पवहारी बाबा – पवन जिनका आहार था
क्या कोई अन्न– जल के बिना जीवित रह सकता है ? नहीं ना ? लेकिन भारत भूमि पर ऐसे संत भी हुए हैं जिनके लिए शरीर धर्म से उपर उठ कर भी भगवद् भक्ति में बिना अन्न जल के रहना संभव था । ऐसे ही एक संत हुए हैं पवहारी बाबा । पवहारी बाबा के बारे में यही कहा जाता है कि वो सिर्फ वायु पीकर ही अपने शरीर की सारी जरुरतें पूरी कर लेते थे। पवहारी बाबा 19 वीं सदी के उन महान संतों में एक थे जिनकी योग और भक्ति साधना ने स्वामी विवेकानंद को भी सबसे ज्यादा प्रभावित किया था। स्वामी जी उनसे इतने प्रभावित थे कि उन्होंने पवहारी बाबा के जीवन दर्शन और उनसे उनकी मुलाकात पर एक पुस्तक भी लिखी थी। स्वामी विवेकानंद ने खुद सिस्टर निवेदिता को ये बताया था कि वो राम कृष्ण परमहंस को अपना गुरु बनाने से पहले पवहारी बाबा को ही अपना गुरु बनाना चाहते थे। पवहारी बाबा और विवेकानंद की मुलाकात की कहानी भी बड़ी अनोखी है।
शिकागो जाने से पहले विवेकानंद हिमालय की यात्रा पर थे तभी वहीं उनकी मुलाकात एक साधु से हुई । स्वामी जी उस साधु से बहुत प्रभावित हुए । उसी साधु ने स्वामी जी को एक कथा सुनाई। यह कथा कुछ ऐसी थी कि एक संत के घर पर रात को एक चोर घुस आया। वो चोर उस संत का कंबल और बर्तन चुरा कर भाग ही रहा था कि अचानक वो संत जाग गए और उन्होंने चोर को पकड़ लिया। लेकिन उस चोर के आश्चर्य का ठिकाना नहीं रहा जब उस संत ने कहा कि हे प्रभु आप हमारे घर चोरी करने आए हैं ये मेरे लिए सौभाग्य की बात है आप इन वस्तुओं को ले जाकर मुझ पर कृपा कीजिए । वो चोर उस संत के पैरों में गिर पड़ा । स्वामी जी ने पूछा कि वो संत कौन हैं और उस चोर का क्या हुआ । तब उस साधु ने बताया कि मैं ही वो चोर था और संत थे पवहारी बाबा । स्वामी जी तुरंत पवहारी बाबा से मिलने के लिए गाजीपुर आए और कई दिनों तक बाबा के सानिध्य में रहे । स्वामी जी ने बाबा से कहा कि वो उन्हें अपना शिष्य बना लें। बाबा ने कहा कि कुछ दिन रुक जाओ । कुछ दिनों में ही स्वामी जी के सपने में स्वामी रामकृष्ण परमहंस आए और उन्होंने कहा कि वही स्वामी जी के गुरु हैं ।
इसके बाद स्वामीजी ने पवहारी बाबासे विदा ली। लेकिन स्वामीजी जीवन पर्यंत पवहारी बाबा के प्रति श्रद्धावान रहें। स्वामी विवेकानंद ने पवहारी बाबा पर एक किताब भी लिखी है।
पवहारी बाबा कण-कण में भगवान को देखते थे और प्राणीमात्र में भी उन्हें ईश्वर के दर्शन होते थे।एकबार उन्हें एक नाग ने डस लिया तब भी पवहारी बाबा ने उस नाग को मारने के बजाय उसमें ईश्वर का दर्शन कर लिया और नाग से कहा कि प्रभु आप आए और आपने मुझे मेरे पापों से मुक्त कर दिया इसके लिए आपका कोटी कोटी धन्यवाद।
पवहारी बाबा को ये जीवन दर्शन और भक्ति कहां से मिली और क्या है पवहारी बाबा का जीवन चरित इसको जान लेने से भी हम भारत भूमि के महान संतों से प्रेरित हो सकते हैं। पवहारी बाबा का जन्म उत्तर प्रदेश के जौनपुर में एक ब्राह्मण परिवार में हुआ था । बाल्यकाल से ही वो अपने चाचा के सानिध्य में गाजीपुर में रहे । उनके चाचा रामानुज संप्रदाय के एक विद्धान संत थे। पवहारी बाबा को भक्ति साधना के रहस्य अपने चाचा से ही प्राप्त हुए। कुछ वक्त बाद जब उनके चाचा जी का निधन हो गया तो पवहारी बाबा देशाटन पर निकल पड़े और गुजरात के काठियावाड़ में एक साधु से योग की दीक्षा ली। बाबा कुछ वर्षों को बाद गाजीपुर ही आकर बस गए और वहीं उन्होंने जमीन के अंदर एक गुफा बना ली । बाबा महीनों उसी गुफा के अंदर साधना करते रहते । बाबा महीनों कुछ खाते पीते नहीं थे इसीलिए वहां के लोगों ने उनका नाम पवहारी बाबा रख दिया जिसका अर्थ है पवन का आहार करने वाला । बाबा कभी किसी के सामने नहीं आते थे। उसी गुफा में एक दीवार के पीछे रह कर अपने भक्तों से बात करते थे। एक बार जब स्वामी विवेकानंद ने उनसे प्रश्न किया कि वो दुनिया के सामने आकर क्यों नहीं लोगों का कल्याण करते तो बाबा का जवाब था कि जरुरी नहीं है कि शरीर के साथ ही कल्याण किया जाए अपनी आत्मा के जरिए भी लाखों लोगों के मनों तक पहुंचा जा सकता है और उनके जीवन को बदला जा सकता है। कहा जाता है कि बाबा की गुफा में एक मणिधारी सर्प रहा करता था जिसके मणि की रोशनी पूरी गुफा में फैलती रहती थी। आज भी पवहारी बाबा की कोई फोटो उपलब्ध नहीं है।
बाबा किसी से भी कोई सहायता नहीं लेते थे । यहां तक कि लोगों को उनके जीवन के बाद भी उनके अंतिम संस्कार का भार ना उठाना पड़े इसलिए 1898 के एक दिन उन्होंने गुफा के अंदरही दिव्य अग्नि को प्रकटकर खुद काअग्नि संस्कार कर अपनी इहलीला समाप्त कर ली थी।
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लेखक – अजीत मिश्रा