तनाव कम करने और मन को स्थिर रखने में सहायक है प्लाविनी प्राणायाम
प्लावन शब्द का संस्कृत में अर्थ है तैरना. तो जैसा की नाम से ही स्पष्ट है कि इस प्राणायाम के नियमित अभ्यास से कोई भी व्यक्ति पानी पर कमल के पत्तों की तरह तैर सकता है इसलिए इसका नाम प्लाविनी पड़ा.
हठरत्नावली में, इसे भुजंगीमुद्रा कहते हैं. कोई भी व्यक्ति प्लाविनी प्राणायाम प्रमुख प्राणायामों में निपुणता हासिल करने के बाद ही कर सकता है. सामान्यतया, सिद्धयोगी प्लाविनी प्राणायाम करते हैं. प्लाविनी प्राणायाम में अनुभव की आवश्यकता होती है और ये शुरुआत करने वालों के लिए उपयुक्त नहीं है. इस प्राणायाम का अभ्यास सुखासन या सिद्धासन में बैठकर किया जाता हैं. इसके अभ्यास में अपनी साँस को इच्छानुसार रोककर रखा जाता है इसलिए इस प्राणायाम को केवली या प्लाविनी प्राणायाम कहा जाता है.
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प्लाविनी प्राणायाम करने की विधि–
- सबसे पहले आप पद्मासन या सुखासन में बैठ जाएं.
- दोनों नासिका छिद्र से धीरे धीरे सांस लें.
- अब साँस को अपनी क्षमता के अनुसार रोककर रखें .
- फिर दोनों नासिका छिद्रो से धीरे-धीरे श्वास छोड़ें.
- यह एक बार हुआ.
- इस तरह आप 10 से 15 बार करें.और फिर धीरे धीरे इसके अवधि को बढ़ाते रहें.
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प्लाविनी प्राणायाम करने से होने वाले लाभ
- ध्यान: यह ध्यान के लिए बहुत मुफीद प्राणायाम अभ्यास है.
- पाचनशक्ति: यह पाचनशक्ति को बढ़ाता है और इस तरह से कब्ज की समस्या को दूर करता है.
- आयु बढ़ाने में: इस प्राणायाम का नियमित अभ्यास करने से प्राणशक्ति शुद्ध होकर आयु बढ़ती है.
- शांति के लिए: यह मन को स्थिर व शांत रखने में सहायक है.
- तनाव को कम करने में: यह तनाव को कम करने में बहुत अहम भूमिका निभाता है.
- चिंता कम करने के लिए: यह चिंता एवं क्रोध को दूर करने के लिए उपयोगी प्राणायाम है.
- मेमोरी के लिए: इसके नियमित अभ्यास से आप अपने स्मरण शक्ति का विकास कर सकते हैं.
- तैरने में सहायक: इस प्राणायाम का अभ्यास से आप पानी में बहुत देर तक बिना हाथ-पैर हिलाएँ रह सकते हैं.
प्लाविनी प्राणायाम के सावधानियां
- इसका अभ्यास सिर्फ विषेशज्ञ की उपस्थिति में ही करें.
- इस प्राणायाम का अभ्यास हमेशा शांत स्वभाव में करनी चाहिए.
- इसके करने में आपका पेट खाली होनी चाहिए.