रमज़ान 2019: क्या होता है इतिकाफ़? इस्लाम में क्या है इसका महत्व
रमजान में की जाने वाली इबादतों में से एक इतिकाफ़ भी है। रमजान मुबारक महीने के तीसरे अशरे यानि आखिर के 10 दिनों में कुछ मुसलमान इतिकाफ़ में बैठते हैं। आइए जानते हैं यह क्या होता है और इस्लाम में इसका क्या महत्व है।
रमाज़ान के महीने की अन्तिम दस रात सब रातों में सबसे उत्तम मानी जाती है। जिसके रातों की बरकतों को प्राप्त करने के लिए नबी (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) बहुत ज़्यादा प्रयास और कोशिश करते थे। पूरी तैयारी करते थे।
जैसा कि उम्मुलमूमिनीन आइशा (रज़ियल्लाहु अन्हा) हदीस वर्णन करती हैं।
كان رسولُ اللهِ صلَّى اللهُ عليهِ وسلَّمَ يجتهدُ في العشرِ الأواخرِ، ما لا يجتهدُ في غيرِه. (صحيح مسلم: 1175
रसूल (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) रमज़ान के अन्तिम दस रातों में इस कदर इबादतों में मेहनत करते थे कि उस कदर दूसरी रातों में इबादतों में महनत तथा कोशिश नहीं करते थे। (सही मुस्लिमः 1175)
كان النبي صلَّى اللهُ عليهِ وسلَّمَ يخلط العشرين بصلاة ونوم فاذا كان العشرشمّر وشدَّ المِئزَرَ. (مسند أحمد
नबी (सल्ल) रमज़ान के आरम्भिक बीस रातों में नमाज़ भी पढ़ते और सोते भी थे, परन्तु जब अन्तिम दस रातें शुरू हो जाती तो पूरी तरह से इबादत करने में जुट जाते थे और बिस्तर हटा दिया जाता था। (मुस्नद अहमद)
كان رسولُ اللهِ صلَّى اللهُ عليهِ وسلَّمَ، إذا دخل العشرُ ، أحيا الليلَ وأيقظ أهلَه وجدَّ وشدَّ المِئزَرَ. (صحيح مسلم: 1174
जब रमज़ान के अन्तिम दस रातें आरम्भ हो जाती तो रसूल (सल्ल) पूरी रात जागते थे और अपने परिवार के लोगों को भी इबादत के लिए जगाते थे, और आप (सल्ल) पूरी तरह से इबादत करने में जुट जाते थे और बिस्तर हटा दिया जाता था। (सही मुस्लिमः 1175)
इन हदीसों से प्रमाणित होता है कि रसूल (सल्ल) ने बहुत ज़्यादा रमज़ान के अन्तिम दस रातों में अल्लाह तआला की इबादत में व्यस्त हो जाते थे। रातों में जाग कर केवल अल्लाह की इबादत करते थे।
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इतिकाफ़ क्या है ?
इतिकाफ़ः किसी वस्तु पर कठोरता से जमे रहने को इतिकाफ़ कहते है।
इस्लामी परिभाषाः अल्लाह का अनुसरण और इबादत के लक्ष्य से सीमित समय के लिए अपने आप को मस्जिद में सीमित कर देना इतिकाफ़ कहलाता है।
इतिकाफ़ कुछ क्षण और कुछ घंटे और कुछ दिन तक के लिए किया जा सकता है। इतिकाफ़ किसी भी मस्जिद में किया जा सकता है। जिस में नमाज़ होती हैं।
रमाज़ान के महीना में इतिकाफ़ करना सुन्नते मुअक्किदा है। क्योंकि मक्का से हिजरत के बाद से मदीना में हमेशा नबी (सल्ल) ने इतिकाफ़ किया है। नबी (सल्ल) की पत्नियों ने आप (सल्ल) के बाद हमेशा इतिकाफ़ किया और सहाबा (रज़ि0) ने इतिकाफ़ किया। इतिकाफ़ के लिए 20 रमज़ान के मगरिब की नमाज़ से पहले ही मस्जिद में दाखिल होंगे और ईदुल फित्र का चाँद देखने के बाद मस्जिद से निकला जाएगा।
इंसान अपने सारे तरह के सम्बंध को समाप्त कर के अपने सम्पूर्ण प्रकार के सम्बंध को अपने सृष्टिकर्ता से जोड़ लेने का नाम इतिकाफ़ है. इतिकाफ़ की नियत से मस्जिद में दाखिल होने के बाद केवल अनिवार्य ज़रूरत के कारण मस्जिद से इतिकाफ़ करने वाला निकल सकता है.
शबे क़द्र:
रमज़ान महीने में एक रात ऐसी भी आती है, जो हज़ार महीने की रात से बेहतर है. जिसे शबे क़द्र कहा जाता है. शबे क़द्र का अर्थ होता हैः ” सर्वश्रेष्ट रात “, ऊंचे स्थान वाली रात”, लोगों के नसीब लिखी जानी वाली रात.
शबे क़द्र बहुत ही महत्वपूर्ण रात है, जिस के एक रात की इबादत हज़ार महीनों (83 वर्ष 4 महीने) की इबादतों से बेहतर और अच्छा है. इसी लिए इस रात की फज़ीलत क़ुरआन मजीद और प्रिय रसूल मुहम्मद ( सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ) की हदीसों से प्रमाणित है.
इतिकाफ़ का महत्व-
यूं तो रमजान का पूरा महीना ही पवित्र और अहम होता है, लेकिन इस महीने के आखिर के 10 दिन सबसे अहम और रहमत वाले होते हैं. इस्लाम धर्म के लोगों का मानना है रमजान के आखिर में इतिकाफ़ में बैठने वालों पर अल्लाह की रहमत होती है. हदीस में बताया गया है कि रमजान में पैगंबर मोहम्मद भी इतिकाफ़ में बैठा करते थे. इस्लामिक मान्यता के मुताबिक, इतिकाफ़ में बैठकर इबादत करने वाले लोगों को अल्लाह सभी गुनाहों (पापों) से मुक्त कर देता है.
इतिकाफ़ के दौरान इन चीजों का ध्यान रखें…
– इतिकाफ़ में बैठने वाले पुरुष या महिला को अपना ज्यादातर वक्त इबादत में गुजारना चाहिए.
– पुरुष केवल मस्जिद में रहकर ही इतिकाफ़ कर सकते हैं, जबकि महिलाएं घर के किसी कोने में पर्दा लगाकर इतिकाफ़ करती हैं.
– इतिकाफ़ में बैठने वाले लोगों को साफ-सफाई का खास ख्याल रखना चाहिए.
– इतिकाफ़ के दौरान किसी की बुराई करने, लड़ाई-झगड़ा करने से बचना चाहिए.
-मौजूदा वक्त में मोबाइल सबकी जिंदगी का अहम हिस्सा बन गया है, ऐसे में इतिकाफ़ में बैठने वाले शख्स को मोबाइल से भी खुद को दूर रखना चाहिए और पूरा वक्त इबादत में गुजारना चाहिए