आखिर क्यूँ है हिन्दू धर्म में श्रावण (सावन) माह का महत्व ?
- जानिए की कैसे और किस शुभ घड़ी में करें श्रावण मास में भगवान शिव का पूजन
भगवान शिव की भक्ति का प्रमुख माह श्रावण 17 जुलाई 2019 (बुधवार) से 15 अगस्त 2019 (गुरुवार) तक रहेगा । पूरे माह भर भोलेनाथ की पूजा-अर्चना का दौर जारी रहेगा। सभी शिव मंदिरों में श्रावण मास के अंतर्गत विशेष तैयारियां की गई हैं। चारों ओर श्रद्धालुओं द्वारा ‘बम-बम भोले और ॐ नम: शिवाय’ की गूंज सुनाई देगी। शिवालयों में श्रद्धालुओं की अच्छी-खासी भीड़ नजर आएंगी। धार्मिक पुराणों के अनुसार श्रावण मास में शिवजी को एक बिल्वपत्र चढ़ाने से तीन जन्मों के पापों का नाश होता है।
एक अखंड बिल्वपत्र अर्पण करने से कोटि बिल्वपत्र चढ़ाने का फल प्राप्त होता है। साथ ही शिव को कच्चा दूध, सफेद फल, भस्म, भांग, धतूरा, श्वेत वस्त्र अधिक प्रिय होने के कारण यह सभी चीजों खास तौर पर अर्पित की जाती है। इसके साथ ही श्रावण मास शिवपुराण, शिवलीलामृत, शिव कवच, शिव चालीसा, शिव पंचाक्षर मंत्र, शिव पंचाक्षर स्त्रोत, महामृत्युंजय मंत्र का पाठ एवं मंत्र जाप करने से मनुष्य के सारे पापों का नाश होता है।
श्रावण का यह महीना भक्तों को अमोघ फल देने वाला है। माना जाता है कि भगवान शिव के त्रिशूल की एक नोक पर काशी विश्वनाथ की पूरी नगरी का भार है। उसमें श्रावण मास अपना विशेष महत्व रखता है।
आखिर क्यूँ है हिन्दू धर्म में श्रावण (सावन) माह का महत्व!!
पण्डित “विशाल” दयानन्द शास्त्री के अनुसार महिलाएं श्रावण मास में विशेष पूजा-अर्चना और व्रत-उपवास रखकर पति की लंबी आयु की प्रार्थना भोलेनाथ से करती हैं। खास कर सभी व्रतों में सोलह सोमवार का व्रत श्रेष्ठ माना जाता है।
श्रावण शिव का अत्यंत प्रिय मास है। इस मास में शिव की भक्ति करने से उनकी विशेष कृपा प्राप्त होती है। उनके पूजन के लिए अलग-अलग विधान भी है। भक्त जैसे चाहे उनका अपनी कामनाओं के लिए उनका पूजन कर सकता है। इस मास में प्रतिदिन श्री शिवमहापुराण व शिव स्तोस्त्रों का विधिपूर्वक पाठ करके दुध, गंगा-जल, बिल्बपत्र, फलादि सहित शिवलिंग का पूजन करना चाहिए || इसके साथ ही इस मास में “ऊँ नम: शिवाय:” मंत्र का जाप करते हुए शिव पूजन करना लाभकारी रहता है। इस मास के प्रत्येक मंगलवार को श्री मंगलागौरी का व्रत, पूजानादि विधिपूर्वक करने से स्त्रियों को विवाह, संतान व सौभाग्य में वृ्द्धि होती है |
उच्चारण में अत्यंत सरल शिव शब्द अति मधुर है। शिव शब्द की उत्पत्ति वश कान्तौ धातु से हुई हैं। जिसका तात्पर्य है जिसको सब चाहें वह शिव हैं ओर सब चाहते हैं आंनद को अर्थात शिव का अर्थ हुआ आंनद।
इस व्रत को वैशाख, श्रावण मास, कार्तिक मास और माघ मास में किसी भी सोमवार से प्रारंभ किया जा सकता है। इस व्रत की समाप्ति पर सत्रहवें सोमवार को सोलह दंपति को भोजन व किसी वस्तु का दान उपहार देकर उद्यापन किया जाता है।
सम्पूर्ण विश्व में शिवलिंग को शिव का साक्षात स्वरूप माना जाता है तभी तो शिवलिंग के दर्श न को स्वयं महादेव का दर्शन माना जाता है और इसी मान्यता के चलते भक्त शिवलिंग को मंदिर और घर में स्थापित कर उनकी पूजा अर्चना करते हैं। हिन्दू धर्म परंपराओं में प्रदोष काल यानी दिन-रात के मिलन की घड़ी में भगवान शिव की पूजा व उपासना बहुत शुभ फलदायी मानी गई है।
– शिव पूजन से पहले काले तिल जल में मिलाकर स्नान करें। शिव पूजा में कनेर, मौलसिरी और बेलपत्र जरूर चढ़ावें। स्नान के बाद भगवान शंकर के साथ-साथ माता पार्वती और नंदी को गंगाजल या पवित्र जल चढ़ाएं। इससे संपन्नता आती है। सावन के महीने में बैंगन नहीं खाना चाहिए। बैंगन को अशुद्ध माना गया है इसलिए द्वादशी, चतुर्दशी के दिन और कार्तिक मास में भी इसे खाने की मनाही है।
– शिव जी की अराधना सुबह में पूर्व दिशा की ओर मुंह करके करनी चाहिए।
– शाम में शिव साधना पश्चिम दिशा की ओर मुंह करके करनी चाहिए।
– अगर आप रात्रि में शिव उपासना करते हैं तो आपका मुंह उत्तर दिशा की ओर होना चाहिए।
श्रावण मास में भगवान शिव का श्रेष्ठ द्रव्यों से अभिषेक करने से अलग-अलग फलों की प्राप्ति होती है। जैसे जल अर्पित करने से वर्षा की प्राप्ति, कुश और जल से शांति, गन्ने के रस से लक्ष्मी, मधु व घी से धन की प्राप्ति, दूध से संतान सुख, जल की धारा और बेलपत्र से मन की शांति, एक हजार मंत्रों सहित घी की धारा से वंश वृद्धि एवं मृत्युंजय मंत्रों के जाप से रोगों से मुक्ति और स्वस्थ एवं सुखी जीवन की प्राप्ति होती है।
श्रावण मास में भगवान शिव का पंचाक्षरी मंत्र ‘ऊं नम: शिवाय’ का नियमित जाप, तन-मन को शुद्ध करता है। विधि व सच्चें मन से की गई उपासना कभी व्यर्थ नहीं जाती और शिव जी अपने भक्तों की मनोकामना पूरी कर देते हैं।