Post Image

नवरात्रि विशेष: स्त्री का सम्पूर्ण जीवनचक्र है दुर्गा मां के नौ स्वरूप

नवरात्रि  मां दुर्गा अथवा पार्वती के नौ स्वरूपों की एक साथ आराधना करने का उत्सव है। नवरात्रि में पूजने वाली इन नौ देवियों  को पापों के विनाशिनी कहा जाता है, हर देवी के अलग अलग वाहन हैं, अस्त्र शस्त्र हैं परंतु यह सब एक हैं। नवरात्रि में दुर्गा पूजा के अवसर पर बहुत ही विधि-विधान से माता दुर्गा के नौ स्वरूप  की पूजा-उपासना की जाती है।  वास्तव में दुर्गामां  के नौ स्वरूप एक स्त्री का जीवन चक्र है. यह संसार में स्थित समस्त स्त्रियों की  कहानी कहते हैं. कैसे? आइये जानते हैं-



शैलपुत्री

मां दुर्गा के पहले स्वरूप को ‘शैलपुत्री’ के नाम से जाना जाता है. यह नवरात्रि में पूजी जाने वाली सबसे पहली माता हैं. इनके नाम को लेकर मान्यता है कि शैल का अर्थ होता है पर्वत. पर्वतों के राजा हिमालय के घर में पुत्री के रूप में यह जन्मी थीं, इसीलिए इन्हें शैलपुत्री कहा जाता है. अतः जन्म ग्रहण करती हुई कन्या “शैलपुत्री” स्वरूप है !

ब्रह्मचारिणी

उदात्त कौमार्य शक्ति की पर्याय देवी ब्रह्मचारिणी के बारे में कहा गया है कि इन्होंने परमात्मा के ब्रह्म स्वरूप की प्राप्ति को ही अपना सर्वस्व माना था. यह सात्विक साधना का प्रतीक हैं. परमात्मा में ध्यान लगाने के कारण ही देवी के इस स्वरूप को ब्रह्मचारिणी कहा गया है. अतः मां का कौमार्य अवस्था तक का रूप “ब्रह्मचारिणी” कहलाया !

चंद्रघंटा

एक स्त्री में सहनशीलता और संयम विद्यमान होता है. वह चंद्रमा के समान निर्मल होती है. मां का तीसरा स्वरूप परम शांतिदायक और कल्याणकारी है। इनके मस्तक में घंटे का आकार का अर्धचंद्र है, इसी कारण से इन्हें चंद्रघंटा देवी कहा जाता है।चंद्रमा के सामान शांत और निर्मल रहने के कारण एक स्त्री को मां चंद्रघंटा का स्वरुप मान सकते हैं!

यह भी पढ़ें-नवरात्रि – माँ दुर्गा के नौ रूप -नौ देवियों की महिमा

कूष्मांडा

स्त्री ओर पुरुष की गर्भधारण, गर्भाधान शक्ति है जो भगवती की ही शक्ति है, जिसे समस्त प्राणीमात्र में देखा जा सकता है। नए जीव को जन्म देने के लिए गर्भ धारण करने पर वह “कूष्मांडा” स्वरूप है !

स्कन्दमाता

संतानवती माता-पिता का स्वरूप है अथवा प्रत्येक संतान वान माता-पिता स्कन्द माता के रूप हैं।संतान को जन्म देने के बाद वही स्त्री “स्कन्दमाता” हो जाती है !

कात्यायनी

संयम व साधना को धारण करने वाली स्त्री “कात्यायनी” रूप है !कात्यायनी- के रूप में वह भगवती कन्या की माता-पिता हैं। यह देवी का छठा स्वरुप है।

कालरात्रि

देवी भगवती का सातवां रूप है कालरात्रि. जिनसे सब जड़ चेतन मृत्यु को प्राप्त होते हैं ओर मृत्यु के समय सब प्राणियों को इस स्वरूप का अनुभव होता है. एक स्त्री भी ठीक उन्हीं की तरह है. अपने संकल्प से पति की अकाल मृत्यु को भी जीत लेने से वह “कालरात्रि” जैसी है !

यह भी पढ़ें-नवरात्रि पर्व भीतर की यात्रा का पर्व

महागौरी

महागौरी ज्ञान अथवा बोध का प्रतीक है, जिसे जन्म जन्मांतर की साधना से पाया जा सकता है। एक स्त्री के लिए उसका परिवार ही उसका संसार है और अपने संसार का उपकार करने से वह “महागौरी” हो जाती है !



सिद्धिदात्री

अपने अंतिम समय में अपनी संतान को खुश देखना चाहती है . इसलिए धरती को छोड़कर स्वर्ग प्रयाण करने से पहले संसार मे अपनी संतान को सिद्धि (समस्त सुख-संपदा) का आशीर्वाद देने वाली “सिद्धिदात्री” का स्वरुप हो जाती है !

[video_ads]
[video_ads2]
You can send your stories/happenings here:info@religionworld.in

Post By Shweta