शीतला अष्टमी का पर्व 16 मार्च को मनाया जाएगा। इस त्योहार को बसौड़ा के नाम से भी जाना जाता है। इस दिन मां शीतला की भी पूजा की जाती है.
माता शीतला एक गधे की सवारी करती है. लेकिन माता शीतला ने आखिर एक गधे को ही अपने वाहन के रूप में क्यों स्वीकार किया आइए जनाते हैं इसके पीछे का कारण-
मां शीतला की सवारी गधा ही क्यों
शीतला माता शीतलता और ठंडे स्वाभाव की देवी मानी जाती हैं। शीतला अष्टमी का पर्व चैत्र मास के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को मनाया जाता है। जो कि होली के बाद आठवें दिन मनाया जाता है।
शीतला मां के एक हाथ में झाडू है जो स्वच्छता और सफाई का संदेश देती है और उनके दूसरे हाथ में पानी का कलश है। जो शीतलता प्रदान करता है। शीतला माता गधे की सवारी करती हैं।
गधे को बहुत ही ज्यादा धैर्यशील जानवर माना जाता है। माता शीतला ने गधे की सवारी करते हुए अपने भक्तों को यह संदेश देती हैं कि जो व्यक्ति तन, मन और धन से अगर धैर्य रखते हैं और निरंतर प्रयास करता है।
जिस प्रकार के प्रयास एक गदर्भ करता है तो मनुष्य को सफलता अवश्य ही प्राप्त होती है। शीतला मां ठंडे भोजन के माध्यम से सजगता और स्वच्छता का संदेश देती हैं।
इसके अलावा यह भी माना जाता है कि गधे में रोग को सहन की अधिक क्षमता होती है। माना जाता है कि संसार में दो प्रकार के प्राणी होते हैं पहले सौर शक्ति प्रधान और दूसरे चन्द्र शक्ति प्रधान।
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सौर शक्ति प्रधान प्राणी चंचल, चुलबुले और जल्द गुस्सा करने वाले और असहनशील होते हैं। वहीं चन्द्र शक्ति प्रधान व्यक्ति इसके विपरी त होते हैं।
गधा भी चन्द्र शक्ति प्रधान जीवों में से एक माना जाता है। गधा यह संकेत देता है कि रोगों का अधिक प्रहार होने पर भी रोगी को अधीर नहीं होना चाहिए।
इसके साथ ही शीतला रोग में गधी का दूध और गधे के लौटने के स्थान की मिट्टी बहुत अच्छी मानी जाती है। इसके साथ ही गधों के संपर्क का वातावरण भी इस समय में काफी अच्छा माना जाता है।
इसी कारण से मां शीतला ने गधे की सवारी की करती हैं और अपने भक्तो को आशीर्वाद देकर उनकी रोगो से रक्षा से करती है। शीतला अष्टमी के दिन मां शीतला के वाहन गधे की पूजा को काफी शुभ माना जाता है।
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