Perspectives on Education” : अंतर्राष्ट्रीय पाठ्यक्रम में डॉ० चिन्मय पण्ड्या का उद्बोधन हुआ सम्मिलित
- युगऋषि श्रीराम शर्मा आचार्य के विचारों का होगा वैश्विक स्तर पर अध्ययन
- Perspectives on Education का संयुक्त रूप से एक पाठ्यक्रम निर्मित
- हॉर्वर्ड विश्वविद्यालय और मैसच्युसेट विश्वविद्यालय ने बनाया संयुक्त पाठ्यक्रम
- डॉ० चिन्मय पण्ड्या का एक अंतराष्ट्रीय मंच पर हुए उद्बोधन हुआ सम्मिलित
हरिद्वार 3 मई। कोरोना महामारी से ग्रसित विश्व जब भविष्य की अनिश्चितताओं को निहार रहा है तब आशा और निराशा के मध्य झूल रहे मानव मन की स्थिति अकल्पनीय ही है। ऐसे में जब प्रत्येक राष्ट्र अपने अपने तरीके से इस महामारी को परास्त करने का प्रयास कर रहा है, तब भारतीय दर्शन का मूल “वसुधैव क़ुटम्बकम” की भावना सर्वत्र प्रसारित हो यह समय की बड़ी माँग है। इसी भावना को युवा मन में प्रसारित करने हेतु विश्व प्रसिद्ध हॉर्वर्ड विश्वविद्यालय और मैसच्युसेट विश्वविद्यालय ने संयुक्त रूप से एक पाठ्यक्रम निर्मित किया है जिसका नाम है “Perspectives on Education” जिसमें उन्होंने अखिल विश्व गायत्री परिवार के प्रतिनिधि एवं देव संस्कृति विश्वविद्यालय के प्रति कुलपति माननीय डॉ० चिन्मय पण्ड्या जी के एक अंतराष्ट्रीय मंच पर हुए उद्बोधन को सम्मिलित किया।
अक्तूबर 2019 में डॉ० पण्ड्या जी को UK स्थित One Young World नामक एक वैश्विक समारोह में आमंत्रित किया गया था, जहां उन्होंने गुरुदेव श्रीराम शर्मा आचार्य के विचारों को प्रस्तुत करते हुए “वसुधैव कुटुम्बकम” की भारतीय भावना को विश्व की समस्या का समाधान बताया था। इसी उद्बोधन में डॉ० पण्ड्या जी ने गुरुदेव की “वैश्विक चेतना” का विचार प्रस्तुत किया जिसे Perspective on Education पाठ्यक्रम की समन्वयक प्रोफ० मौरीन हॉल ने डॉ. पंड्या जी के उद्बोधन को विशिष्ट महत्त्व दिया और प्रतिभागियों के प्रतिभाव भी लिए।
अनेक प्रतिभागियों ने उद्बोधन को खूब सराहा और वर्तमान समय की अति आवश्यक अवधारणा बतायी । प्रतिभागियों में से सुश्री ब्रूक थर्स्टन का कहना है की “मुझे डॉ. चिन्मय पंड्या जी का उद्बोधन बड़ा की आनंदित करने वाला लगा। अब मुझे विश्वास है की हम सब एक परिवार है और पृथ्वी पर रह रहे सभी वैश्विक परिवार के सदस्य है। मुझे लगता है जो हम वर्तमान परिस्थिति में अनुभव कर रहे है तब विशेष रूप से हमे और नजदीक आना चाहिए और एक दुसरे के भीतर शांति और प्यार स्थापित करना चाहिए। अभी अतिआवश्यक है की हम सब एक परिवार की तरह साथ आए और सहयोग से रहे।”
इसी पाठ्यक्रम के प्रतिभागी श्री कैमेरॉन हिक्सोन ने कहा की “डॉ. पंड्या जी द्वारा दिए गए तर्क के अनुसार हमे सामूहिक रूप से धर्म और जाति जैसे भेदो को स्वीकार कर मानवता की धुरी पर संयुक्त रहना चाहिए। यही तर्क global citizenship (विश्व नागरिकता) के सिद्धांत से मेल खाता जिसमे तात्विक रूप से इंसान राष्ट्र द्वारा भिन्न जरूर है किन्तु एक वैश्विक समुदाय में साथ मिलकर रहता है।”
इस तरह के अनुभवों और चिंतन को उजागर करने वाले गुरुदेव के विचारो से निश्चित ही भविष्य के शिक्षक और उनसे संपर्क में आने वाले विद्यार्थी प्रभावित होंगे और वैश्विक बंधुता की महत्वपूर्ण आवश्यकता के समाधान की और आगे बढ़ेंगे। निश्चित ही परम पूज्य गुरुदेव पं० श्रीराम शर्मा जी द्वारा एक विश्व एक संस्कृति की परिकल्पना को सिद्ध करने की तरफ़ यह एक दृढ़ कदम होगा।