महामारी से कैसे बचे ! – ओशो का रोचक जवाब…
कभी किसी ने ओशो से ऐसी महामारी के बारे मे प्रश्न किया था – महामारी से कैसे बचे !
ओशो ने कहा – यह प्रश्न ही आप गलत पूछ रहे हैं। प्रश्न ऐसा होना चाहिए था – महामारी के कारण मेरे मन में मरने का जो डर बैठ गया है उसके सम्बन्ध में कुछ कहिए कि, इस डर से कैसे बचा जाए?
ओशो का जवाब – क्योंकि वायरस से बचना तो बहुत ही आसान हैं, लेकिन जो डर आपके और दुनिया के अधिक लोगों के भीतर बैठ गया है, उससे बचना बहुत ही मुश्किल है।अब, इस महामारी से कम लोग इस डर के कारण ज्यादा मरेंगे। ‘डर’ से ज्यादा खतरनाक इस दुनिया में कोई भी वायरस नहीं है।
इस डर को समझिये, अन्यथा मौत से पहले ही आप एक जिंदा लाश बन जाएँगे। यह जो भयावह माहौल आप अभी देख रहे हैं इसका वायरस आदि से कोई लेना देना नहीं है। यह एक सामूहिक पागलपन है, जो एक अन्तराल के बाद हमेशा घटता रहता है। कारण बदलते रहते हैं, लेकिन इस तरह का सामूहिक पागलपन समय-समय पर प्रगट होता रहता है। व्यक्तिगत पागलपन की तरह, कौमगत, राज्यगत, देशगत और वैश्वीक पागलपन भी होता है । इस में बहुत से लोग या तो हमेशा के लिए विक्षिप्त हो जाते हैं या फिर मर जाते हैं। ऐसा पहले भी हजारों बार हुआ है, और आगे भी होता रहेगा । और तब तक होता रहेगा जब तक कि हम और आप ‘भय और भीड़’ का मनोविज्ञान नहीं समझ लेते हैं। ‘डर’ में रस लेना बंद कीजिए…आमतौर पर हर आदमी डर में थोड़ा बहुत रस लेता है, अगर डरने में मजा नहीं आता तो लोग भूतहा फिल्म देखने क्यों जाते ?
अपने भीतर के इस रस को समझिये, इसको बिना समझे आप डर के मनोविज्ञान को नहीं समझ सकते हैं, अपने भीतर इस डरने और डराने के रस को देखिए – क्योंकि आम जिंदगी में जो हम डरने-डराने में रस लेते हैं, वो इतना ज्यादा नहीं होता है कि अपके अचेतन को पूरी तरह से जगा दे सामान्यतया आप अपने डर के मालिक होते हैं,लेकिन सामूहिक पागलपन के क्षण में आपकी मालकियत छिन सकती हैं…आपका अचेतन पूरी तरह से टेकओवर कर सकता है…आपको पता भी नहीं चलेगा कि कब आप दूसरों को डराने और डरने के चक्कर में नियंत्रण खो बैठें हैं। फिर डर आपसे कुछ भी करवा सकता है, ऐसी स्थिति में आप अपनी या दूसरों की जान भी ले सकते हैं
आने वाले समय में ऐसा बहुत होगा…बहुत से लोग आत्महत्या करेंगे और बहुत से लोग दूसरों की हत्या करेंगे, अलर्ट रहिए, ऐसा कोई भी वीडियो या न्यूज़ मत देखिये जिससे आपके भीतर डर पैदा हो..महामारी के बारे में बात करना बंद कर दीजिए। एक ही चीज़ को बार बार दोहराने से आत्म-सम्मोहन पैदा है.. डर भी एक तरह का आत्म-सम्मोहन ही है। एक ही तरह के विचार को बार-बार घोकने से शरीर के भीतर रासायनिक बदलाव होने लगता है और यह रासायनिक बदलाव कभी कभी इतना जहरीला हो सकता है कि आपकी जान भी ले लें। महामारियों के अलावा भी बहुत कुछ दुनिया में हो रहा है, उन पर ध्यान दीजिए।
ध्यान-साधना’ से साधक के चारो तरफ एक प्रोटेक्टिव Aura बन जाता है,जो बाहर की नकारात्मक उर्जा को उसके भीतर प्रवेश नहीं करने देता है। अभी पूरी दुनिया की उर्जा नाकारात्मक हो चुकी है ऐसे में आप कभी भी इस ब्लैक-होल में गिर सकते हैं। ध्यान की नाव में बैठ कर हीआप इस झंझावात से बच सकते हैं ।शास्त्रों का अध्यन कीजिए, साधू संगत कीजिए, और साधना कीजिए।
आहार का भी विशेष ध्यान रखिए- सात्विक भोजन ही लीजिए…अंतिम बात – धीरज रखिए…जल्द ही सब कुछ बदल जाएगा। जब तक मौत आ ही न जाए। तब तक उससे डरने की कोई ज़रूरत नहीं है और जो अपरिहार्य है उससे डरने का कोई अर्थ भी नहीं है।डर एक प्रकार की मूढ़ता है और इस बात का सबूत है कि अब तक जीवन आपने गलत ढंग से जिया है। जो अपने आज को कल पर टालते हैं, उन्ही को मौत से डर लगता है, जो अपने जीवन को प्रति पल समग्रता से जीते हैं, उनके लिए मौत समस्या नहीं है, जीवन पर पुनर्विचार कीजिए… डरने से कुछ भी हल नहीं होगा और मौत का कोई इलाज़ नहीं है… अगर किसी महामारी से अभी नहीं भी मरे तो भी एक न एक दिन मरना ही होगा, और वो एक दिन कोई भी दिन हो सकता है इसीलिए, तैयारी रखिए,
जीवन को टालिए मत… 🙏🏼
ओशो