बद्रीनाथ की ज्योतिषपीठ को मिलेगा नया शंकराचार्य – इलाहाबाद हाईकोर्ट का फैसला
इलाहाबाद हाईकोर्ट ने आज शंकराचार्य पद से जुड़े एक बहुत पुराने विवाद में विधिसम्मत, धर्मसम्मत फैसला दिया है। मामला आदि शंकराचार्य द्वारा स्थापित चार पीठों से जुड़ा था, जिसपर सदियों से उत्तराधिकारी के तौर नियुक्त शंकराचार्य अपने शिष्य को अगला शंकराचार्य घोषित करता आ रहा है। ये मामला देश की चार पीठों में से एक बद्रीनाथ की ज्योतिषपीठ का है। जिसपर सालों से शंकराचार्य स्वरूपानंद सरस्वती और वासुदेवानंद सरस्वती के बीच दावेदारी को लेकर कोर्ट में केस जारी था।
इलाहाबाद की हाईकोर्ट ने आदि शंकराचार्य द्वारा दी गई व्यवस्था की बात कहते तीन महीने में ज्योतिषपीठ, बद्रीनाथ में नया शंकराचार्य नियुक्त करने का फैसला दिया है। कोर्ट ने कहा है कि अखिल भारत धर्म महामण्डल व काशी विद्वत परिषद को योग्य सन्यासी ब्राह्मण को तीनों पीठों के शंकराचार्यों की मदद से नया शंकराचार्य घोषित करने का आदेश दिया है। कोर्ट ने कहा है कि इसमें 1941 की प्रक्रिया ही अपनाई जाए।
ये मामला जितना पुराना है, उतना ही पेचीदा है। दोनों ही वादी अपने आप को इस पीठ का शंकराचार्य होने की दावा सालों से कर रहे है। ऐसे में 5 मई 2015 को एक निचली अदालत ने स्वामी वासुदेवानंद की वसीयत को फर्जी करार दिया था, जिसके बाद से ये मान लिया गया था कि शंकराचार्य पद पर स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती ही रहेंगे। अगला नया शंकराचार्य नियुक्त होने तक वहां जारी व्यवस्था ही कायम रहेगी।
फैसले के तुरंत बाद रिलीजन वर्ल्ड ने शंकराचार्य स्वरूपानंद सरस्वती के शिष्य स्वामी अभिमुक्तेश्वरानंद से बात की, उन्होनें फैसले का स्वागत करते हुए कहा कि, “ये हमारी जीत है, कोर्ट ने कहा कि चार पीठों पर चार शंकराचार्य होने चाहिए, इसलिए अब हम शंकराचार्य महाराज के आदेश पर वहां एक नए शंकराचार्य की नियुक्ति करेंगे। वासुदेवाचार्य जी संन्यासी नहीं मानने की बात हम शुरू से कर रहे थे। आज कोर्ट से उस पर मुहर लगा दी”।
सुनिए फैसले पर स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद महाराज की पूरी बात….
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कोर्ट के फैसले में स्वामी वासुदेवानंद सरस्वती को संन्यासी मानने या न मानने पर भी जिरह हुई। इस बात पर एक जज ने उन्हें संन्यासी माना, और दूसरे ने इसपर अलग राय रखी।
अगले तीन महीने ज्योतिषपीठ पर नए शंकराचार्य की नियुक्ति तक सबकी निगाह इस मामले पर रहेगी। अगले शंकराचार्य के बनने के बाद ही आदि शंकराचार्य की दी गई व्यवस्था सालों बाद फिर से कायम होगी।