स्कन्द षष्ठी पर्व: जानिए इसका महत्व, कथा और व्रत विधि
कहते हैं भगवान शिव व पार्वती के पुत्र श्री गणेश और भगवान कार्तिकेय का पूजन का बड़ा महत्व हैं और श्री गणेश की तरह भगवान कार्तिकेय भी काफी बुद्धिशाली एवं बलशाली हैं. ऐसे में कार्तिक भगवान की स्कंद षष्ठी मनाने को लेकर एक कथा भी प्रसिद्ध हैं और इस बारे में यह बताया जाता हैं कि ”तारकासुर नामक एक राक्षस ने देवलोक में काफी उत्पात मचा रखा था. जो देवताओं को काफी हानि पहुँचा रहा था.” आपको बता दें कि आज स्कन्द षष्ठी है. भगवान कार्तिकेय की आराधना से गंभीर पापों से मुक्ति मिलती है और बच्चों के स्वास्थ्य के लिए भगवान कार्तिकेय की पूजा अवश्य करें.
स्कंद षष्ठी का महत्व
यह व्रत भगवान शिव और माता पार्वती के पुत्र स्कंद को समर्पित होने के कारण स्कंद षष्ठी के नाम से जाना जाता है। जैसे गणेश जी के लिए महीने की चतुर्थी के दिन पूजा–अर्चना की जाती है उसी प्रकार उनके बड़े भाई कार्तिकेय या स्कंद के लिए महीने की षष्ठी के लिए उपवास किया जाता है। उत्तर भारत में कार्तिकेय को गणेश का बड़ा भाई माना जाता है लेकिन दक्षिण भारत में कार्तिकेय गणेश जी के छोटे भाई माने जाते हैं। इसलिए हर महीने की षष्ठी को स्कंद षष्ठी मनायी जाती है। षष्ठी तिथि कार्तिकेय जी की होने के कारण इसे कौमारिकी भी कहा जाता है। दक्षिण भारत के साथ उत्तर भारत में भी यह पर्व हर्षोल्लास से मनाया जाता है। संतान के कष्टों को कम करने और अपने आस-पास की नकारत्मक ऊर्जा की समाप्ति में यह व्रत फायदेमंद होता है।
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पौराणिक कथा
ब्रह्मवैवर्त पुराण के अनुसार स्कंद षष्ठी के कारण प्रियव्रत का मृत शिशु जीवित हो गया था। ऐसा माना जाता है कि भगवान शंकर के तेज से पैदा हुए स्कंद को 6 कृतिकाओं ने अपना दूध पिला कर पाला था। साथ ही स्कंद की उत्पत्ति अमावस्या की अग्नि से हुई थी। दक्षिण भारत में स्कंद मुरूगन के नाम से प्रसिद्ध हैं। स्कंदपुराण के उपदेष्टा कार्तिकेय हैं। यह पुराण और पुराणों में सर्वश्रेष्ठ माना जाता है। कार्तिकेय को देवताओं ने सेनापति बनाया था और उन्होंने तारकासुर का वध किया था।
व्रत विधि
कार्तिकेय की पूजा दीयों, गहनों, कपड़ों और खिलौनों से की जाती है। यह शक्ति, ऊर्जा और युद्ध के प्रतीक हैं। संतान के कष्टों को कम करने और उसे अनंत सुख की प्राप्ति के लिए भगवान कार्तिकेय की पूजा की जाती है। साथ ही किसी प्रकार के विवाद और कलह को समाप्त करने में स्कंद षष्ठी का व्रत विशेष फलदायी है। मंदिर में भगवान कार्तिकेय की विधिवत पूजा करें। उन्हें बादाम, काजल और नारियल से बनीं मिठाइयां चढ़ाएं। इसके अलावा बरगद के पत्ते और नीले फूल चढ़ा कर भगवान कार्तिकेय की श्रद्धा पूर्वक पूजा करें।
व्रत करने के नियम
इस व्रत को करने वाले भक्त को अहंकार, काम और क्रोध से मुक्ति मिलती है। जो भी साधक इस दिन उपवास रखकर पूजा करता है उसे मांस, शराब, लहसुन और प्याज का सेवन नहीं करना चाहिए। ऐसा माना जाता है कि इस भोग पदार्थों के सेवन से तामसिक प्रवृत्ति जागृति हो जाती है जो उपासक के विवेक को नष्ट कर देता है। ऐसी मान्यता है कि स्कंद षष्ठी के पूजन से च्यवन ऋषि को आंखी में रोशनी मिली थी।