“संत” श्री स्वामी जी महाराज – दतिया के संत, जिन्होंने रोका था भारत-चीन युद्ध
नवरात्र स्पेशल पर हम आपको बताने जा रहे हैं मां काली के एक अन्य रुप मां पितांबरा के ऐसे भक्त की कहानी जिनकी प्रार्थना से भारत और चीन का युद्ध थम गया था। दतिया के पीतांबरा मंदिर के बारे में आप सभी ने सुना होगा। इस मंदिर में आने वाले भक्तों को कोर्ट कचहरी के मुकदमों, जीवन के कष्टों और अन्य सभी समस्याओं से मुक्ति मिल जाती है। इस मंदिर की स्थापना मां काली के एक अनन्य भक्त श्री स्वामी जी महाराज जी ने सन 1935 में कराई थी।
श्री स्वामी जी महाराज के प्रारंभिक जीवन के बारे में किसी को भी कुछ नहीं पता है। बस उनकी पहली जानकारी तब मिलती है जब वो साल 1929 में दतिया पधारे। यहां पहले एक श्मशान हुआ करता था। यहीं पर पांच हजार साल पहले का बना एक शिव मंदिर था जिसे वनखंडेश्वर के नाम से जाना जाता था। महाराज श्री अखंड ब्रम्हचारी थे और उन्हें एक रात मां काली के एक अन्य रुप बग्लामुखी ने दर्शन देकर उन्हें यहां मां पीतांबरा (बग्लामुखी) का मंदिर बनाने का आदेश दिया।
महाराज श्री और मां पीतांबरा की प्रेरणा से इस श्मशान स्थल पर बग्लामुखी मंदिर के साथ मां धूमावती के मंदिर का निर्माण हुआ। वैसे मां धूमावती का मंदिर बनाना शास्त्रों में निषिद्ध बताया गया है लेकिन महाराज श्री का कहना था कि मां कभी भी अपने बच्चों का बुरा नहीं कर सकती है इसलिए यह मंदिर बनाया जाएगा।
शीघ्र ही महाराज श्री की भक्ति इतनी दूर तक पहुंच गई कि प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरु भी उनके मुरीद बन गए। जब भारत चीन युद्द में चीनी सेनाएं भारत की तरफ बढ़ने लगी थी तब नेहरु जी ने महाराज श्री से प्रार्थना की थी को वो कुछ ऐसा करें जिससे चीनी सेना को रोका जा सके। महाराज श्री ने एक अखंड राष्ट्र रक्षा यज्ञ का आयोजन किया। इस यज्ञ के समाप्त होने से पहले ही यह खबर आ गई कि चीनी सेना वापस लौटने लगी है और युद्ध विराम हो गया है।
महाराज श्री ने अनेक पुस्तकों की भी रचना की जिसमें मां बग्लामुखी की आराधना पद्धति पर लिखी गई उनकी पुस्तक सबसे प्रामाणिक मानी जाती है।
वर्ष 1979 में उनके महासमाधि के बाद आज भी लोग अपने संत श्री महाराज जी की प्रेरणा से यहां आते हैं और मां पीतांबरा का आशीर्वाद पाते हैं।
देखिए : जब मां पीतांबरा की पूजा से टला भारत-चीन युद्ध…..
कीजिए पीतांबरा मठ के दर्शन….