भगवान शिव के पवित्र माह सावन का प्रारंभ हो चुका है। आप सभी को यह जानकारी तो है कि भगवान शिव को रुद्राक्ष अतिप्रिय है। लेकिन क्इया आप यह जानते हैं कि इसकी उत्पत्ति कैसे हुयी? तो चलिए आज जानते हैं रुद्राक्ष के उत्पत्ति की कथा और उनके स्वरुप के बारे में –
रुद्राक्ष उत्पत्ति की कथा
रुद्राक्ष शांतिदायक, मुक्तिदायक, पुण्यवर्धक और कल्याणकारी है। शिव ने पार्वती जी को इसकी अद्भुत शक्तियों के बारे में बताया और कहा कि जो मनुष्य रुद्राक्ष धारण करता है वो शिव प्रिय होता है तथा उसकी समस्त मनोकामना पूरी होती हैं।
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यूं तो अलग-अलग कुंडली में ग्रहों के हिसाब से उपाय किए जाते है परंतु रुद्राक्ष को आप बिना कुंडली देखे भी धारण कर सकते हैं। प्रयोजन के हिसाब से रुद्राक्ष को धारण किया जा सकता है।
सर्वसिद्ध रुद्राक्ष होता है ग्यारहमुखी
वैसे तो कई तरह के रुद्राक्ष प्रचलित हैं लेकिन सबसे ज्यादा ग्यारहमुखी रुद्राक्ष प्रयोग में लाया जाता है। यदि आप को अपने ग्रहों की जानकारी नहीं है तो भी आप सर्वार्थ सिद्धि के लिए ग्यारहमुखी रुद्राक्ष धारण कर सकते है।
रुद्राक्ष के प्रकार
एक रेखा वाला रुद्राक्ष एक मुखी है, जो शिवरूप है।
दो मुखी रुद्राक्ष शिव-पार्वती रूप है।
तीन मुखवाला रुद्राक्ष, त्रिदेवरूप है।
चार मुखी रुद्राक्ष ब्रह्मरूप है।
पंचमुखी रुद्राक्ष पंचमुख शिवरूप है।
छः मुखी रुद्राक्ष स्वामिकार्तिक रूप है।
सात मुखी रुद्राक्ष कामदेवरूप है।
नौ मुखी रुद्राक्ष कपिल मुनि रूप तथा नव दुर्गारूप है।
दशमुखी रुद्राक्ष विष्णु रूप है।
ग्यारह मुखी रुद्राक्ष एकादश रुद्ररूप है।
बारह मुखी रुद्राक्ष द्वादश आदित्य रूप है।
तेरह मुखी रुद्राक्ष विश्वरूप है।
चौदह मुखी परमऋषि रूप है।
छोटे रुद्राक्ष अच्छे माने जाते हैं। यदि रुद्राक्ष में स्वयं ही छिद्र हो तो उत्तम समझ जाता है। किसी प्रामाणिक संस्थान से आप असली और उत्तम रुद्राक्ष खरीद सकते हैं। सावन में इन्हें धारण करना उत्तम माना जाता है।
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