शनि अमावस्या : शनिदेव को प्रसन्न कैसे करें : उपाय और विधि
शनिचरी अमावस्या का दिन काफी शुभ माना जाता है। इस दिन किए गए उपाय से कुंडली के दोष शांत होते हैं और परेशानियां समाप्त होती है। इस दिन किसी पवित्र नदी में स्नान करने के बाद शनि की वस्तुओं का दान करना चाहिए।ज्योतिष के अनुसार जिस व्यक्ति की कुंडली में शनि अशुभ फल देने वाला हो या जिन लोगों पर शनि की साढ़ेसाती या ढैय्या चल रही हो उन सभी के लिए यह योग खास फल देने वाला है। अत: इस दिन शनि दोष को दूर करने के लिए ज्योतिषीय उपाय अवश्य करने चाहिए।
ज्योतिषाचार्य पंडित दयानन्द शास्त्री ने बताया कि शनि मंदिरों पर शनिश्चरी अमावस्या के दिन भक्तों का जनसैलाब उमड़ेगा। जहां आने वाले भक्त शनि के प्रकोप से बचने के लिए उनकी आराधना करते नजर आऐंगे। शनिचरी अमावस्या के चलते लोगों में यह ज्यादा महत्व रखता है कि इस दिन शनिदेव की पूजा करने से भक्तों की मनोकामनाऐं पूर्ण होती है। इस के लिए भक्तों में उत्साह भी नजर आ रहा है।शनिचरी अमावस्या के दिन शनि मंदिरों पर भक्तों का तांता लगता है। जहां शनिचरी अमावस्या को शनि आराधना करने से कष्ट से मुक्ति मिलती है।
शनि देव की पौराणिक कथा
धर्म ग्रंथों के अनुसार सूर्य की द्वितीय पत्नी छाया के गर्भ से शनिदेव का जन्म हुआ। शनि के श्याम वर्ण को देखकर सूर्य ने अपनी पत्नी छाया पर आरोप लगाया कि शनि मेरा पुत्र नहीं है, तभी से शनि अपने पिता से शत्रुभाव रखते हैं। शनिदेव ने अपनी साधना-तपस्या द्वारा शिवजी को प्रसन्न कर अपने पिता सूर्यदेव की भाँति शक्ति को प्राप्त किया और शिवजी ने शनि को वरदान माँगने के लिए कहा। तब शनिदेव ने प्रार्थना की कि युगों-युगों से मेरी माता छाया की पराजय होती रही है। मेरे पिता सूर्य द्वारा बहुत ज्यादा अपमानित व प्रताडि़त किया गया है। अतः माता की इच्छा है कि मेरा पुत्र शनि अपने पिता से मेरे अपमान का बदला ले और उनसे भी ज्यादा शक्तिशाली बने। तब भगवान शंकर ने वरदान देते हुए कहा कि नवग्रहों में तुम्हारा सर्वश्रेष्ठ स्थान रहेगा। मानव तो क्या देवता भी तुम्हारे नाम से भयभीत रहेंगे। आज के इस भौतिक युग में हर व्यक्ति किसी न किसी परेशानी से व्यथित रहता है। इसका मुख्य कारण ग्रह दोष होता है। ग्रह प्रतिकूल होने के कारण ऐसी परेशानियाँ आती हैं।
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शनि अमावस्या के दिन श्री शनिदेव की आराधना करने से समस्त मनोकामनाएं पूर्ण होंती हैं. श्री शनिदेव भाग्यविधाता हैं, यदि निश्छल भाव से शनिदेव का नाम लिया जाये तो व्यक्ति के सभी कष्टï दूर हो जाते हैं. श्री शनिदेव तो इस चराचर जगत में कर्मफल दाता हैं जो व्यक्ति के कर्म के आधार पर उसके भाग्य का फैसला करते हैं. इस दिन शनिदेव का पूजन सफलता प्राप्त करने एवं दुष्परिणामों से छुटकारा पाने हेतु बहुत उत्तम होता है. इस दिन शनि देव का पूजन सभी मनोकामनाएं पूरी करता है.
शनिश्चरी अमावस्या पर शनिदेव का विधिवत पूजन कर सभी लोग पर्याप्त लाभ उठा सकते हैं. शनि देव क्रूर नहीं अपितु कल्याणकारी हैं. इस दिन विशेष अनुष्ठान द्वारा पितृदोष और कालसर्प दोषों से मुक्ति पाई जा सकती है. इसके अलावा शनि का पूजन और तैलाभिषेक कर शनि की साढेसाती, ढैय्या और महादशा जनित संकट और आपदाओं से भी मुक्ति पाई जा सकती है…
इन प्रयोगों / उपायों से होगा लाभ
ज्योतिषाचार्य पंडित दयानन्द शास्त्री ने बताया कि शनिवार को आने वाली शनिश्चरी अमावस्या के दिन शनि दोष से प्रभावित व्यक्ति , काल सर्प दोष, पित्र दोष, ग्रहण दोष एवं चाण्डाल दोष से प्रभावित लोग इस अमावस्या पर पूजन एवं दान कर परेशानियों से राहत प्राप्त कर सकते हैं।
- भगवान सूर्यदेव के पुत्र शनिदेव को खुश करने के लिए शनिचरी अमावस्या पर तिल, जौ और तेल का दान करना चाहिए, ऐसा करने पर मनोवांछित फल मिलता है।
- जिन राशियों के लिए शनि अशुभ है, वे खासकर इस अद्भुत योग पर शनि की पूजा करें तो उन्हें शनि की कृपा प्राप्त होगी और अशुभ योगों को टाला जा सकता है।
- शनि को तेल से अभिषेक करना चाहिए, सुगंधित इत्र, इमरती का भोग, नीला फूल चढ़ाने के साथ मंत्र के जाप से शनि की पी़ड़ा से मुक्ति मिल सकती है।
- इस दिन शनि मं-दिर में जाकर शनि देव के श्री विग्रह पर काला तिल, काला उड़द, लोहा, काला कपड़ा, नीला कपड़ा, गुड़, नीला फूल, अकवन के फूल-पत्ते अर्पण करें.
- अमावस्या के दिन काले रंग का कुत्ता घर लें आएं और उसे घर के सदस्य की तरह पालें और उसकी सेवा करें. अगर ऐसा नहीं कर सकते तो किसी कुत्ते को तेल चुपड़ी हुई रोटी खिलाएं. कुत्ता शनिदेव का वाहन है और जो लोग कुत्ते को खाना खिलाते हैं उनसे शनि अति प्रसन्न होते हैं.
- अमावस्या की रात्रि में 8 बादाम और 8 काजल की डिब्बी काले वस्त्र में बांधकर संदूक में रखें.
शनि अमावस्या के दिन शनि ग्रह शांति के लिए निम्नलिखित उपाय करने चाहिए-शनि जयंती के दिन सुबह जल्दी स्नान आदि से निवृत्त होकर सबसे पहले अपने इष्टदेव, गुरु और माता-पिता का आशीर्वाद लें. सूर्य आदि नवग्रहों को नमस्कार करते हुए श्रीगणेश भगवान का पंचोपचार (स्नान, वस्त्र, चंदन, फूल, धूप-दीप) पूजन करें.
क्या कहता है ज्योतिष
शनि अमावस्या के दिन श्री शनिदेव की आराधना करने से समस्त मनोकामनाएं पूर्ण होंती हैं. श्री शनिदेव भाग्यविधाता हैं, यदि निश्छल भाव से शनिदेव का नाम लिया जाये तो व्यक्ति के सभी कष्टï दूर हो जाते हैं. श्री शनिदेव तो इस चराचर जगत में कर्मफल दाता हैं जो व्यक्ति के कर्म के आधार पर उसके भाग्य का फैसला करते हैं. इस दिन शनिदेव का पूजन सफलता प्राप्त करने एवं दुष्परिणामों से छुटकारा पाने हेतु बहुत उत्तम होता है. इस दिन शनि देव का पूजन सभी मनोकामनाएं पूरी करता है.
शनिचरी अमावस्या का दिन काफी शुभ माना जाता है। इस दिन किए गए उपाय से कुंडली के दोष शांत होते हैं और परेशानियां समाप्त होती है। इस दिन किसी पवित्र नदी में स्नान करने के बाद शनि की वस्तुओं का दान करना चाहिए।ज्योतिष के अनुसार जिस व्यक्ति की कुंडली में शनि अशुभ फल देने वाला हो या जिन लोगों पर शनि की साढ़ेसाती या ढैय्या चल रही हो उन सभी के लिए यह योग खास फल देने वाला है। अत: इस दिन शनि दोष को दूर करने के लिए ज्योतिषीय उपाय अवश्य करने चाहिए।
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पंडित दयानंद शास्त्री के अनुसार शनिश्चरी अमावस पर शनि के निमित्त दान-पुण्य और काल सर्प दोष, पित्र दोष, ग्रहण दोष एवं चाण्डाल दोष आदिकी पूजा अवश्य करनी चाहिए। शनि की पूर्ण दृष्टि धनु एवं कर्क राशि पर पडऩे से अशांति, बीमारी, मानसिक तनाव एवं सामाजिक परेशानियां से इस राशि वाले भी प्रभावित हो रहे हैं। शनिवार को आने वाली शनिश्चरी अमावस्या के दिन शनि दोष से प्रभावित व्यक्ति , काल सर्प दोष, पित्र दोष, ग्रहण दोष एवं चाण्डाल दोष से प्रभावित लोग इस अमावस्या पर पूजन एवं दान कर परेशानियों से राहत प्राप्त कर सकते हैं।
जानिए क्या उपाय करें शनिचरी अमावस्या पर
शनिचरी अमावस्या के दिन दान-पुण्य, स्नान आदि का विशेष महत्व है। शनिदेव को प्रसन्न करने के लिए कुछ लोग मंदिरों के बाहर अपने चप्पल व कपड़े छोड़कर चले जाते है। आज के दिन हमें जरूरतमंदों को वस्त्र, फल, अनाज आदि का दान करना चाहिए तथा विपदानाश के लिए “ॐ शं शनैश्चराय नम:” मंत्र का जाप करना चाहिए।
पवित्र नदी के जल में स्नान कर शनि देव को तेल, लौहा व काले तिल अर्पित करना चाहिए। मोक्षदायिनी उज्जैयिनी एक ऐसी नगरी है जहाँ हरसिद्धी देवी, काल भैरव और महाकाली तीनों ही विराजीत है। अत: शनिवार के दिन पुण्यसलिला क्षिप्रा में स्नान का महत्व कई गुना बढ़ जाता है। कोई ग्रह खराब या बुरा नहीं होता। शनि के बारे में हमारे मन में कई भ्रामक धारणाएँ है। शनि भी फलदायक ग्रह है। इस शनिचरी अमावस्या के दिन शनि की उपासना करके हम शनि के कृपा पात्र बन सकते हैं।
शनि : एक परिचय
शनि ग्रह पृथ्वी से सबसे दूर का मूल ग्रह है जिसे सात मूल ग्रहों में स्थान दिया गया है। पौराणिक मान्यता के अनुसार शनि का जन्म सूर्य की द्वीतीय पत्नी छाया से हुआ है। ज्योतिषीय मतानुसार यह ग्रह पृथ्वी से ७९१०००००० मील की दूरी पर है |इसका व्यास ७१५०० मील [मतान्तर से ७४९३२ मील] मन गया है। सूर्य से इसकी दूरी ८८६०००००० मील है। यह अपनी धुरी पर १० घंटे ३० मिनट में घूमता है जबकि सूर्य के चारो ओर परिक्रमा करने में इसे प्रायः १०७५९ दिन ६ घंटे अर्थात लगभग २९ वर्ष ६ महीने लगते हैं। यह अत्यंत मंद गति से चलने वाला ग्रह है इसी कारण इसके नाम मंद तथा शनैश्चर अर्थात शनै शनै चलने वाला रखे गए हैं। सूर्य के समीप पहुचने पर इसकी गति लगभग ६० मील प्रतिघंटा ही रह जाती है। इसके चारो ओर तीन वाले हैं और इसके १० चन्द्रमा अर्थात उपग्रह हैं। यह अन्य ग्रहों की अपेक्षा हल्का और ठंडा है।
शनि को काल पुरुष का दुःख माना गया है और ग्रह मंडल में इसे सेवक का पद प्राप्त है। यह कृष्ण वर्ण ,वृद्ध अवस्था वाला ,शूद्र जाती ,नपुंसक लिंग ,आलसी स्वरुप ,तमो गुणी, वायु तंत्व और वात प्रकृति ,दारुण और तीक्ष्ण स्वाभावि होता है। इसका धातु लोहा ,वस्त्र -जीर्ण ,अधिदेवता -ब्रह्मा ,दिशा पश्चिम है। यह तिक्त रस का ,उसर भूमि का ,शिशिर ऋतू का प्रतिनिधि माना जाता है। इसका रत्न नीलम है |यह पृष्ठोदयी ,पाप संज्ञक ,सूर्य से पराजित होता है।
यह कूड़ा घर का प्रतिनिधि ,संध्याकाळ में बली ,वेदाभ्यास में रूचि न रखने वाला, कूटनीति -दर्शन -क़ानून जैसे विषयों में रूचि रखने वाला है। इसका वाहन भैंसा ,वार -शनिवार ,प्रतिनिधि पशु काला घोडा ,भैंसा ,बकरी हैं।
शनि का जीव शरीर में हड्डी ,पसली ,मांस पेशी ,पिंडली ,घुटने ,स्नायु ,नख तथा केशों पर आधिपत्य माना गया है |यह लोहा ,नीलम ,तेल ,शीशा ,भैंस ,नाग ,तिल ,नमक ,उड़द ,बच तथा काले रंग की वस्तुओं का अधिपति है।
शनिदेव कारागार ,पुलिस ,यातायात ,ठेकेदारी ,अचल संपत्ति ,जमीन ,मजदूर ,कल कारखाने ,मशीनरी ,छोटे दुकानदार तथा स्थानीय संस्थाओं के कार्य कर्ताओं का प्रतिनिधित्व करता है |
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किसी भी जातक की जन्म कुंडली में बलवान शनी विशिष्टता ,लोकप्रियता ,सार्वजनिक प्रसिद्धि एवं सम्मान को देने वाला भी होता है |इसके द्वारा वायु ,शारीरिक बल ,उदारता ,विपत्ति ,दुःख ,योगाभ्यास ,धैर्य ,परिश्रम ,पराक्रम ,मोटापा ,चिंता ,अन्याय ,विलासिता ,संकट ,दुर्भाग्य ,व्यय ,प्रभुता ,ऐश्वर्य ,मोक्ष ,ख्याति ,नौकरी ,अंग्रेजी भाषा ,इंजीनियरी ,लोहे से सम्बंधित काम ,साहस तथा मूर्छा आदि रोगों के सम्बन्ध में विचार किया जाता है |
शनि की साढ़े साती और ढैया अपना चरम प्रभाव प्रकट करती है |सूर्य के साथ शनि का वेध नहीं होता तथा ५ ,९ ,१२ में इसे वेध प्राप्त होता है जबकि ३ -६ -११ में यह अच्छा प्रभावी माना जाता है |इसकी स्वराशियाँ मकर और कुम्भ हैं तथा यह समय समय पर मार्गी और वक्री होता रहता है |यह तुला राशि के २० अंश तक परम उच्चस्थ और मेष राशि के २० अंश तक परम नीचस्थ होता है जबकि कुम्भ के २० अंश तक परम मूल त्रिकोणस्थ होता है |
लग्न से सातवें भाव में ,तुला मकर एवं कुम्भ राशि में,स्वद्रेष्काण ,दक्षिणायन ,शनिवार ,राश्यंत में और कृष्ण पक्ष का वक्री शनी बलवान माना जाता है |
बुध ,शुक्र ,राहू तथा केतु इसके मित्र जबकि सूर्य मंगल तथा चन्द्रमा से यह शत्रुता रखता है ,गुरु के साथ यह समभाव रखता है |यह जहाँ बैठता है वहां से तृतीय ,सप्तम और दशम को पूर्ण दृष्टि से देखता है |यह सूर्य के बाद बलवान ग्रह है और इसकी गणना पाप ग्रहों में की जाती है |यह जातक के जीवन पर प्रायः 36 से 42 वर्ष के बीच अपना विशेष प्रभाव प्रकट करता है |
गोचर में यह राशि संचरण के 06 माह पहले से ही अपना प्रभाव प्रकट करना आरम्भ कर देता है और एक राशि पर 30 माह तक रहता है। जिस राशि पर होता है उसके अगले और पिछले दोनों राशियों को प्रभावित करता है। यह राशि के अंतिम भाग में अपना पूर्ण फल देता है।