पौष महीने की शुक्ल पक्ष की एकादशी को पुत्रदा एकादशी कहते है। इस बार यह एकादशी 6 जनवरी को पड़ रही है। पुत्रदा एकादशी साल में दो बार आती है। पहली पौष माह में जबकि दूसरी सावन में। इस एकादशी में भगवान विष्णु के बाल रूप की पूजा की जाती है। ऐसी मान्यता है कि इस एकादशी के पुण्य से संतान सुख की प्राप्ति होती है। इस एकादशी का पुण्यफल संतान के भाग्य और कर्म को उत्तम बनाने में सहायक माना गया है। जिस किसी भी दंपत्ति को संतान प्राप्ति करने में दिक्कत आती है उसको यह व्रत जरूर करना चाहिए। इस दिन पुत्रदा एकादशी का व्रत भी रखा जाता है।
पौष पुत्रदा एकादशी व्रत मुहूर्त
7 जनवरी 2020 को पारणा मुहूर्त – 13:29:53 से 15:34:49 तक
अवधि :2 घंटे 4 मिनट
7 जनवरी 2020 को हरि वासर समाप्त होने का समय :10:07:19 पर
पुत्रदा एकादशी का महत्व
पुत्रदा एकादशी व्रत की कथा इस प्रकार है, एक समय भद्रावतीपुरी में राजा सुकेतुमान राज्य करते थे। उनकी रानी का नाम चम्पा था। विवाह के काफी समय बाद भी पति-पत्नी संतान सुख से वंचित थे। एक दिन दुःखी होकर राजा सुकेतुमान किसी से कुछ बताये बिना वन चले गये। वन में इन्हें एक सुन्दर सरोवार के पास कुछ मुनि दिखाई पड़े। राजा मुनियों के पास पहुंचे और उन्हें प्रणाम किया। मुनियों ने बताया कि वह विश्वदेव हैं।
पुत्रदा एकादशी व्रत के नियम
व्रत रखने वाले को दशमी के दिन लहसुन, प्याज से रहित शुद्घ भोजन करना चाहिए। एकादशी के दिन प्रातः स्नानादि से निवृत होकर श्री नारायण की भक्ति पूर्वक पूजा करनी चाहिए और दीपदान करना चाहिए। व्रत रखने वाले को दशमी के दिन से ही मन और वचन से ब्रह्मचर्य का पालन करते हुए भगवान का ध्यान करते हुए अपना काम करना चाहिए।
जो व्यक्ति यह व्रत रखता है उसे एकादशी के दिन पूरे दिन निराहार रहना होता है। शाम को चाहें तो फलाहार कर सकते हैं। द्वादशी के दिन ब्राह्मण को भोजन करवाकर उनसे आशीर्वाद प्राप्त करने के बाद स्वयं भोजन करें ऐसा नियम है। द्वादशी के दिन भी व्रती को सात्विक भोजन करना चाहिए। इस प्रकार नियमपूर्वक जो लोग पुत्रदा एकादशी का व्रत करते हैं उनका व्रत ही सफल होता है।
पौष पुत्रदा एकादशी व्रत विधि
- दशमी को भोजन के बाद अच्छी तरह से दातून करना चाहिए ताकि अन्न का अंश मुंह में न रहे।
- एकादशी के दिन सुबह उठकर व्रत का संकल्प कर शुद्ध जल से स्नान करना चाहिए।
- इसके बाद धूप, दीप, नैवेद्य आदि सोलह सामग्री से भगवान श्रीकृष्ण का पूजन, रात को दीपदान करना चाहिए।
- एकादशी की सारी रात भगवान विष्णु का भजन-कीर्तन करना चाहिए।
- श्री हरि विष्णु से अनजाने में हुई भूल या पाप के लिए क्षमा मांगनी चाहिए।
- अगली सुबह पुनः भगवान विष्णु की पूजा कर ब्राह्मण को भोजन कराना चाहिए।
- भोजन के बाद ब्राह्मण को क्षमता के अनुसार दान देकर विदा करना चाहिए।