है? अधिदैव क्या है? अधियज्ञ क्या है? और अंत काल में वह किस प्रकार स्मरण किए जाते हैं?
- कल पहले प्रश्न की चर्चा करेंगे वह ब्रम्ह क्या है? ब्रम्ह की व्याख्या से आरंभ करेंगे आगे की चर्चा ।
डाउनलोड करें – नवरात्र प्रथम दिवस : अक्षर ब्रम्ह योग
—————————————- ॐ शान्ति ———————————————————-
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