शारदीय नवरात्रि: जानिये बंगाल में होती हैं कौन सी दो तरह की दुर्गा पूजा
शारदीय नवरात्रि आरम्भ हो चुकी है और देश भर में दुर्गा पूजा की धूम है. ऐसे में आप दुर्गा पूजा के दौरान कोलकाता गए हैं तो आप जान जाएंगे कि इसे ‘खुशी का शहर’ क्यों कहा जाता है। पश्चिम बंगाल का पूरा राज्य खुली बांहों और दिलों में एक-दूसरे के साथ रहने की अतुलनीय भावनाओं के साथ मां दुर्गा के स्वागत में जुट जाता है।
उत्तरी कोलकाता के ताला और बागबाज़ार से लेकर दक्षिण के नकताला और बेहाला पंडाल तक, कोलकाता की सड़कों करोड़ों श्रद्धालुओं से जगमगाती रहती हैं।
इस सबन्ध में ज्योतिषाचार्य आलोक से बात हुयी तो वह बताते हैं- हालांकि, पूजा जैसी भी दिखे, लेकिन जब परंपराओं का पालन करने की बात आती है, तो कोई पीछे नहीं रहता। धार्मिक अनुष्ठानों के अलावा, कोलकाता में दुर्गा पूजा की अपनी ट्रेडमार्क विशेषताएं हैं जो इसे सबसे और ज़्यादा अलग बनाती हैं। आप शायद ही जानते हों कि कोलकाता में दो तरह की दुर्गा पूजा मनाई जाती हैं।
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आचार्य आलोक बताते हैं कि पश्चिम बंगाल में दो तरह की दुर्गा पूजा मानाने का रिवाज़ है- एक पारा और दूसरी बारिर।
क्या है पारा दुर्गा पूजा
दुर्गा पूजा का मतलब सिर्फ पंडाल नहीं होता। कोलकाता में दो तरह की दुर्गा पूजा मनाई जाती हैं। रस्मों के अलावा ये दोनों एक-दूसरे से बिल्कुल अलग हैं। एक ‘पारा’ यानी स्थानीय पूजा जो रोशनी, डिज़ाइन, थीम, विचारों और भीड़ का एक भव्य शो है। ये पूजा पंडालों और कम्यूनिटी हॉल्स में होती है।
क्या है बारिर दुर्गा पूजा
वहीं, दूसरी ओर है बारिर मतलब घर में पूजा। इस पूजा का एक घरेलू प्रभाव होता है और ये घर वापसी की भावना के साथ लोगों को अपनी जड़ों के करीब लाती है। इस तरह की पूजा उत्तरी कोलकाता के पुराने घरों या फिर दक्षिण कोलकाता के धनी घरों में होती है।