स्वामी सत्यमित्रानंद गिरी : भारत के महान संत
पूज्य महाराज श्री सत्यमित्रानंद जी 1932 में आगरा में ब्राह्मण परिवार में जन्मे श्री रामकृष्ण वचनामृत और स्वामी विवेकानंद के जीवन से प्रभावित हो एक साधारण युवक से ब्रह्मचारी बन घर से निकल पड़े और हिमालय की तलहटी में साधना की।
पूज्य स्वामी अखंडानंद जी, आनंदमयी मां, स्वामी करपात्री जी, स्वामी शरणानंद जी, स्वामी वेदव्यासनन्द जी, पंडित श्री राम शर्मा जी आदि मूर्धन्य संतो के सानिध्य में रह साधना पूर्ण की।
आपके ओजस्वी, गांभीर्य प्रवचन एवं लेखों, साधना से प्रभावित हो मात्र 29 वर्ष की युवा आयु में 1960 में आपको भारत का गौरव पूर्ण जगदगुरू शंकराचार्य पद पर अभिषिक्त किया गया। 10 वर्ष पश्चात आपने राष्ट्र एवम समाज सेवा हेतु पद त्याग कर पूरे देश एवम विश्व के 40 से अधिक देशों में भारत की संस्कृति का डिम डिम घोष करते हुए प्रचार किया।
1964 में विश्व हिन्दू परिषद के संस्थापक संत मंडल के पांच सदस्य समिति में रहे। वर्तमान में आप उसके मार्गदर्शक पद पर थे। छोटे से छोटे गाँव, वनक्षेत्र जा कर हिन्दू समाज को जोड़ने की पहल की।
भारत का मान गौरव का प्रतीक भारत माता मंदिर 1983 में हरिद्वार में स्थापित किया जहां एक साथ संघ और इंदिरा गांधी नज़र आए।
इंदिरा गांधी की हत्या के पश्चात हुए तनाव को रोकने हिन्दू सिख एकता हेतु ऐतिहासिक अमृतसर तक एकता यात्रा निकाली। कुम्भ में पहले संत जो सफाई कर्मचारियो के संग शाही स्नान किया। राम मंदिर आंदोलन के पक्ष में 1990 में प्रचार करते हुए जेल गए।
विश्व की कई देशों की संसद में आपके प्रवचन हुए। आपके सेवा कार्यो से प्रभावित हो इंग्लैंड, कनाडा द्वारा आपके सम्मान में सिक्के जारी किये गए, वही बहुत से देशो ने आपके सम्मान में डाक टिकट जारी किए गए। सन 2000 में न्यूयॉर्क में आयोजित विश्व धर्म सम्मेलन में आपने हिन्दू धर्म के संत मंडल का नेतृत्व किया पुनः हिन्दू भारतीय संस्कृति का गौरव बढ़ाया।
2015 में भारत सरकार द्वारा आपको, आपके सेवा कार्यो के लिये पदमभूषण से सम्मानित किया गया। भारत में भी राष्ट्रपति भवन में आपके प्रवचन हुए। ज्ञानी जैल सिंह से आगे लगभग सभी राष्ट्रपति महोदय आप के ज्ञान दर्शन से प्रभावित और पूज्य श्री का सम्मान करते थे। कई राज्यों में आपको राज्य अतिथि का सम्मान दिया गया।
गुजरात, मध्यप्रदेश, झारखंड और उत्तराखंड की पहाड़ियो में बसे दूरस्थ वनवासी भाई बहिनों के लिए भोजन, चिकित्सा और शिक्षा को पहुंचाने के लिए सतत कर्मयोगी की तरह लगे रहे।
छुआछूत के घोर विरोधी,अंधविश्वास से दूर स्वामी विवेकानंद के अभिनव भारत बनाने हेतु कभी कच्ची बस्तियों में सफ़ाई करते हुए, कभी रक्षाबन्धन मनाते हुए, कभी उस दलित शोषित समाज का दर्द समझ हिन्दू समाज से जोड़ने का कार्य किया। बाढ़ ,भूकंप अन्य किसी भी प्राकर्तिक आपदा में आप सहयोग हेतु हमेशा अग्रणी रहे। विकलांग सेवा पर आपका विशेष जोर रहा।
यज्ञ संस्कृति के पोषण में भी आपका योगदान रहा,भारत ही नही विश्व के कई देशो में विराट 1008 और 108 कुंडीय गायत्री, गंगा, सूर्य,श्री राम,गणेश,चतुर्वेद सीता माता और अंत मे भारत माता महायज्ञ आयोजित किये।
भारत माँ आपकी आराध्या रही इसलिए इतने देशों में आपको मानने वाले अनुयायी होते हुए भी वहाँ आपने कोई आश्रम नही बनाए। वही के स्वामीनारायण और अन्य मंदिरों को ही संपोषण दिया।
रामकृष्ण मिशन, गायत्री परिवार और राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ से आपका बहुत नैकट्य था। पूज्य द्वितीय सरसंघचालक श्री गोलवलकर जी से वर्तमान मोहन भागवत जी तक आप संघ के हर छोटे बड़े कार्यक्रम में सहयोगी भागीदार बने।
आप वेद शिक्षा और गौ सेवा के संपोषक रहे। वेद बिना मति नही, गाय बिना गति नही – आपका कथन था।
कवि ह्रदय होने के कारण कई बार आदरणीय अटल बिहारी जी वाजपेई, जो आपके कॉलेज में सीनियर भी थे, के साथ कवि सम्मलेन में भाग लेते थे। राष्ट्रीय कवि मंच के संरक्षक रहे।
आप तीक्ष्ण प्रज्ञा के धनी थे।एक बार जो आपसे मिल लेता आप उसे भूलते नहीं थे। देश के बिड़ला परिवार से वनवासी तक सबके आप प्रिय थे।विदेशो में बिल गेट्स जैसे धनी भी आप के दर्शन हेतु पधारते थे।
आप रामचरित मानस और श्रीमद्भगवतगीता जी के अध्यायी और विद्वान थे। हिंदी अंग्रेजी गुजराती,अवधी सहित कई भाषाओं पर आपका अधिकार था।
आपकी प्रार्थना अब सौंप दिया इस जीवन का सब भार तुम्हारे हाथों में जनप्रिय हो गई।
शिष्यों के रूप में आपने पूज्य स्वामी प्रज्ञा भारती गिरी जी, जूना पीठाधीश्वर आचार्य स्वामी अवधेशानंद गिरी जी, आचार्य स्वामी गोविन्द देव गिरी जी, शास्त्री स्वामी अखिलेश्वरानंद गिरी जी, राधा भाव भावित स्वामी देवमित्रानंद गिरी जी और भी बहुत से आदरणीय संतो की श्रंखला के रूप में आदर्श संतो की परंपरा समाज को प्रदान की।
देश भर में आप द्वारा स्थापित समन्वय परिवार आप के आदर्शों पर चल भारत के गौरव को बढ़ाने में सहयोगी बन रहे है।
जिव्हा पर सतत प्रभु राम का जाप और सबको प्रणाम, प्राणिमात्र में अपने नारायण के दर्शन यही जीवन का आधार बना लिया था आपने।
परिचय देना बहुत कठिन क्योंकि अभी में पावक सा द्युतिमान हुँ यह आपका स्वयं का कहना था। तो किसी और की तो बात ही क्या।
सच्चे अर्थों में आप भगवान आदि शंकराचार्य जी और स्वामी विवेकानंद जी की परंपरा के संपोषक बने। हम धन्य है आप जैसे संत का सानिध्य पाकर। अपने जन्म में आप जैसे महापुरुष का संग पाकर।
साभार – श्री चंपत राय जी “अन्तर्राष्ट्रीय उपाध्यक्ष विश्व हिन्दू परिषद”