“योगी लाओ देश बचाओ” के नाम पर धर्म संसद – धर्म का बेजा राजनैतिक इस्तेमाल करने की कोशिश
कहते है राजनीति और धर्म को साथ साथ नहीं आना चाहिए। दोनों के साथ आने से परिणाम हमेशा घातक ही रहे है। भारत में धर्म – सामाजिक, राजनैतिक और आर्थिक तौर पर इतना घुले-मिले हैं कि कई बार दोनों में अंतर करना मुश्किल हो जाता है। ऐसा ही हुआ आज जब हाल के राज्यों के चुनाव में भारतीय जनता पार्टी की हार के बाद एक संगठन ने लखनऊ में धर्म का बेजा इस्तेमाल की कोशिश की।
इन पोस्टरों के जरिएउत्तर प्रदेश नवनिर्माण सेना नाम के संगठन ने धर्म सम्मेलन करने की सूचना दी है। पर पोस्टर पर ही उसने उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ को प्रधानमंत्री (Yogi 4 PM) बनाने की बात भी लिखी है। बात यहीं तक होती तो ठीक था, पर पोस्टर में देश के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को जुमलेबाजी का पर्याय बताया गया है। साथ ही योगी को हिंदुत्व का ब्रांड।
दूसरे पोस्टर में मोदी और योगी के कार्यों को लिखा गया है जिससे ये साफ पता चलता है कि ये मोदी के विरोध में और योगी के पक्ष में माहौल बनाने की मंशा से तैयार किया गया है।
बात मोदी, योगी या उनकी भर नहीं है। बात है धर्म सम्मेलन की है। इस संगठन मे 10 फरवरी को लखनऊ के सबसे खास मैदान में धर्म संसद कर इस मुद्दे को उठाने की बात कही है। आखिर धर्म के ठेकेदार बनने की इसे ये आजादी किसने दी। क्या धर्म संसद अब ऐसे विषयों पर होंगे जो ये तय करेंगे कि मोदी गलत है और योगी सही।
सदियों से धर्म की भूमिका समाज में मूल्यों, आदर्शों और संस्कारों के विकास और उनके संरक्षण के लिए हुआ है। सामाजिक विकास में धर्म की अग्रणी भूमिका है। समाज के लिए नियम और संगठनों के निर्माण से राजनीति का उदय हुआ। और इसके लिए उच्च आदर्श धर्म से ही लिए गए। ऐसे में जब अंजाने से संगठन धर्म का प्रयोग निजी हितों और राजनैतिक लाभ के लिए लेने लगते हैं, तो इससे समाज और विश्वास की हानि होती है।
- भव्य श्रीवास्तव