यहाँ अनंत चतुर्दशी को रावण के जन्म के साथ ही शुरू होती है रामलीला
लेकिन क्या आप जानते हैं कि अनंत चतुर्दशी से जुडी एक और महत्वपूर्ण बात है जिसे कम ही लोग जानते हैं. जी हां, अनंत चतुर्दशी को ही दशानन रावण का जन्म हुआ था और रावण के जन्म के साथ ही इसी दिन से काशी के रामनगर की रामलीला की शुरुआत होती है.यह रामलीला पूरा एक महीना चलती है. जैसा कि हम सब जानते हैं कि अनंत चतुर्दशी को भगवान विष्णु के अनंत रूप की पूजा होती है, हाथ में अनंत डोरा बांधा जाता है.साथ ही अनंत चतुर्दशी के दिन ही भगवान गणेश का विसर्जन भी किया जाता है. वैसे तो इसकी औपचारिक शुरुआत गणेश चतुर्थी को हो जाती है.रामलीला की सकुशल समाप्ति के लिए गणेश चतुर्थी को रामलीला के सारे पात्रों से गणेश पूजा करवाई जाती है. साथ ही रामायण की पोथी, हनुमान जी का मुखौटा, गणेश जी की मूर्ति का पूजन भी किया जाता है. रामलीला की तैयारी, इसकी शुरुआत और निर्देशन का काम मुख्य रूप से दो लोग करते हैं. एक पर मुख्य किरदारों की ज़िम्मेदारी होती है, जबकि दूसरे पर बाक़ी पात्रों की. रामचरितमानस की चौपाइयों पर कुल 27 किरदारों के लिए रामलीला में 12-14 बच्चे हिस्सा लेते हैं.
सावन से ही रामलीला की तैयारी शुरू हो जाती है और मुख्य लीला भादों में अनंत चतुर्दशी के दिन रावण के जन्म के साथ लीला शुरू होकर आश्विन महीने की शुक्ल पूर्णिमा को ख़त्म होती है.
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हाथी पर सवार होकर आते हैं काशी नरेश
रामलीला के दौरान परम्परा को निभाने के लिए रोज़ाना ‘काशी नरेश’ भी हाथी पर सवार होकर आते हैं और उनके आने के बाद ही रामलीला शुरू होती है. एक हाथ में पीढ़ा और दूसरे में रामचरितमानस की किताब लेकर यहां हर साल हज़ारों लोग रामलीला देखने आते हैं.पीढ़ा बैठने के लिए तो रामचरितमानस, लीला के दौरान पढ़ते रहने के लिए. एक तरफ लोग रामचरितमानस की चौपाइयां पढ़ते रहते हैं और दूसरी तरफ लीला संवाद के साथ आगे बढ़ती रहती है.
यही नहीं, इस रामलीला की एक और खासियत है जो कहीं देखने को नहीं मिलती. यह रामलीला किसी एक मंच पर नहीं होती. करीब चार किलोमीटर के दायरे में एक दर्जन कच्चे-पक्के मंचों को इसका मंचन होता है. इन मंचों को ही अयोध्या, जनकपुर, चित्रकूट, पंचवटी, लंका और रामबाग का रूप दिया जाता है.
कब हुयी थी इसकी शुरुआत
साल 1783 में रामनगर में लीला की शुरुआत काशी नरेश उदित नारायण सिंह ने की थी.तब से यह आज भी उसी अंदाज़ में होती है.यही अंदाज इस रामलीला को अन्य रामलीला से अलग करता है.पूरा मंचन रामचरितमानस के आधार पर अवधी भाषा में होता है.233 साल पुरानी यह रामलीला पेट्रोमेक्स और मशाल की रोशनी में ही होती है. लीला देखने हजारों की भीड़ जुटती है फिर भी किसी माइक का इस्तेमाल नहीं होता.बीच-बीच में ख़ास घटनाओं के वक़्त आतिशबाज़ी ज़रूर होती है.काशी नरेश जहां सजे-सजाए हाथी पर लीला स्थल के अंतिम छोर से रामलीला देखते हैं, वहीं आज भी भक्त साधु, राम-सीता, लक्ष्मण, भरत एवं शत्रुघ्न को पारम्परिक रुप से अपने कंधे पर लेकर चलते हैं.
यहां पर भजन-कीर्तन करते तथा नाचते-गाते भक्तों को देखा जा सकता है.इस अनूठी लीला को देखने के लिए बडी़ संख्या में विदेशी भी आते हैं जो अपने कैमरों में हर दृश्य को कैद करते हैं. रामलीला के पात्रों के वस्त्र तो कई प्रकार के होते हैं, लेकिन राजसी वस्त्रों पर तो आंखें नहीं टिकतीं.सोने-चांदी के काम वाले वस्त्र राज परिवार की सुरक्षा में रखे जाते हैं.लीला में प्रयुक्त अस्त्र-शस्त्र भी रामनगर के किले में रखे जाते हैं.राजसी वस्त्रों और अस्त्र-शस्त्र से सज्जित स्वरूपों के मेकअप में कोई रसायनयुक्त सामग्री का उपयोग नहीं होता.अनंत चतुर्दशी को ऐसे होगी
कैसी हो रही रामलीला की तैयारियां
काशी के रामनगर में रामलीला से जुड़ी सारी तैयारियां पूरी की जा चुकी है.यहां पर अनंत चतुर्दशी यानी 12 सितंबर की शाम पांच बजे रामनगर लीला स्थल में रावण का जन्म होगा. इसके बाद रामावतार की भविष्यवाणी के साथ ही दुनिया के अनूठे रंगमंच का पर्दा उठेगा.इसमें पोखरा क्षीर सागर का रूतबा पाता है और शेष शैय्या पर लेटे श्रीहरि की झांकी निखर जाती है.इसके लिए देश-विदेश से लीला प्रेमियों के जत्थे भी आते हैं.