पितृदोष क्या है और इसका वास्तु से क्या संबंध है ?
- आखिर क्यों पितृ दोष के उपाय करने के बाद भी परेशानियां कम क्यों नहीं होती हैं।
ज्योतिषाचार्य पण्डित दयानन्द शास्त्री जी ने बताया कि पितृ दोष एक ऐसा दोष है जो आज के युग में हर तीसरी कुंडली में पाया जा रहा है।लोग कई इसके निवारण के लिए उज्जैन, नासिक या हरिद्वार जाते है तर्पण करवाते है।पर उसके बाद भी परिस्थियां अनुकूल नही हो रही है उनकी जीवन में।
“कर्मलोपे पितृणां च प्रेतत्वं तस्य जायते।
तस्य प्रेतस्य शापाच्च पुत्राभारः प्रजायते।।”
अर्थात कर्मलोप के कारण जो पुर्वज मृत्यु के प्श्चात प्रेत योनि में चले जाते है, उनके शाप के कारण पुत्र संतान नही होती।
अर्थात प्रेत योनि में गए पितर को अनेकानेक कष्टो का सामना करना पडता है। इसलिये उनकी मुक्ति हेतु यदि श्राद्ध कर्म न किया जाए तो उसका वायवीय शरीर हमे नुकसान पहुंचाता रहता है। जब उसकी मुक्ति हेतु श्राद्ध कर्म किया जाता है, तब उसे मुक्ति प्राप्त होने से हमारी उनेक समस्याएं स्वतः ही समाप्त हो जाती है।
परिवार में किसी व्यक्ति की मृत्यु के उपरांत परिवारजनों द्वारा जब उसकी इच्छाओं एवं उसके द्वाराछुटे अधुरे कार्यों को परिवारजनों द्वारा पुरा नही किया जाता। तब उसकी आत्मा वही भटकती रहती है एवं उन कार्यो को पुरा करवाने के लिए परिवार जनों पर दबाव डालती है। इसी कारण परिवार में शुभ कार्यो में कमी एवं अशुभता बढती जाती है।
इन अशुभताओं का कारण पितृदोष माना गया है। इसके निवारण के लिए श्राद्धपक्ष में पितर शांति एवं पिंडदान करना शुभ रहता हैं।
भारतीय धर्म शास्त्रों के अनुसार ’’पुन्नाम नरकात् त्रायते इति पुत्रम‘‘ एवं ’’पुत्रहीनो गतिर्नास्ति‘‘ अर्थात पुत्रहीन व्यक्तियों की गति नही होती व पुत नाम के नरक से जो बचाता है, वह पुत्र है। इसलिए सभी लोग पुत्र प्राप्ति की अपेक्षा करते है। वर्तमान में पुत्र एवं पुत्री को एक समान माने जाने के कारण इस भावना में सामान्य कमी आई है परन्तु पुत्र प्राप्ति की इच्छा सबको अवश्य ही बनी रहती है जब पुत्र प्राप्ति की संभावना नही हो तब ही आधुनिक विचारधारा वाले लोग भी पुत्री को पुत्र के समान स्वीकारते है। इसमे जरा भी संशय नही है।
पुत्र द्वारा किए जाने वाले श्राद्ध कर्म से जीवात्मा को पुत नामक नरक से मुक्ति मिलती है। किसी जातक को पितृदोष का प्रभाव है या नही। इसके बारे में ज्योतिष शास्त्र में प्रश्न कुंडली एवं जन्म कुंडली के आधार पर जाना जा सकता है।
इस लेख में मै हम यह समझने की कोशिश करते हैं कि जन्म कुंडली में पितृदोष होने के बाद हमारे घर में वास्तु दोष कहां उत्पन होता है, और कैसे इस वास्तु दोष को हटाकर हम पितृदोष के प्रभावों को 90% तक कम कर सकते हैं ?
पितृदोष क्या है और इसका वास्तु से क्या संबंध है ?
सूर्य हमारे पितृ है, और जब राहु की छाया सूर्य पर पड़ता है (तब सूर्य यानि की सकारात्मक ऊर्जा का प्रभाव काम हो जाता है ) यानि की जब राहू सूर्य के साथ बैठा हो , या राहु पंचम भाव में हो , या सूर्य राहु के नक्षत्र में हो , या पंचम भाव का उप नक्ष्त्र स्वामी राहु के नक्षत्र में हो तब ऐसी परिस्थिति में पितृदोष उत्पन होता है।
ज्योतिषाचार्य पण्डित दयानन्द शास्त्री जे ने बताया कि ऐसा माना जाता है कि परिवार में जब किसी की अकाल मृत्यु हो जाती है और उनका सही तरीके से श्राद ना किया गया हो तब उस परिवार में जन्म लेने वाले संतान में पितृ दोष आ जाता है (विशेषकर पुत्र संतान मै ) जिसकी वजह से उन्हें अपने जीवन में काफ़ी कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है।
जिस व्यक्ति के जन्म कुंडली में है पूर्ण पितृदोष होता है उन्हें पुत्र संतान का सुख प्राप्त नहीं हो पाता है।
आपने ऐसे कई लोगों को देखा होगा जो कि मेडीकल के अनुसार स्वस्थ होते हैं लेकिन फिर भी संतान की प्राप्ति नहीं होती और डॉक्टर बताते हैं कि मेडिकल से उन्हें कोई परेशानी नहीं है फिर भी उन्हें संतान का सुख नहीं मिल पाता या कई लोगों के सिर्फ पुत्री ही होती हैं पुत्र धन की प्राप्ति नहीं हो पाता। ऐसी परिस्थिति में उनकी कुंडली में पितृदोष जरूर होता है और उनके घर में ईशान कोण या नैत्रत्य कोण में शौचालय जरूर होता है।
पण्डित दयानन्द शास्त्री जी के अनुभव अनुसार कई बार पितृ दोष का प्रभाव इतना बढ़ जाता है व्यक्ति का सारा जमीन जायदाद एवं संपत्ति तक बिक जाता है और वह नई संपत्ति खरीद भी नहीं पाता।
आपने ऐसे कई लोगों को ऐसे देखा होगा या सुना होगा जो बहुत बड़े जमींदार होते थे उनके पास बहुत ज्यादा पैसा होता था लेकिन आज उनके पास कुछ भी नहीं है यहाँ तक की अपना घर तक नहीं है इसका मुख्य कारण पितृदोष होता है।
पितृदोष का वास्तु से क्या सम्बन्ध है ?
घर में पितृ का स्थान दक्षिण और पश्चिम का कोना है यानी कि नैत्रत्य कोण है । जन्म कुंडली में जब भी पूर्ण पितृदोष बनता है यानी की राहु (जो की नकारात्मक ऊर्जा का स्रोत्र है ) मजबूत हो जाता है, और जिस व्यक्ति की जन्म कुंडली में नकारात्मक उर्जा मजबूत होता है उस घर में भी उसका प्रभाव देखने को मिलता है।
घर में सकारात्मक ऊर्जा का प्रवाह ईशान कौन से होता है और नकारात्मक उर्जा का प्रवाह नैत्रत्य कोण से होता है , जब जन्म कुंडली में पितृ दोष होता है यानी कि राहु मजबूत होता है ऐसी परिस्थिति में वह व्यक्ति जिस घर में रहता है उस घर के नैत्रत्य कोण में वास्तु दोष जरूर होता है ।
नैत्रत्य कोण के मुख्यतः वास्तु दोष निम्नलिखित हैं :- नैत्रत्य कोण में शौचालय का होना , डस्टबिन का होना , नाली का होना , दक्षिण पश्चिम में गंदगी होना (जो की राहु की नकारात्मक उर्जा को 100 गुना बढ़ा देता है ),
दक्षिण पश्चिम में पृथ्वी की उर्जा होती है अगर यहां पर पेड़ – पौधे रखे हों या दीवार का रंग हरा हो तो भी पृथ्वी की उर्जा समाप्त हो जाती है जिससे भी यहाँ पर वास्तुदोष पैदा होते हैं ।
समझें पितृदोष का वैवाहिक जीवन पर प्रभाव :-
घर में नैत्रत्य कोण रिश्ते का स्थान भी है , और अगर यहां पर वास्तु दोष होता है तो वैवाहिक जीवन में बहुत सारी परेशानियां आती हैं यहां तक कि कई बार बात तलाक तक पहुंच जाती है और जिसका कोई खास वजह नहीं होता , अगर किसी व्यक्ति के घर में आपसी रिश्ते खराब हो और बिना किसी कारण के बार-बार झगड़े होते हैं तो नैत्रत्य कोण में वास्तु दोष जरूर होगा ।