अश्विन मास की पूर्णिमा जिसे शरद पूर्णिमा के नाम से भी जाना जाता है, बिहार के मिथिलांचल में कोजागिरी पूर्णिमा के नाम से जाना जाता है.
इसे लेकर मिथिलांचलवासियों में काफी उत्साह देखा जाता है. इस दिन लोग रात भर जागते हैं. नव विवाहित पुरुषों के लिए इस त्योहार का खास महत्व होता है.
शरद पूर्णिमा कोजागरी व्रत इस साल 30 अक्टूबर 2020 यानी शुक्रवार को मनाया जाएगा. इस दिन को देवी लक्ष्मी के जन्मोत्सव के रूप में जाना जाता है.
क्यों कहते हैं शरद पूर्णिमा को कोजागिरी
कुछ कथाओं के मुताबिक, सागर मंथन के समय देवी लक्ष्मी शरद पूर्णिमा के दिन ही समुद्र से उत्पन्न हुई थीं. इसलिए शरद पूर्णिमा की रात को कोजागिरी या कोजागरी की रात कहा जाता है.
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कोजागिरी का महत्व
मिथिलांचल में इस रात नवविवाहित लोगों के घर खास तौर पर दूल्हे के घर उत्सव का माहौल रहता है. इस दिन दही, धान, पान, सुपारी, मखाना, चांदी के कछुए, मछ्ली, कौड़ी के साथ दूल्हे का पूजन किया जाता है. इस दिन वधू पक्ष की ओर से दुल्हे और उसके घर के सभी सदस्यों के लिए नए कपड़े मिठाई और मखाना आता है. कोजागिरी पर्व में मखाना का बहुत अधिक महत्व होता है. दूल्हा पक्ष के लोग अपनी क्षमता के मुताबिक, गांव के लोगों को निमंत्रण देकर पान, सुपारी और मखाना से उनका स्वागत करते हैं.
कोजागिरी पूर्णिमा पूजा विधि
इस दिन वर की पूजा के बाद सगे-संबंधियों और परिचितों के बीच मखाना, पान, बताशे, लड्डू का वितरण किया जाता है.
इस अवसर पर वर एक खास तरह की टोपी पहनते हैं जिसे पाग कहते हैं. मिथिला में पाग सम्मान का प्रतीक माना जाता है.
घर के बड़े बुजुर्ग इस दिन वर को दही लगाकर दुर्घायु औऱ सुखद वैवाहिक जीवन का आशीर्वाद देते हैं.
लोग मखाना,पैसे और बताशे लुटाकर उत्सव का आनंद मनाते हैं. इसे विवाह के बाद दूसरा सबसे बड़ा उत्सव माना गया है.
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