क्या है गाँधी परिवार का गुजरात के सोमनाथ मंदिर से नाता ?
गुजरात विधानसभा चुनाव के दौरान कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गाँधी सोमनाथ मंदिर के दर्शन करने गए, लेकिन वहां भी उनके साथ एक विवाद ने जन्म ले लिया। दरअसल राहुल गाँधी की एंट्री एक गैर हिन्दू विजिटर के रूप में मंदिर में की गयी। इससे आलोचकों को राहुल गाँधी के खिलाफ बोलने का मौका मिल गया। हालाँकि कांग्रेस ने इसको उनके सहयोगी की त्रुटि माना है। कांग्रेस के मीडिया कॉर्डिनेटर मनोज त्यागी ने उन दोनों की एंट्री एंट्री गैर हिन्दू के तौर पर कराई। बता दें कि मंदिर के नियमों के अनुसार, गैर हिन्दुओं को रजिस्टर में एंट्री करनी जरूरी होती है. मीडिया कॉर्डिनेटर ने लिखा कि मंदिर में हिंदुओं और गैर-हिंदुओं के लिए अलग रजिस्टर होती है, इस बात की जानकारी उन्हें नहीं थी.
मामला चाहे कुछ भी हो लेकिन सोमनाथ मंदिर का नेहरु-गाँधी परिवार से काफी पुराना रिश्ता है. चलिए बताते हैं.
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जवाहर लाल नेहरु और सोमनाथ मंदिर का क्या ही कनेक्शन
राहुल गाँधी के सोमनाथ मंदिर के दर्शन पर प्रधानमंत्री ने बड़ा तंज़ भरा ट्वीट किया जिसमें भारत के प्रथम प्रधानमंत्री भी सवालों के घेरे में आ गए. दरअसल प्रधानमंत्री मोदी ने ट्वीट किया कि ”आज कुछ लोग सोमनाथ को याद कर रहे हैं. मैं उनसे पूछना चाहता हूं कि आप इतिहास भूल गए हैं क्या? आपके परिवार के सदस्य, हमारे पहले प्रधानमंत्री यहां मंदिर बनाने के पक्ष में ही नहीं थे.” उन्होंने आगे लिखा, “जब डॉ. राजेंद्र प्रसाद को यहां सोमनाथ मंदिर का उद्घाटन करने के लिए आना था, तो इस पर पंडित नेहरू ने नाख़ुशी जताई थी.”
आज कुछ लोग सोमनाथ को याद कर रहे हैं, मैं उनसे पूछना चाहता हूँ – क्या आप अपना इतिहास भूल गए हैं? आपके परिवार के सदस्य और देश के पहले प्रधानमंत्री सोमनाथ मंदिर के निर्माण से खुश नहीं थे: प्रधानमंत्री मोदी @BJP4Gujarat pic.twitter.com/5PbRmM70je
— narendramodi_in (@narendramodi_in) November 30, 2017
पंडित नेहरू सोमनाथ मंदिर के निर्माण को लेकर लगातार अपनी नाराजगी जताते रहे लेकिन आज ऐसा क्या हुआ जो कांग्रेस को सोमनाथ की याद आ रही है: प्रधानमंत्री मोदी @BJP4Gujarat pic.twitter.com/gBV6im4WSA
— narendramodi_in (@narendramodi_in) November 29, 2017
अब सवाल यह है कि किस आधार पर प्रधानमंत्री मोदी जवाहरलाल नेहरु का ज़िक्र कर रहे हैं . क्या वास्तव में उनकी बातों में दम है. इसके लिए हमें इतिहास में झांकना पड़ेगा.
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सोमनाथ मंदिर का इतिहास
सौराष्ट्र के पूर्व राजा दिग्विजय सिंह ने 8 मई 1940 को सोमनाथ के नवनिर्मित मंदिर की आधारशिला रखी तथा 11 मई 1951 को भारत के प्रथम राष्ट्रपति डॉ॰ राजेंद्र प्रसाद ने मंदिर में ज्योतिर्लिग स्थापित किया था. सोमनाथ मंदिर 1962 में पूर्ण निर्मित हो गया था.
बात 1947 की है. जब आजादी के बाद सभी रियासतों के विलय का दौर चल रहा था तो जूनागढ़ के रियासत के राजा ने भौगोलिक स्थिति को दरकिनार करते हुए फैसला लिया था कि रियासत का विलय पाकिस्तान में ही होगा. लेकिन भारत के तत्कालीन उप-प्रधानमंत्री सरदार वल्लभ भाई पटेल जानते थे कि इसकी इजाजत देना देश की सुरक्षा के लिए खतरा पैदा करने की तरह होगा.
सरदार पटेल ने सेना की मदद से जूनागढ़ रियासत का विलय भारत में कर लिया. जब सरदार पटेल जूनागढ़ आए तो उन्हें लगा कि सोमनाथ मंदिर का पुनरुद्धार किया जाना चाहिए. इससे पहले भी मंदिर के जीर्णोद्धार के लिए कुछ कोशिशें की गई थीं लेकिन सफल नहीं हो पाईं.
सोमनाथ मंदिर निर्माण में तत्कालीन उप-प्रधानमंत्री सरदार वल्लभ भाई पटेल का बड़ा योगदान रहा था. सोमनाथ मंदिर को लेकर देश के प्रथम प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू और तत्कालीन राष्ट्रपति डॉक्टर राजेंद्र प्रसाद के बीच गतिरोध भी उत्पन्न हुआ था. सोमनाथ मंदिर को लेकर दोनों नेताओं का दृष्टिकोण अलग-अलग था. सोमनाथ मंदिर के जीर्णोद्धार के प्रस्ताव को लेकर सरदार पटेल, केएम मुंशी और कांग्रेस के दूसरे नेता महात्मा गांधी के पास गए.
कहा जाता है कि महात्मा गांधी ने इस फैसले का स्वागत किया था लेकिन उन्होंने इसके लिए सरकारी खजाने का इस्तेमाल नहीं करने की सलाह भी दी. लेकिन महात्मा गांधी और सरदार पटेल की मृत्यु के बाद मंदिर के पुनरुद्धार की जिम्मेदारी नेहरू सरकार में खाद्य एवं आपूर्ति मंत्री केएम मुंशी पर आ गई.
जब नेहरु ने राजेंद्र प्रसाद को सोमनाथ मंदिर जाने से रोका
सोमनाथ मंदिर के एक कार्यक्रम में भारत के पहले राष्ट्रपति राजेंद्र प्रसाद को आमंत्रित किया गया था लेकिन नेहरू नहीं चाहते थे कि देश के राष्ट्रपति किसी धार्मिक कार्यक्रम में शरीक हों. नेहरू का दृष्टिकोण था कि भारत एक धर्मनिरपेक्ष राज्य है और राष्ट्रपति के इस तरह के कार्यक्रमों में शामिल होने से लोगों के बीच गलत संकेत जाएगा.
लेकिन डॉक्टर राजेंद्र प्रसाद ने उनकी राय नहीं मानी और 1951 में सोमनाथ मंदिर पहुंचे.वहीं, नेहरू ने खुद को सोमनाथ मंदिर के जीर्णोद्धार से पूरी तरह अलग रखा था. नेहरू ने सौराष्ट्र के मुख्यमंत्री को एक पत्र लिखकर सोमनाथ मंदिर परियोजना के लिए सरकारी फंड का इस्तेमाल नहीं करने का निर्देश दिया था.वर्तमान भवन के पुनर्निर्माण का आरंभ भारत की स्वतंत्रता के पश्चात् लौहपुरुष सरदार वल्लभ भाई पटेल ने करवाया और 1 दिसंबर 1995 को भारत के राष्ट्रपति शंकर दयाल शर्मा ने इसे राष्ट्र को समर्पित किया.
1970 में जामनगर की राजमाता ने अपने पति की स्मृति में उनके नाम से ‘दिग्विजय द्वार’ बनवाया. इस द्वार के पास राजमार्ग है और पूर्व गृहमन्त्री सरदार बल्लभ भाई पटेल की प्रतिमा भी है.
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