भगवान परशुराम की जयंती हिन्दू पंचांग के वैशाख माह की शुक्ल पक्ष तृतीया को मनाई जाती है। अक्षय तृतीया को परशुराम जयंती के रूप में भी मनाया जाता है। ऐसा माना जाता है कि इस दिन दिये गए पुण्य का प्रभाव कभी खत्म नहीं होता।
खासकर ब्राह्मणों के लिए इस दिन का कितना महत्व है इसका अंदाजा इस बात से भी लगता है कि कुछ राज्यों में इस दिन सार्वजनिक अवकाश भी होता है।
कौन थे भगवान परशुराम
भगवान परशुराम ऋषि ऋचीक के पौत्र और जमदग्नि के पुत्र थे । इनकी माता का नाम रेणुका था। हविष्य के प्रभाव से ब्राह्म्ण पुत्र होते हुए भी ये क्षात्रकर्मा हो गये थे। ये भगवान शंकर के परम भक्त थे।
भगवान शंकर जी ने ही परशुराम जी को एक अमोघ अस्त्र− परशु प्रदान किया था। इनका वास्तविक नाम राम था, किंतु हाथ में परशु धारण करने से ये परशुराम नाम से विख्यात हुए।
ये अपने पिता के अनन्य भक्त थे, पिता की आज्ञा से इन्होंने अपनी माता का सिर काट डाला था, लेकिन पुनः पिता के आशीर्वाद से माता की स्थिति यथावत हो गई।
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गणेशजी का एक दंत नष्ट किया
सीता स्वयंवर में श्रीराम द्वारा शिव−धनुष भंग किये जाने पर वह महेन्द्राचल से शीघ्रतापूर्वक जनकपुर पहुंचे, किंतु इनका तेज श्रीराम में प्रविष्ट हो गया और ये अपना वैष्णव धनु उन्हें देकर पुनः तपस्या के लिए महेन्द्राचल वापस लौट गये।
मान्यताओं के अनुसार, भगवान परशुराम के क्रोध का सामना गणेश जी को भी करना पड़ा था। दरअसल उन्होंने परशुराम जी को शिव दर्शन से रोक दिया था।
क्रोधित परशुराम जी ने उन पर परशु से प्रहार किया तो उनका एक दांत नष्ट हो गया। इसी के बाद से गणेश जी एकदंत कहलाये।
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