क्या है बौद्ध अनुयायियों और मुस्लिमों के बीच संघर्ष का कारण ?
महात्मा बुद्ध, जिन्होंने करीब 2500 साल पूर्व शांति और अहिंसा की बुनियाद पर बौद्ध धर्म की स्थापना की। महात्मा बुद्ध ने अहिंसा को लेकर कुछ उपदेश भी दिए…
- जैसे मैं हूँ, वैसे ही वे हैं, और ‘जैसे वे हैं, वैसा ही मैं हूं। इस प्रकार सबको अपने जैसा समझकर न किसी को मारें, न मारने को प्रेरित करें।
- जहां मन हिंसा से मुड़ता है, वहां दुःख अवश्य ही शांत हो जाता है।
- अपनी प्राण-रक्षा के लिए भी जान-बूझकर किसी प्राणी का वध न करें।
भगवान बुद्ध ने अपनी अहिंसात्मक विचारधारा से पूरे विश्व में बौद्ध भिक्षुओं का एक ऐसा समूह खड़ा किया था, जो सालों से हिंसा दूर रह कर अपने धर्म के लिए कार्य करते रहे थे। लेकिन किसे पता था की अहिंसा की शपथ लेने वाले बौद्ध धर्म के अनुयायी भी कभी हिंसात्मक हो जायेंगे। बीते कुछ वर्षों में बौद्ध धर्म के अनुयायियों ने हिंसात्मक रूप क्यूँ अख्तियार कर लिया यह सोचने का विषय है। यह किसी स्थान विशेष की बात नहीं है, म्यांमार, थाईलैंड और अब श्रीलंका जैसे देशों में बौद्ध धर्म के अनुयायियों को ऐसा क्या महसूस हुआ कि उन्हें हथियार उठाने पर मजबूर होना पड़ा और वो भी एक विशेष धर्म के लोगों के खिलाफ। पहले नज़र डालते हैं उन देशों की और जहां बौद्ध अनुयायियों ने हिंसात्मक कदम उठाये।
श्रीलंका
बात करते हैं अभी हाल की हुई घटना के बारे में। श्रीलंका के कैंडी शहर की, यहां पर एक बौद्ध युवक की मुस्लिम द्वारा हत्या किए जाने के बाद हालत बेकाबू हो चले है। बुद्ध धर्म के लोगों ने बदले की भावना के चलते मुस्लिमों पर हमला किया है, कई मुस्लिमों के व्यापार और सम्पत्ति को नुकसान पहुंचाया गया, साथ ही परिस्तिथियों के कारण श्रीलंका में आपातकाल लागू करना पड़ा। बता दें, श्रीलंका में 76% आबादी सिंहली बौद्धों की है, साथ ही श्रीलंका में मुसलमान भी बड़ी तादाद में मौजूद है, मुस्लिम श्रीलंका के इतिहास में काफी शांतिप्रिय माने जाते रहे है।
म्यांमार
म्यांमार के हालात से सभी परिचित हैं। म्यांमार में बुद्ध धर्म के लोग ज्यादा संख्या में है, वहीं रोहिंग्या मुस्लिम अल्पसंख्यक वर्ग में आते है। पिछले 25 वर्षों में म्यांमार में बुद्ध-रोहिंग्या हिंसा जारी है। कहा जाता है हिंसा के चलते कई मुस्लिम म्यांमार से पलायन कर दूसरे देशों में रहने के लिए मजबूर है, साथ ही कई रोहिंग्या इस हिंसा में अपनी जान गंवा चुके है। बता दें, म्यांमार में आसिन विरातु नाम के एक बौद्ध भिक्षु ने 696 नाम का चरमपंथी संगठन बना रखा है, इसे नाजी भी कहा जाता है। विरातु को म्यांमार के ओसामा बिन लादेन की संज्ञा भी दी जाती है। देश में हिंसा फैलाने के मामले में सबसे बड़ा हाथ विरातु का है। हालाँकि 2003 में विरातु को जेल भेजा गया था लेकिन 2012 में रिहाई के बाद फिर से विरातु हिंसा फैलाने का काम लगातार कर रहे है।
जापान में भी है कई चरमपंथी संगठन
जापान में पिछले कुछ बरसों में कई ऐसे बौद्ध संगठन उभरे हैं, जिनका खूनखराबों और हिंसा में नाम आया है। स्वंयभू धर्मगुरु निशो इनोऊ की अगुवाई में हुआ कुछ साल पहले वहां हुई हत्याओं ने पूरे जापान को हिलाकर रख दिया था. जापान में इस तरह के एक नहीं कई संगठन हैं.
जापानी सैन्य कार्रवाई को सही ठहराया था
जापान में बौद्ध हिंसा का पुराना इतिहास रहा है। शुरुआती सदियों में वहां लड़ाकू भिक्षुओं की बात इतिहास में मिलती है, ये इक्को शु आंदोलन से जुड़े थे. दूसरे विश्व युद्ध में जापानी बौद्ध भिक्षुओं ने सैन्यीकरण और कार्रवाई का समर्थन किया. वो तब कहते थे कि गंभीर समय में कुछ कड़े कदम उठाने ही पड़ते हैं. दूसरे विश्व युद्ध के दौरान सभी जापानी बौद्ध मंदिरों में जापान के सैन्यीकरण का समर्थन किया जाता था. हालांकि चीन के बौद्ध उनके रुख की आलोचना करते थे.
भारत से निकलकर बौद्ध धर्म चारों ओर फैला
बौद्ध धर्म की नींव सर्वप्रथम भारत में ही पड़ी। और यहाँ बौद्ध धर्म का महात्मा बुद्ध और उनके अनुयायियों ने जोर-शोर से प्रचार प्रसार किया। सम्राट अशोक भी उनमे से एक था। लेकिन कुछ इतिहासकार ऐसा मानते हैं की हिन्दू धर्म के पुनरुत्थान के बाद बौद्ध धर्म के अनुयायियों को भारत में काफी समस्याओं का सामना करना पड़ा। उन्होंने यहाँ हिंसा भी झेली। क्यूंकि बौद्ध धर्म में हिंसा अपराध है। इतना सब होने के बाद बौद्ध अनुयायियों ने भारत से पलायन किया और जापान, थाईलैंड, म्यांमार, कोरिया, श्रीलंका जैसे देशों में अपनी जडें जमाई।
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म्यांमार और श्रीलंका में बौद्ध धर्म
ईसा पूर्व तीसरी सदी में सम्राट अशोक की बेटी संघमित्रा भारत के बोधगया से बोधिवृक्ष की डाल लेकर सबसे पहले श्रीलंका पहुंची. इसके बाद बौद्ध धर्म की जड़ें फिर आसपास फैलती चली गईं. म्यांमार में बौद्ध धर्म कमोबेश उतना ही प्राचीन है जितना दूसरे दक्षिण पूर्व एशियाई देशों में. श्रीलंका के अलावा इन देशों में बौद्ध धर्म भारत से ही गया था.
मार्शल आर्ट और बौद्ध धर्म का सम्बन्ध
मार्शल आर्ट और बौद्ध धर्म का सम्बन्ध कैसे हो सकता है जब बौद्ध धर्म अहिंसा का पाठ पढाता है. ऐसा विचार हम सबके मन में आता है।
लेकिन ऐसा माना जाता है चीन में बौद्ध धर्म के भिक्षुओं में आत्मरक्षा प्रशिक्षण की परम्परा करीब 1500 साल पुरानी है.
इन्हें शाओलिन भिक्षु कहा जाता है, जो शाओलिन मंदिर से जुड़े माने जाते हैं. इसके अलावा जापान के यामाबुशी में वारियर मोंक की लंबी परंपरा थी. उसमें मंदिर पर कब्जे के लिए लड़ाई झगड़े भी होते थे.
बौद्ध धर्म अनुयायियों के हिंसात्मक होने के पीछे वजह कुछ भी रही हो लेकिन इतना तो तय है कि कोई भी धर्म हिंसा का पाठ नहीं पढ़ाता. तो सभी धर्म को इसकी मर्यादा बनाये रखनी चाहिए.
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