श्री अवधेशानंद गिरि महाराज, जूना अखाड़े के आचार्य महामंडलेश्वर, हजारों के एक गुरु और लाखों लोगों के लिए एक प्रेरणा है। स्वामी अवधेशानंद ने सात लाख से अधिक संन्यासियों को दीक्षा दी है।
जूना पीठाधीश्वर आचार्य महामंडलेश्वर स्वामी अवधेशानंद गिरी जी एक अद्वितीय उत्कृष्ट वक्ता, प्रस्थानत्रयी के मर्मज्ञ, भारतीय सनातन संस्कृति के संवाहक, साधु-समाज के आदर्श, साधकों के मार्गदर्शक, सरला और प्रेम के पर्याय, चिंतक, मधुरभाषी एवं अपने प्रवचनों द्वारा तिमिराच्छादित साधक-समूह के अंत:करण में मुमुक्षा एवं स्वयं के प्रति सचेल होने की प्रेरणा पैदा करने वाले सतपुरूष हैं।
स्वामी जी का जन्म हिंदू धर्म के कार्तिक मास की पूर्णिमा के दिन उत्तर प्रदेश के खुर्जा में एक प्रतिष्ठित ब्राह्मण परिवार में हुआ। बालपन में उन्हें न खिलौनों में दिलचस्पी थी, न दोस्ती आदि में। अपने परिजनों से अक्सर वह पूर्व जन्म की घटनाओं की चर्चा करते थे। ढाई साल की उम्र से उन्होंने बैराग धारण कर घर छोड़ दिया था, मगर परिवार के लोग समझा बुझाकर घर ले आये। जब वे हाई स्कूल की नौवीं कक्षा में थे तब के क्षेत्र में एक साधु की सिद्धियो का साक्षी बनने का पहली बार अवसर मिला।
गर्मियों की छुट्टियों के दौरान उस वर्ष स्वामी जी आध्यात्मिक अध्ययन और योग का अभ्यास के लिए कुछ समय बिताने एक आश्रम का चले गए। एक रात के बीच में इस आश्रम में, उन्होंने लगभग एक फुट जमीन के ऊपर हवा में उड़ते एक योगी देखा, आश्रम के अधिकारियों को जब इस युवा लड़के के बारे में पता चला की उसने सिद्ध योगी की साधना को देख लिया है तो उनको दुबारा ऐसा न करने को चेताया, परन्तु उस सिद्ध योगी ने कहा कि इस बच्चे ने क्या गलत किया है ? वैसे भी एक साधु बनने जा रहा है। इस तरह उन्होंने पहले ही बता दिया था की ये भी आगे चल कर सिद्ध गुरु ही बनेगें। कॉलेज में उनकी सक्रियता वाद-विवाद, कविताओं अथवा प्रार्थना आदि में होती थी।
अध्ययन
स्वामी जी प्रारम्भिक शिक्षा खुर्जा में हुई और उसके आगे की शिक्षा उन्होंने दिल्ली से पूरी की। जब स्वामीजी कॉलेज में थे, वह सक्रिय रूप से बहस में, रचना, कविताओं में भाग लेते थे।
गुरु से भेंट
सन् 1980 में हिमालय की कंदराओं में उन्होंने गहन साधना की और इसके साथ ही उन्होंने संन्यास जीवन में पूरी तरह से कदम रखा। हिमालय के निचले पर्वतमाला में महीनो भटक कर उन्होंने पाया की उन्हें मार्गदर्शन करने के लिए एक गुरु की आवश्यकता है। इसी दौरान उनका स्वामी अवधूत प्रकाश महाराज से मिलना हुआ जिन्होंने अपने आपको खोज लिया था और योग में विशेषज्ञ, और वेद और अन्य के बारे में ज्ञान में बहुमुखी हो चुके थे। अवधेशानन्द जी को जैसे भगवान ही मिल गए थें। वही से उनकी स्वयं से मिलान की यात्रा की शुरुआत हुई। वर्ष 1985 में गहरी साधना के बाद वे हिमालय की कंदराओं से बाहर निकलें। तत्पश्चात उनकी भेंट निवृत्त शंकराचार्य स्वामी सत्यमित्रानंद गिरी जी से हुई और इस तरह उन्होंने सन्यास के मार्ग पर कदम रखा। उसके बाद वे जूना अखाड़े से जुड़ गए। उन्हें स्वामी अवधेशानंद गिरि नाम दिया गया। वर्ष 1998 में जूना अखाड़े के समस्त संतों ने स्वामी अवधेशानंद गिरि जी को आचार्य महामंडलेश्वर नियुक्त किया। इससे पहले वे निरंजनी अखाड़ा में भी रहे।
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जूना अखाड़ा आचार्य महामंडलेश्वर
श्रीपंचदशमान जूना अखाड़ा भारत का सबसे विराट संत-समहू है, जिसमें लाखों नागा संन्यासी गिरि-कंदराओं, हिम उपत्यकाओं, पर्ण कुटीर, मठ-आश्रमों एंव नगर-नगर में तप: स्वाध्यायों के साथ-साथ आध्यात्मिक चेतना का संचार कर रहे है। इस विशाल संत समूह को स्वामीजी आचार्य और पीठाधीश हैं। वर्तमान में पूज्य आचार्यजी से लगभग 6-7 लाख नागा संन्यासियों ने दीक्षा प्राप्त की है।
हिंदू धर्म के सभी मत-पंथ-संप्रदायों के प्रमुख धर्माचार्यों की सर्वोच्च संस्था, जिसमें चारों शंकराचार्य और सभी आचार्य सम्मिलित हैं, उस हिंदू धर्म आचार्य सभी के आचार्यश्री अध्यक्ष हैं।
प्रभु प्रेमी संघ के संस्थापक
आचार्यश्री प्रभु प्रेमी संघ के संस्थापक हैं। इसकी देश-विदेश में अनेकों शाखाएं मानवी चेतना के उत्थान एवं अन्न, अक्षर और औषधि के लिए समर्पित हैं। प्रभु प्रेमी संघ विशुद्ध आध्यात्मिक संस्था है, जो नैतिक मूल्यों के संरक्षण, पर्यावरण को प्रति जागरूक एवं विश्व शांति के लिए आध्यात्मिक, सांस्कृतिक चेतना के जागरण के प्रति कृत संकल्पित है। देश विदेश में अनेकों सर्वधर्म सम्मेलनों में संस्था की सक्रिय सहभागिता है।
प्रभु प्रेमी संघ, महामंडलेश्वर स्वामी अवधेशानन्द गिरी के दिव्य सपने का उद्भव है। यह स्वामी जी द्वारा स्थापित किया गया है और इसे उन्ही के द्वारा निर्देशित किया जा रहा है। सेवा के छह अंतर्निहित सिद्धांतों, सत्संग, स्वध्याय , संयम, साधना, अभ्यास, और स्व-उत्थान द्वारा निर्देशित , प्रभु प्रेमी संघ एक सामाजिक और आध्यात्मिक संगठन है जो मानव जाति के आध्यात्मिक रहस्योद्घाटन और वैश्विक समुदाय के लिए निस्वार्थ सेवा के लिए समर्पित है।
प्रभु प्रेमी संघ के प्रमुख उद्देश्य सभी धर्मों के प्रति सहिष्णुता का संदेश फैलाना, मानव जाति के लिए सेवा की भावना पैदा करना, प्राचीन भारतीय धर्मग्रंथों में निहित समृद्ध ज्ञान का समर्थन करना और नियमित आध्यात्मिक प्रवचनों के माध्यम से शांति और प्रसन्नता की भरपाई करना है।
महामंडलेश्वर स्वामी अवधेशानन्द गिरी द्वारा स्थापित प्रभु प्रेम संघ एक विशाल बरगद के पेड़ के रूप में विकसित हुआ है और इसकी शाखाओं का पूरे देश और विदेश में प्रसार हुआ है।
आचार्य श्री विश्व प्रसिद्ध भारतमाता मंदिर एनं समन्वय सेवा ट्रस्ट, हरिद्वार के वर्तमान अध्यक्ष हैं, जिसके देश-विदेश में अनेकों शाखाएं आध्यात्मिक उत्थान के लिए कार्यरत हैं।
प्रकाशित पुस्तकें
महामंडलेश्वर द्वारा लिखी गयी कुछ प्रमुख पुस्तकें निम्न है…
- सागर के मोती
- आत्मानुसंधान
- आत्म अवबोध
- सत्यम शिवम सुंदरम
- मुक्तिपथ
- सवारें अपना जीवन
- जीवन दर्शन
- साधना मंत्र
- प्रेरणा के पुष्प
- स्वर्णिम सुक्त्य
- अमृत गंगा
- कल्पवृक्ष की छाँव
- ज्ञान सूत्र
- स्वयं के लिए यात्रा
- आत्म अनुभव
- पूर्णता की और
- आध्यात्मिक कथायें
- साधना पथ
- अमृत प्रभाकरण
- ब्रम्ह ही सत्य है
- सामूहिक साप्ताहिक सत्संग
- दृष्टांत महासागर
- आत्म आलोक
- गरिस्थ गीता