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जाने और समझे वास्तु अनुसार कैसे सोना चाहिए??

जाने और समझे वास्तु अनुसार कैसे सोना चाहिए??

हम सभी को दिन भर की थकान के बाद दो घड़ी अच्छी नींद की चाहत होती है . आज की भागदौड़ भरी जिंदगी में समय से सोना भले ही मुश्किल हो लेकिन सही दिशा का चयन कर अच्छी नींद ली जा सकती है. नींद आने में कौन से कारक प्रभावी होते हैं .

निद्रा हर प्राणी और वनस्पति के लिए अत्यंत आवश्यक है. मनुष्य अपने जीवन का एक तिहाई समय सोने में ही व्यतीत करता है. सोने का महत्व तो इसी से प्रमाणित हो जाता है कि यदि किसी दिन मनुष्य को नींद नहीं आए तो अगले दिन वह बेचैन हो जाता है. जब मनुष्य दिन भर श्रम करता है तो उसे स्वस्थ रहने के लिए विश्राम की अत्यंत आवश्यकता होती है. विश्राम के अभाव में वह रुग्ण हो जाएगा. विश्राम के लिए सोना अत्यंत आवश्यक है. विश्राम का भी एक वैज्ञानिक आधार है. वास्तुविद पंडित दयानन्द शास्त्री ने बताया की वास्तुशास्त्र के अनुसार सोते समय विशेष ध्यान रखना चाहिए. गलत तरीके से सोने से हमें गलत परिणाम मिलते हैं. वास्तुशास्त्र के अनुसार व्यक्ति को सोते समय अपना सिर पश्चिम दिशा में और पैरों को पूर्व दिशा में रखना चाहिए. ऐसा करने से किस्मत का साथ मिलता है. जानकारों का कहना है कि इस तरीके से सोने से व्यक्ति को समाज में बहुत यश मिलता है. वहीं पैरों के पश्चिम दिशा में होने से व्यक्ति को मानसिक संतुष्टि मिलती है. कहा जाता है कि इस दिशा में पैर होने से धर्म-कर्म और पूजा-पाठ में रुचि बढ़ती है.

शयन अर्थात सोना, नींद लेना. मनुष्य, पशु-पक्षी, पेड़-पौधे सभी शयन करते हैं. शयन किस तरह हमारे स्वास्थ्य और चेतना के लिए लाभदायी हो सकता है, इसके लिए शास्त्रों में निर्देश दिए गए हैं. सोते समय हमारे पैर दक्षिण दिशा की ओर नहीं होना चाहिए यानी उत्तर दिशा की ओर सिर रखकर नहीं सोना चाहिए. पूर्व या दक्षिण दिशा में सिर रखकर सोना चाहिए. इन दिशाओं में सिर रखकर सोने से लंबी आयु प्राप्त होती है और स्वास्थ्य भी उत्तम रहता है. इसके विपरीत उत्तर या पश्चिम दिशा में सिर रखकर सोने से स्वास्थ्य को नुकसान पहुंचता है. शास्त्रों के अनुसार यह अपशकुन भी है.

वास्तुशास्त्र में दिए गए नियमों के अनुसार इन तरीकों से सोने से आपकी सेहत आयु, धन और उनके आने वाले समय पर बहुत प्रभाव पड़ता है.गलत शयन से अपच, उच्च रक्तचाप, तनाव, सिरदर्द आदि का होना कोई आश्चर्य की बात नहीं है. अगर मनुष्य अपने शयन में कुछ बातों का ध्यान रखे तो इस प्रकार की कई बीमारियों से बच सकता है.

शयन का भी है विज्ञान

शयन का मतलब सोना. दिनभर काम करते-करते हम थक जाते हैं. हमारे शरीर की ऊर्जा कम हो जाती है.

ऐसे में शरीर आराम मांगता है. शरीर को आराम देने के लिए हम सो जाते हैं. जब हम सो कर उठते हैं तो अपने आप को फिर से तरोताजा महसूस करते हैं. नींद के दौरान हमारे अन्दर पुन: ऊर्जा इकट्ठी हो जाती है, जिससे हम फिर काम करने की ताकत पा लेते हैं.

इस प्रकार स्पष्ट है कि नींद का हमारे शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य से गहरा संबंध है. यही कारण है कि हमारे ऋषि-मुनियों ने इसके लिए भी कुछ नियम कायदे तय किये हैं. ताकि शयन की क्रिया का अधिक से अधिक लाभ हमें प्राप्त हो सके. संध्या के समय नहीं सोना, सोते समय पैर दक्षिण दिशा की ओर न हों, जैसे अनेक निर्देश शा स्त्रों में दिये गये हैं.

 

ऐसे करें शयन

वास्तुविद पंडित दयानन्द शास्त्री ने बताया की रात्रि को भोजन करने के तत्कालबाद शयन नहीं करना चाहिए. शयन से पहले सद्ग्रंथों का अध्ययन और भगवान का स्मरण करना चाहिए. सोने से पहले आप अगर अगले दिन के कामों की योजना बना लें तो बहुत अच्छा रहेगा. लघुशंका आदि से भी निवृत्त हो जाना चाहिए. हाथ-पैर धोकर उन्हें अच्छी तरह पोंछ लें फिर पूर्व या दक्षिण की ओर सिर करके बाईं करवट लेटकर सोना चाहिए.

सोने से पहले भजन या मनपसंद संगीत सुनना अच्छा रहता है. इससे हमारा मन तनावरहित हो जाता है. नींद अच्छी आती है. शयन का समय भी हमारे जीवन में बहुत मायने रखता है. जल्दी सोने से जल्दी उठने में सहायता मिलती है. सूर्योदय से पहले जागना चाहिए. सूर्योदय के बाद उठने से आलस्य अधिक आता है.

किस दिशा में सिर रखें..

पूर्व या दक्षिण दिशा की ओर सिर करके क्यों सोना विज्ञानसम्मत प्रक्रिया है जो अनेक बीमारियों को दूर रखती है. सौर जगत धु्रव पर आधारित है. ध्रुव के आकर्षण से दक्षिण से उत्तर दिशा की ओर प्रगतिशील विद्युत प्रवाह हमारे सिर में प्रवेश करता है और पैरों के रास्ते निकल जाता है.

ऐसा करने से भोजन आसानी से पच जाता है. सुबह-सवेरे जब हम उठते हैं तो मस्तिष्क विशुद्ध वैद्युत परमाणुओं से परिपूर्ण एवं स्वस्थ हो जाता है. इसीलिए सोते समय पैर दक्षिण दिशा की ओर करना मना किया गया है.

बाईं करवट सोना….

बाईं करवट सोने की धारणा के पीछे भी वैज्ञानिक आधार है. दरअसल यह प्रक्रिया स्वर विज्ञान पर आधारित है. हमारी नाक से जो श्वास बाहर निकलती और अन्दर आती है उसे स्वर कहते हैं. नाक के बाएं छिद्र से श्वास लेने व छोड़ने की क्रिया को चन्द्र स्वर कहते हैं. इसी तरह दाहिनी ओर का स्वर सूर्य स्वर कहलाता है. सूर्य स्वर हमारे शरीर में उष्मा उत्पन्न करता है. इससे भी भोजन पचने में मदद मिलती है. इसीलिए हमारे शास्त्रों में बाईं करवट सोने को कहा गया है.

 

जानिए क्या हो शयन का समय ?? 

शयन के समय का भी एक वैज्ञानिक आधार है. देर रात को सोना सही नहीं है. शास्त्रों में बताया गया है कि सूर्य डूबने से पहले भोजन करना, 9 से 10 बजे के मध्य सोना और प्रातः 4 बजे उठना स्वास्थ्य के लिए उत्तम होता है. सायंकाल 6 से 7 बजे के मध्य सूर्य पूर्व दिशा से 180 अंश पर होता है. आधी रात को पूर्व दिशा से 270, रात के 2 बजे 300, प्रातः 4 बजे 330 और प्रातः 6 बजे पुनः 360 अथवा 0 अंश पर आता है. इस प्रकार सूर्य प्रातः 4 बजे तक हमारे मस्तिष्क को कम मात्रा में प्रभावित करता है. इसी कारण प्रातः 4 बजे उठने का नियम प्राचीन काल से भारतीयों में प्रचलित है. इसलिए सोने का सबसे उत्तम समय रात 9 बजे से प्रातः 4 बजे तक माना गया है.

ब्राह्मे मुहूर्ते बुध्येत, स्वास्थ्यरक्षार्थ मानुषः. 

तत्र दुःखस्त शान्त्यर्थ स्मरेद्धि मधुसूदनम्.. 

स्वस्थ रहने की दृष्टि से ब्राह्म मुहूर्त में उठना उत्तम है. ब्रह्म मुहूर्त में उठकर दुख से मुक्ति के लिए भगवान का ध्यान करके अपनी दिनचर्या आरंभ करनी चाहिए.

शयन हेतु  दिशा का चयन:

वास्तुविद पंडित दयानन्द शास्त्री ने बताया की निंद्रा/ शयन की सही दिशा का निर्धारण भी आवश्यक होता है. सिर उत्तर की ओर रख कर सोने से हृदय रोग, मस्तिष्क रोग, अस्थि रोग आदि होने की संभावना रहती है.   पृथ्वी की चुंबकीय शक्ति का विस्तार ब्रह्मांड में पृथ्वी की सतह से 1 लाख 75 हजार किलोमीटर तक होता है. पृथ्वी की चुंबकीय धाराएं उत्तर से दक्षिण की ओर बहती हैं.

मनुष्य का सिर उत्तरी तथा पैर दक्षिणी ध्रुव होता है. उत्तर दिशा की ओर सिर रखकर सोना इसलिए उचित नहीं है क्योंकि इस अवस्था में दोनों ध्रुव एक ही दिशा में आ जाते हैं जिससे विकर्षण होता है और विपरीत चुंबकीय परिक्षेत्र बनता है.

फलतः मनुष्य के मस्तिष्क और हृदय पर सारी रात एक दबाव बना रहता है. ऐसे में हृदय या मस्तिष्क रोग होने की संभावना रहती है. इसके अतिरिक्त अस्थि दर्द, आलस, चिड़चिड़ापन, कार्य न करने की इच्छा आदि सामान्य बातें हैं. कमजोर लोगों की स्मरण शक्ति नष्ट हो जाती है. वे बीमार और दरिद्र होते हैं. दक्षिण दिशा में सिर रख कर सोने से चुंबकीय क्षेत्र बनता है और पृथ्वी की चुंबकीय धाराएं पैर के माध्यम से दक्षिण को जाती हैं, जिससे व्यक्ति द्रा हर प्राणी और वनस्पति के लिए अत्यंत आवश्यक है. मनुष्य अपने जीवन का एक तिहाई समय सोने में ही व्यतीत करता है. सोने का महत्व तो इसी से प्रमाणित हो जाता है कि यदि किसी दिन मनुष्य को नींद नहीं आए तो अगले दिन वह बेचैन हो जाता है. जब मनुष्य दिन भर श्रम करता है तो उसे स्वस्थ रहने के लिए विश्राम की अत्यंत आवश्यकता होती है. विश्राम के अभाव में वह रुग्ण हो जाएगा. विश्राम के लिए सोना अत्यंत आवश्यक है. विश्राम का भी एक वैज्ञानिक आधार है.

यह भी पढ़ें-वृक्ष वास्तु के अनुसार लगाये घर में पेड़ पौधे……ऐसे मिलेगा लाभ

जानिए विश्राम कैसे करें? 

गलत शयन से अपच, उच्च रक्तचाप, तनाव, सिरदर्द आदि का होना कोई आश्चर्य की बात नहीं है. अगर मनुष्य अपने शयन में कुछ बातों का ध्यान रखे तो इस प्रकार की कई बीमारियों से बच सकता है.

वास्तुशास्त्र के अनुसार गलत दिशा में सोने से आप नींद न आने के साथ ही अन्य कई समस्याओं से भी ग्रस्त हो सकतें हैं. इसलिए वास्तुशास्त्र में सोने से सम्बंधित कुछ नियम दिए गए हैं, जिनका पालन करने से अच्छी नींद के साथ ही आप कई लाभों को भी अर्जित के सकतें हैं.

 

हम सभी का दिल शरीर के निचले आधे हिस्से में नहीं है, वह तीन-चौथाई ऊपर की ओर मौजूद है क्योंकि गुरुत्वाकर्षण के खिलाफ रक्त को ऊपर की ओर पहुंचाना नीचे की ओर पहुंचाने से ज्यादा मुश्किल है.जो रक्त शिराएं ऊपर की ओर जाती हैं, वे नीचे की ओर जाने वाली धमनियों के मुकाबले बहुत परिष्कृत हैं. वे ऊपर मस्तिष्क में जाते समय लगभग बालों की तरह होती हैं. इतनी पतली कि वे एक फालतू बूंद भी नहीं ले जा सकतीं. अगर एक भी अतिरिक्त बूंद चली गई, तो कुछ फट जाएगा और आपको हैमरेज (रक्तस्राव) हो सकता है.ज्यादातर लोगों के मस्तिष्क में रक्तस्राव होता है. यह बड़े पैमाने पर आपको प्रभावित नहीं करता मगर इसके छोटे-मोटे नुकसान होते हैं. आप सुस्त हो सकते हैं, जो वाकई में लोग हो रहे हैं. 35 की उम्र के बाद आपकी बुद्धिमत्ता का स्तर कई रूपों में गिर सकता है जब तक कि आप उसे बनाए रखने के लिए बहुत मेहनत नहीं करते. आप अपनी स्मृति के कारण काम चला रहे हैं, अपनी बुद्धि के कारण नहीं.

 

हानिकारक है उत्तर दिशा में सर रखकर सोना ??

वास्तुविद पंडित दयानन्द शास्त्री ने बताया की वास्तुशास्त्र द्वारा उत्तर दिशा में सिर करके सोना अनुशंसित नहीं है. वास्तव में, वास्तु के अनुसार, सोते समय किसी को भी अपने सिर को उत्तर में नहीं रखना चाहिए. केवल एक मृत शरीर का सिर उत्तर दिशा में रखा जाता है. यदि कोई इस स्थिति में सोता है तो वह बड़ी बीमारी का सामना कर रहा है और कई अच्छी चीजों से वंचित होकर सो रहा है.

जब आपको रक्त से जुड़ी कोई समस्या होती है, मसलन एनीमिया या रक्ताल्पता तो डॉक्टर आपको क्या सलाह देता है? आयरन या लौह तत्व. यह आपके रक्त का एक अहम तत्व है. आपने पृथ्वी के चुंबकीय क्षेत्रों (मैगनेटिक फील्ड) के बारे में सुना होगा. कई रूपों में अपनी चुंबकीयता के कारण पृथ्वी बनी है. इसलिए इस ग्रह पर चुंबकीय शक्तियां शक्तिशाली हैं.

वास्तु के अनुसार, इस दिशा में सिर करके सोना सबसे अच्छा है. दक्षिण दिशा की ओर सिर के साथ सोना- धन, खुशी और समृद्धि को बढ़ाता है.  दक्षिण दिशा में सिर करके सोने से नींद की गुणवत्ता भी बढ़ती है | दक्षिण-पश्चिम क्षेत्र वास्तु विज्ञान में सबसे शक्तिशाली चतुर्भुज है क्योंकि यह ऐसा क्षेत्र है जहां सकारात्मक ऊर्जा संग्रहित है. इस दिशा में सोना भी अच्छा माना जाता है | वास्तुशास्त्र के अनुसार कभी भी दक्षिण की ओर पैर करके नहीं सोना चाहिए. इस दिशा में पैर करके सोने से व्यक्ति को बुरे सपने आते हैं. कई बार दिल की बिमार या छाती में तकलीफ होने की आशंका बनी रहती है. कहा जाता है कि कभी भी दरवाजे की ओर सिर करके नहीं सोना चाहिए. ऐसा करने से नकारात्मक ऊर्जा आती है.

अगर आप उत्तर की ओर सिर करते हैं और 5 से 6 घंटों तक उस तरह रहते हैं, तो चुंबकीय खिंचाव आपके दिमाग पर दबाव डालेगा.

जब शरीर क्षैतिज अवस्था में होता है, तो आप तत्काल देख सकते हैं कि आपकी नाड़ी की गति धीमी हो जाती है. शरीर यह बदलाव इसलिए लाता है क्योंकि अगर रक्त उसी स्तर पर पंप किया जाएगा, तो आपके सिर में जरूरत से ज्यादा रक्त जा सकता है और आपको नुकसान हो सकता है. अब अगर आप अपना सिर उत्तर की ओर करते हैं और 5 से 6 घंटों तक उसी अवस्था में रहते हैं, तो चुंबकीय खिंचाव आपके दिमाग पर दबाव डालेगा. अगर आप एक उम्र से आगे निकल चुके हैं और आपकी रक्त शिराएं कमजोर हैं तो आपको रक्तस्राव और लकवे के साथ स्ट्रोक हो सकता है.

एनीमिया या रक्ताल्पता में डॉक्टर आपको क्या सलाह देता है? आयरन या लौह तत्व. यह आपके रक्त का एक अहम तत्व है. आपने पृथ्वी के चुंबकीय क्षेत्रों (मैगनेटिक फील्ड) के बारे में सुना होगा.या अगर आपका शरीर मजबूत है और ये चीजें आपके साथ नहीं होतीं, तो आप उत्तेजित या परेशान होकर जाग सकते हैं क्योंकि सोते समय दिमाग में जितना रक्त संचार होना चाहिए, उससे ज्यादा होता है. ऐसा नहीं है कि एक दिन ऐसा करने पर आप मर जाएंगे. मगर रोजाना ऐसा करने पर आप परेशानियों को दावत दे रहे हैं. आपके साथ किस तरह की परेशानियां हो सकती हैं, यह इस पर निर्भर करता है कि आपका शरीर कितना मजबूत है.

तो किस दिशा में सिर करके सोना सबसे अच्छा होता है? पूर्व सबसे अच्छी दिशा है. पूर्वोत्तर ठीक है. पश्चिम चलेगा. अगर कोई विकल्प नहीं है तो दक्षिण. उत्तर बिल्कुल नहीं. जब तक आप उत्तरी गोलार्ध में हैं, यही सही है – उत्तर के अलावा किसी भी दिशा में सिर करके सोया जा सकता है. दक्षिणी गोलार्ध में, दक्षिण की ओर सिर करके न रखें.

 

शयन समय क्या हो ??

वास्तुविद पंडित दयानन्द शास्त्री ने बताया की शयन कक्ष का चयन वास्तु शास्त्र में शयन कक्ष के निर्माण पर विशद चर्चा की गई है. शयन कक्ष यथासंभव दक्षिण अथवा पश्चिम दिशा में ही रखना चाहिए. पूर्व से पश्चिम तथा उत्तर से दक्षिण की ओर बहने वाली सूर्य तथा पृथ्वी की ऊर्जाएं शयन कक्ष को ऊर्जा से भर देती हैं. शयन कक्ष के लिए निम्न बातों का ध्यान अवश्य रखा जाना चाहिए. दरवाजा एक ही हो. शुद्ध वायु प्रवाह की उचित व्यवस्था हो. जिस दिशा में सिर हो, उधर कोई विद्युत या इलेक्ट्राॅनिक उपकरण न रखें. जब मनुष्य निद्रा में होता है तब मस्तिष्क में सक्रियता होती है और उस समय कई प्रकार के रसायनों का निर्माण होता है, जो मस्तिष्क और शरीर के लिए अत्यंत आवश्यक होते हैं. विद्युत और इलेक्ट्राॅनिक उपकरण इन आवश्यक रसायनों के निर्माण में बाधा पहुंचाते हैं. सिर की तरफ हवा फेंकने वाला पंखा न रखें. शयन कक्ष में तांबे के पात्र में जल हमेशा रखें. रात को विद्युत प्रकाश और पंखे के कारण वातावरण में कुछ विद्युत तरंगें बनती हैं, जो शरीर पर बहुत ही सूक्ष्म प्रभाव डालती हैं. तांबे का पात्र इन विद्युत तरंगों को ग्रहण कर लेता है. पात्र के माध्यम से ये तरंगें जल में समाहित हो जाती हैं और उसकी शक्ति बढ़ जाती है जिससे व्यक्ति को लाभ पहुंचता है. शयन कक्ष को सुसंस्कृत रखना चाहिए, इससे नींद शीघ्र आती है. अगर आप अध्ययन के शौकीन हैं तो पुस्तकें उचित स्थान पर रखें. शयन कक्ष में दुर्घटना से बचने के लिए अनावश्यक फर्नीचर न रखें. रात में शयन कक्ष में हल्का, आंखों को न चुभने वाला प्रकाश अवश्य जलाए रखे.

“वास्तु शास्त्र  से करें अनिद्रा का निदान”

घर के बड़े लोगों को दक्षिण में सर रखकर सोना चाहिए ,दक्षिण में सर रखने से गहरी नीद आती है

ज्ञान प्राप्ति के लिए पूर्व में सर रखना चाहिए ,इसलिए बच्चों को पूर्व में सोना चाहिए

पश्चिम में केवल अतिथि को सोना चाहिए ,पश्चिम में सोने से हमेशा चिंता बनी रहती है

मृत्यु के पश्चात मुर्दे को उत्तर में सर करके जलाते हैं ,इसलिए उत्तर में सर रखकर सोने से बीमारी की सम्भावना बनी रहती है

सोते समय सर के ऊपर कोई बीम या लेंटर्न/टांड नही होना चाहिए

 

पति-पत्नी और शयन अवस्था-

जब आप बिस्तर मे सोयें हैं और आपका मुंह छत की ओर है तब पति के बायीं ओर पत्नी को सोना चाहिए

सोते समय हमेशा बायीं करवट में सोना चाहिए जिससे आपकी दाहिना नाड़ी रात भर चले ,सबेरे चार बजे के आस पास करवट अपने आप परिवर्तित हो जाता है और दिन में बायाँ नाड़ी चलना चाहिए.

वास्तु विज्ञान कहता है, सोते समय अगर पति-पत्नी कुछ बातों का ध्यान रखें तो वैवाहिक जीवन की कई समस्याओं से बच सकते हैं. यहां तक कि संतान सुख में आने वाली बाधाओं को भी इससे कम किया जा सकता है.अक्सर पति-पत्नी सोते समय बेपरवाह होकर सोते हैं. वह यह भी नहीं सोचते कि उनका गलत तरीके से सोना वैवाहिक जीवन में टकराव और तालमेल में कमी की वजह हो सकता है. वास्तुविद पंडित दयानन्द शास्त्री ने बताया की वास्तुविज्ञान में कहा गया है कि दाम्पत्य जीवन में आपसी प्रेम और तालमेल के लिए पत्नी को पति के बायीं ओर सोना चाहिए. इसके पीछे एक कारण यह है कि पत्नी को पति का बायां अंग माना गया है. जबकि पति को पत्नी का दायां हिस्सा माना गया है. इससे पारिवारिक जीवन में संतुलन बना रहता है. नवविवाहित पति-पत्नी को उत्तर पूर्व दिशा के कमरे में या कमरे में उत्तर पूर्व की ओर बेड नहीं लगना चाहिए. वास्तु विज्ञान के अनुसार उत्तर पूर्व दिशा का स्वामी गुरु होता है जो यौन संबंध में उत्साह की कमी लाता है जिसकी वजह से दाम्पत्य जीवन निरस होने लगता है और आपस में तालमेल की कमी होने लगती है.पति-पत्नी में यौन इच्छा की कमी होने के कारण आपसी तालमेल की कमी हो रही हो और अक्सर वाद-विवाद हो रहा हो तो उन्हें दक्षिण पूर्व दिशा के कमरे में सोना चाहिए या अपने बेड को इस दिशा में लगाना चाहिए. यह दिशा शुक्र ग्रह से प्रभावित होता है और इस दिशा में अग्नि वास माना जाता है इसलिए इस दिशा में सोने से दाम्पत्य जीवन के प्रति उत्साह और उर्जा का भरपूर संचार होता है.वास्तु विज्ञान के अनुसार उत्तर पश्चिम दिशा का शयन कक्ष पति-पत्नी के लिए हर तरह से बेहतर होता है. इससे आपसी प्रेम और तालमेल बढ़ता है. संतान सुख के लिए भी यह अच्छा होता है.

यदि आप यदि पश्चिम की ओर सिर तथा पूर्व दिशा में पैर रखकर सोते है तो पृथ्वी की चुम्बकीय बल रेखाएं आपके शरीर के लम्बवत जाएगी. महाभारत में बताया गया है कि इस तरह सोने से मनुष्य बीमार हो जाता है तथा संतान के लिए कष्टकारी होता है.

वास्तुविद पंडित दयानन्द शास्त्री बताते हैं की पश्चिम में सिर रखकर सोने से वास्तु शास्त्र के अनुसार भौतिक सुख व धन की प्राप्ति नहीं होगी शतपथ ब्राह्मण में बताया है कि पूर्व दिशा में देवताओं का वास है अत: इस दिशा में पैर करके सोने से देवताओं का अपमान होगा.

वास्तुविद पंडित दयानन्द शास्त्री के अनुसार पूर्व में सिर तथा पश्चिम में पैर रखकर सोने को शास्त्र सम्मत माना गया है इस अवस्था में गहरी नींद आती है तथा नींद से जागने पर व्यक्ति स्फुर्ति महसुस करता है सिरदर्द नहीं होता तथा ब्लड़प्रेशर ठीक रहता है. सिर का कारक सूर्य गिना गया है तथा पूर्व दिशा में देवताओं का वास गिना है अत: इस प्रकार सोना शास्त्र सम्मत गिना गया है.

दक्षिण की ओर सिर रखकर सोना तथा उत्तर दिशा में पैर रखकर सोना सर्वश्रेष्ठ गिना गया है इस प्रकार सोने से विपरीत ध्रुवो में आकर्षण के कारण सुखद नींद आती है सुख सम्पति की प्राप्ति होती है. तथा शरीर स्वस्थ रहता है . यदि आप बीमार है तो दक्षिण की ओर सिर तथा उत्तर में पैर रखकर सोयेंगे तो आप की बीमारी जल्दी ठीक हो जायेगी.

कई वास्तुशास्त्री पश्चिम में सिर व पूर्व में पैर रखकर सोने को सम समझते है अर्थात न लाभ होता है न न हानि होती है ऐसा मानते है.

स्वस्थ रहने के लिए अच्छी नींद आना जरूरी है परन्तु ऐसा नहीं हो पाता तथा अच्छी नींद न आने पर मन में खिन्नता, आलस्य,थकावट,कमजोरी आदि विकार उत्पन्न होते है. जिसके परिणामस्वरूप दिन में सारे कार्य आप पूर्ण मन लगाकर नहीं कर पायेंगे. यही स्थिति ज्यादा दिनों तक रही तो आप बीमार पड़ सकते है.

जब आप वास्तु नियमों के अनुसार सोते है तो आपको ऊर्जा प्राप्त होती है तथा उस ऊर्जा का उपयोग आप दैनिक जीवन में कर सकते है. यदि आप बीमार है तथा सोने में वास्तु-नियमों का पालन करेंगे तो आप जल्दी स्वस्थ हो जायेंगे.

जाने और समझे वास्तु अनुसार कैसे सोना चाहिए??

हम सभी को दिन भर की थकान के बाद दो घड़ी अच्छी नींद की चाहत होती है . आज की भागदौड़ भरी जिंदगी में समय से सोना भले ही मुश्किल हो लेकिन सही दिशा का चयन कर अच्छी नींद ली जा सकती है. नींद आने में कौन से कारक प्रभावी होते हैं .

निद्रा हर प्राणी और वन¬स्पति के लिए अत्यंत आवश्यक है. मनुष्य अपने जीवन का एक तिहाई समय सोने में ही व्यतीत करता है. सोने का महत्व तो इसी से प्रमाणित हो जाता है कि यदि किसी दिन मनुष्य को नींद नहीं आए तो अगले दिन वह बेचैन हो जाता है. जब मनुष्य दिन भर श्रम करता है तो उसे स्वस्थ रहने के लिए विश्राम की अत्यंत आवश्यकता होती है. विश्राम के अभाव में वह रुग्ण हो जाएगा. विश्राम के लिए सोना अत्यंत आवश्यक है. विश्राम का भी एक वैज्ञानिक आधार है. वास्तुविद पंडित दयानन्द शास्त्री ने बताया की वास्तुशास्त्र के अनुसार सोते समय विशेष ध्यान रखना चाहिए. गलत तरीके से सोने से हमें गलत परिणाम मिलते हैं. वास्तुशास्त्र के अनुसार व्यक्ति को सोते समय अपना सिर पश्चिम दिशा में और पैरों को पूर्व दिशा में रखना चाहिए. ऐसा करने से किस्मत का साथ मिलता है. जानकारों का कहना है कि इस तरीके से सोने से व्यक्ति को समाज में बहुत यश मिलता है. वहीं पैरों के पश्चिम दिशा में होने से व्यक्ति को मानसिक संतुष्टि मिलती है. कहा जाता है कि इस दिशा में पैर होने से धर्म-कर्म और पूजा-पाठ में रुचि बढ़ती है.

शयन अर्थात सोना, नींद लेना. मनुष्य, पशु-पक्षी, पेड़-पौधे सभी शयन करते हैं. शयन किस तरह हमारे स्वास्थ्य और चेतना के लिए लाभदायी हो सकता है, इसके लिए शास्त्रों में निर्देश दिए गए हैं. सोते समय हमारे पैर दक्षिण दिशा की ओर नहीं होना चाहिए यानी उत्तर दिशा की ओर सिर रखकर नहीं सोना चाहिए. पूर्व या दक्षिण दिशा में सिर रखकर सोना चाहिए. इन दिशाओं में सिर रखकर सोने से लंबी आयु प्राप्त होती है और स्वास्थ्य भी उत्तम रहता है. इसके विपरीत उत्तर या पश्चिम दिशा में सिर रखकर सोने से स्वास्थ्य को नुकसान पहुंचता है. शास्त्रों के अनुसार यह अपशकुन भी है.

वास्तुशास्त्र में दिए गए नियमों के अनुसार इन तरीकों से सोने से आपकी सेहत आयु, धन और उनके आने वाले समय पर बहुत प्रभाव पड़ता है.

गलत शयन से अपच, उच्च रक्तचाप, तनाव, सिरदर्द आदि का होना कोई आश्चर्य की बात नहीं है.

अगर मनुष्य अपने शयन में कुछ बातों का ध्यान रखे तो इस प्रकार की कई बीमारियों से बच सकता है.

 

शयन का भी है विज्ञान

शयन का मतलब सोना. दिनभर काम करते-करते हम थक जाते हैं. हमारे शरीर की ऊर्जा कम हो जाती है.

ऐसे में शरीर आराम मांगता है. शरीर को आराम देने के लिए हम सो जाते हैं. जब हम सो कर उठते हैं तो अपने आप को फिर से तरोताजा महसूस करते हैं. नींद के दौरान हमारे अन्दर पुन: ऊर्जा इकट्ठी हो जाती है, जिससे हम फिर काम करने की ताकत पा लेते हैं.

इस प्रकार स्पष्ट है कि नींद का हमारे शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य से गहरा संबंध है. यही कारण है कि हमारे ऋषि-मुनियों ने इसके लिए भी कुछ नियम कायदे तय किये हैं. ताकि शयन की क्रिया का अधिक से अधिक लाभ हमें प्राप्त हो सके. संध्या के समय नहीं सोना, सोते समय पैर दक्षिण दिशा की ओर न हों, जैसे अनेक निर्देश शा स्त्रों में दिये गये हैं.

 

ऐसे करें शयन

वास्तुविद पंडित दयानन्द शास्त्री ने बताया की रात्रि को भोजन करने के तत्कालबाद शयन नहीं करना चाहिए. शयन से पहले सद्ग्रंथों का अध्ययन और भगवान का स्मरण करना चाहिए. सोने से पहले आप अगर अगले दिन के कामों की योजना बना लें तो बहुत अच्छा रहेगा. लघुशंका आदि से भी निवृत्त हो जाना चाहिए. हाथ-पैर धोकर उन्हें अच्छी तरह पोंछ लें फिर पूर्व या दक्षिण की ओर सिर करके बाईं करवट लेटकर सोना चाहिए.

सोने से पहले भजन या मनपसंद संगीत सुनना अच्छा रहता है. इससे हमारा मन तनावरहित हो जाता है. नींद अच्छी आती है. शयन का समय भी हमारे जीवन में बहुत मायने रखता है. जल्दी सोने से जल्दी उठने में सहायता मिलती है. सूर्योदय से पहले जागना चाहिए. सूर्योदय के बाद उठने से आलस्य अधिक आता है.

 

किस दिशा में सिर रखें..

पूर्व या दक्षिण दिशा की ओर सिर करके क्यों सोना विज्ञानसम्मत प्रक्रिया है जो अनेक बीमारियों को दूर रखती है. सौर जगत धु्रव पर आधारित है. ध्रुव के आकर्षण से दक्षिण से उत्तर दिशा की ओर प्रगतिशील विद्युत प्रवाह हमारे सिर में प्रवेश करता है और पैरों के रास्ते निकल जाता है.

ऐसा करने से भोजन आसानी से पच जाता है. सुबह-सवेरे जब हम उठते हैं तो मस्तिष्क विशुद्ध वैद्युत परमाणुओं से परिपूर्ण एवं स्वस्थ हो जाता है. इसीलिए सोते समय पैर दक्षिण दिशा की ओर करना मना किया गया है.

बाईं करवट सोना….

बाईं करवट सोने की धारणा के पीछे भी वैज्ञानिक आधार है. दरअसल यह प्रक्रिया स्वर विज्ञान पर आधारित है. हमारी नाक से जो श्वास बाहर निकलती और अन्दर आती है उसे स्वर कहते हैं. नाक के बाएं छिद्र से श्वास लेने व छोड़ने की क्रिया को चन्द्र स्वर कहते हैं. इसी तरह दाहिनी ओर का स्वर सूर्य स्वर कहलाता है. सूर्य स्वर हमारे शरीर में उष्मा उत्पन्न करता है. इससे भी भोजन पचने में मदद मिलती है. इसीलिए हमारे शास्त्रों में बाईं करवट सोने को कहा गया है.

जानिए क्या हो शयन का समय ?? 

शयन के समय का भी एक वैज्ञानिक आधार है. देर रात को सोना सही नहीं है. शास्त्रों में बताया गया है कि सूर्य डूबने से पहले भोजन करना, 9 से 10 बजे के मध्य सोना और प्रातः 4 बजे उठना स्वास्थ्य के लिए उत्तम होता है. सायंकाल 6 से 7 बजे के मध्य सूर्य पूर्व दिशा से 180 अंश पर होता है. आधी रात को पूर्व दिशा से 270, रात के 2 बजे 300, प्रातः 4 बजे 330 और प्रातः 6 बजे पुनः 360 अथवा 0 अंश पर आता है. इस प्रकार सूर्य प्रातः 4 बजे तक हमारे मस्तिष्क को कम मात्रा में प्रभावित करता है. इसी कारण प्रातः 4 बजे उठने का नियम प्राचीन काल से भारतीयों में प्रचलित है. इसलिए सोने का सबसे उत्तम समय रात 9 बजे से प्रातः 4 बजे तक माना गया है.

ब्राह्मे मुहूर्ते बुध्येत, स्वास्थ्यरक्षार्थ मानुषः. 

तत्र दुःखस्त शान्त्यर्थ स्मरेद्धि मधुसूदनम्.. 

स्वस्थ रहने की दृष्टि से ब्राह्म मुहूर्त में उठना उत्तम है. ब्रह्म मुहूर्त में उठकर दुख से मुक्ति के लिए भगवान का ध्यान करके अपनी दिनचर्या आरंभ करनी चाहिए.

शयन हेतु  दिशा का चयन:

वास्तुविद पंडित दयानन्द शास्त्री ने बताया की निंद्रा/ शयन की सही दिशा का निर्धारण भी आवश्यक होता है. सिर उत्तर की ओर रख कर सोने से हृदय रोग, मस्तिष्क रोग, अस्थि रोग आदि होने की संभावना रहती है.   पृथ्वी की चुंबकीय शक्ति का विस्तार ब्रह्मांड में पृथ्वी की सतह से 1 लाख 75 हजार किलोमीटर तक होता है. पृथ्वी की चुंबकीय धाराएं उत्तर से दक्षिण की ओर बहती हैं.

मनुष्य का सिर उत्तरी तथा पैर दक्षिणी ध्रुव होता है. उत्तर दिशा की ओर सिर रखकर सोना इसलिए उचित नहीं है क्योंकि इस अवस्था में दोनों ध्रुव एक ही दिशा में आ जाते हैं जिससे विकर्षण होता है और विपरीत चुंबकीय परिक्षेत्र बनता है.

फलतः मनुष्य के मस्तिष्क और हृदय पर सारी रात एक दबाव बना रहता है. ऐसे में हृदय या मस्तिष्क रोग होने की संभावना रहती है. इसके अतिरिक्त अस्थि दर्द, आलस, चिड़चिड़ापन, कार्य न करने की इच्छा आदि सामान्य बातें हैं. कमजोर लोगों की स्मरण शक्ति नष्ट हो जाती है. वे बीमार और दरिद्र होते हैं. दक्षिण दिशा में सिर रख कर सोने से चुंबकीय क्षेत्र बनता है और पृथ्वी की चुंबकीय धाराएं पैर के माध्यम से दक्षिण को जाती हैं, जिससे व्यक्ति द्रा हर प्राणी और वनस्पति के लिए अत्यंत आवश्यक है. मनुष्य अपने जीवन का एक तिहाई समय सोने में ही व्यतीत करता है. सोने का महत्व तो इसी से प्रमाणित हो जाता है कि यदि किसी दिन मनुष्य को नींद नहीं आए तो अगले दिन वह बेचैन हो जाता है. जब मनुष्य दिन भर श्रम करता है तो उसे स्वस्थ रहने के लिए विश्राम की अत्यंत आवश्यकता होती है. विश्राम के अभाव में वह रुग्ण हो जाएगा. विश्राम के लिए सोना अत्यंत आवश्यक है. विश्राम का भी एक वैज्ञानिक आधार है.

जानिए विश्राम कैसे करें? 

गलत शयन से अपच, उच्च रक्तचाप, तनाव, सिरदर्द आदि का होना कोई आश्चर्य की बात नहीं है. अगर मनुष्य अपने शयन में कुछ बातों का ध्यान रखे तो इस प्रकार की कई बीमारियों से बच सकता है.

वास्तुशास्त्र के अनुसार गलत दिशा में सोने से आप नींद न आने के साथ ही अन्य कई समस्याओं से भी ग्रस्त हो सकतें हैं. इसलिए वास्तुशास्त्र में सोने से सम्बंधित कुछ नियम दिए गए हैं, जिनका पालन करने से अच्छी नींद के साथ ही आप कई लाभों को भी अर्जित के सकतें हैं.

हम सभी का दिल शरीर के निचले आधे हिस्से में नहीं है, वह तीन-चौथाई ऊपर की ओर मौजूद है क्योंकि गुरुत्वाकर्षण के खिलाफ रक्त को ऊपर की ओर पहुंचाना नीचे की ओर पहुंचाने से ज्यादा मुश्किल है.जो रक्त शिराएं ऊपर की ओर जाती हैं, वे नीचे की ओर जाने वाली धमनियों के मुकाबले बहुत परिष्कृत हैं. वे ऊपर मस्तिष्क में जाते समय लगभग बालों की तरह होती हैं. इतनी पतली कि वे एक फालतू बूंद भी नहीं ले जा सकतीं. अगर एक भी अतिरिक्त बूंद चली गई, तो कुछ फट जाएगा और आपको हैमरेज (रक्तस्राव) हो सकता है.ज्यादातर लोगों के मस्तिष्क में रक्तस्राव होता है. यह बड़े पैमाने पर आपको प्रभावित नहीं करता मगर इसके छोटे-मोटे नुकसान होते हैं. आप सुस्त हो सकते हैं, जो वाकई में लोग हो रहे हैं. 35 की उम्र के बाद आपकी बुद्धिमत्ता का स्तर कई रूपों में गिर सकता है जब तक कि आप उसे बनाए रखने के लिए बहुत मेहनत नहीं करते. आप अपनी स्मृति के कारण काम चला रहे हैं, अपनी बुद्धि के कारण नहीं.

 

हानिकारक है उत्तर दिशा में सर रखकर सोना ??

वास्तुविद पंडित दयानन्द शास्त्री ने बताया की वास्तुशास्त्र द्वारा उत्तर दिशा में सिर करके सोना अनुशंसित नहीं है. वास्तव में, वास्तु के अनुसार, सोते समय किसी को भी अपने सिर को उत्तर में नहीं रखना चाहिए. केवल एक मृत शरीर का सिर उत्तर दिशा में रखा जाता है. यदि कोई इस स्थिति में सोता है तो वह बड़ी बीमारी का सामना कर रहा है और कई अच्छी चीजों से वंचित होकर सो रहा है.

जब आपको रक्त से जुड़ी कोई समस्या होती है, मसलन एनीमिया या रक्ताल्पता तो डॉक्टर आपको क्या सलाह देता है? आयरन या लौह तत्व. यह आपके रक्त का एक अहम तत्व है. आपने पृथ्वी के चुंबकीय क्षेत्रों (मैगनेटिक फील्ड) के बारे में सुना होगा. कई रूपों में अपनी चुंबकीयता के कारण पृथ्वी बनी है. इसलिए इस ग्रह पर चुंबकीय शक्तियां शक्तिशाली हैं.

वास्तु के अनुसार, इस दिशा में सिर करके सोना सबसे अच्छा है. दक्षिण दिशा की ओर सिर के साथ सोना- धन, खुशी और समृद्धि को बढ़ाता है.  दक्षिण दिशा में सिर करके सोने से नींद की गुणवत्ता भी बढ़ती है | दक्षिण-पश्चिम क्षेत्र वास्तु विज्ञान में सबसे शक्तिशाली चतुर्भुज है क्योंकि यह ऐसा क्षेत्र है जहां सकारात्मक ऊर्जा संग्रहित है. इस दिशा में सोना भी अच्छा माना जाता है | वास्तुशास्त्र के अनुसार कभी भी दक्षिण की ओर पैर करके नहीं सोना चाहिए. इस दिशा में पैर करके सोने से व्यक्ति को बुरे सपने आते हैं. कई बार दिल की बिमार या छाती में तकलीफ होने की आशंका बनी रहती है. कहा जाता है कि कभी भी दरवाजे की ओर सिर करके नहीं सोना चाहिए. ऐसा करने से नकारात्मक ऊर्जा आती है.

अगर आप उत्तर की ओर सिर करते हैं और 5 से 6 घंटों तक उस तरह रहते हैं, तो चुंबकीय खिंचाव आपके दिमाग पर दबाव डालेगा.

जब शरीर क्षैतिज अवस्था में होता है, तो आप तत्काल देख सकते हैं कि आपकी नाड़ी की गति धीमी हो जाती है. शरीर यह बदलाव इसलिए लाता है क्योंकि अगर रक्त उसी स्तर पर पंप किया जाएगा, तो आपके सिर में जरूरत से ज्यादा रक्त जा सकता है और आपको नुकसान हो सकता है. अब अगर आप अपना सिर उत्तर की ओर करते हैं और 5 से 6 घंटों तक उसी अवस्था में रहते हैं, तो चुंबकीय खिंचाव आपके दिमाग पर दबाव डालेगा. अगर आप एक उम्र से आगे निकल चुके हैं और आपकी रक्त शिराएं कमजोर हैं तो आपको रक्तस्राव और लकवे के साथ स्ट्रोक हो सकता है.

एनीमिया या रक्ताल्पता में डॉक्टर आपको क्या सलाह देता है? आयरन या लौह तत्व. यह आपके रक्त का एक अहम तत्व है. आपने पृथ्वी के चुंबकीय क्षेत्रों (मैगनेटिक फील्ड) के बारे में सुना होगा.या अगर आपका शरीर मजबूत है और ये चीजें आपके साथ नहीं होतीं, तो आप उत्तेजित या परेशान होकर जाग सकते हैं क्योंकि सोते समय दिमाग में जितना रक्त संचार होना चाहिए, उससे ज्यादा होता है. ऐसा नहीं है कि एक दिन ऐसा करने पर आप मर जाएंगे. मगर रोजाना ऐसा करने पर आप परेशानियों को दावत दे रहे हैं. आपके साथ किस तरह की परेशानियां हो सकती हैं, यह इस पर निर्भर करता है कि आपका शरीर कितना मजबूत है.

तो किस दिशा में सिर करके सोना सबसे अच्छा होता है? पूर्व सबसे अच्छी दिशा है. पूर्वोत्तर ठीक है. पश्चिम चलेगा. अगर कोई विकल्प नहीं है तो दक्षिण. उत्तर बिल्कुल नहीं. जब तक आप उत्तरी गोलार्ध में हैं, यही सही है – उत्तर के अलावा किसी भी दिशा में सिर करके सोया जा सकता है. दक्षिणी गोलार्ध में, दक्षिण की ओर सिर करके न रखें.

 

शयन समय क्या हो ??

वास्तुविद पंडित दयानन्द शास्त्री ने बताया की शयन कक्ष का चयन वास्तु शास्त्र में शयन कक्ष के निर्माण पर विशद चर्चा की गई है. शयन कक्ष यथासंभव दक्षिण अथवा पश्चिम दिशा में ही रखना चाहिए. पूर्व से पश्चिम तथा उत्तर से दक्षिण की ओर बहने वाली सूर्य तथा पृथ्वी की ऊर्जाएं शयन कक्ष को ऊर्जा से भर देती हैं. शयन कक्ष के लिए निम्न बातों का ध्यान अवश्य रखा जाना चाहिए. दरवाजा एक ही हो. शुद्ध वायु प्रवाह की उचित व्यवस्था हो. जिस दिशा में सिर हो, उधर कोई विद्युत या इलेक्ट्राॅनिक उपकरण न रखें. जब मनुष्य निद्रा में होता है तब मस्तिष्क में सक्रियता होती है और उस समय कई प्रकार के रसायनों का निर्माण होता है, जो मस्तिष्क और शरीर के लिए अत्यंत आवश्यक होते हैं. विद्युत और इलेक्ट्राॅनिक उपकरण इन आवश्यक रसायनों के निर्माण में बाधा पहुंचाते हैं. सिर की तरफ हवा फेंकने वाला पंखा न रखें. शयन कक्ष में तांबे के पात्र में जल हमेशा रखें. रात को विद्युत प्रकाश और पंखे के कारण वातावरण में कुछ विद्युत तरंगें बनती हैं, जो शरीर पर बहुत ही सूक्ष्म प्रभाव डालती हैं. तांबे का पात्र इन विद्युत तरंगों को ग्रहण कर लेता है. पात्र के माध्यम से ये तरंगें जल में समाहित हो जाती हैं और उसकी शक्ति बढ़ जाती है जिससे व्यक्ति को लाभ पहुंचता है. शयन कक्ष को सुसंस्कृत रखना चाहिए, इससे नींद शीघ्र आती है. अगर आप अध्ययन के शौकीन हैं तो पुस्तकें उचित स्थान पर रखें. शयन कक्ष में दुर्घटना से बचने के लिए अनावश्यक फर्नीचर न रखें. रात में शयन कक्ष में हल्का, आंखों को न चुभने वाला प्रकाश अवश्य जलाए रखे.

 

“वास्तु शास्त्र  से करें अनिद्रा का निदान”

  • घर के बड़े लोगों को दक्षिण में सर रखकर सोना चाहिए ,दक्षिण में सर रखने से गहरी नीद आती है
  • ज्ञान प्राप्ति के लिए पूर्व में सर रखना चाहिए ,इसलिए बच्चों को पूर्व में सोना चाहिए
  • पश्चिम में केवल अतिथि को सोना चाहिए ,पश्चिम में सोने से हमेशा चिंता बनी रहती है
  • मृत्यु के पश्चात मुर्दे को उत्तर में सर करके जलाते हैं ,इसलिए उत्तर में सर रखकर सोने से बीमारी की सम्भावना बनी रहती है
  • सोते समय सर के ऊपर कोई बीम या लेंटर्न/टांड नही होना चाहिए

पति-पत्नी और शयन अवस्था–

जब आप बिस्तर मे सोयें हैं और आपका मुंह छत की ओर है तब पति के बायीं ओर पत्नी को सोना चाहिए

सोते समय हमेशा बायीं करवट में सोना चाहिए जिससे आपकी दाहिना नाड़ी रात भर चले ,सबेरे चार बजे के आस पास करवट अपने आप परिवर्तित हो जाता है और दिन में बायाँ नाड़ी चलना चाहिए.

यह भी पढ़ें-वास्तु के अनुसार जल/पानी का घर में उचित स्थान

वास्तु विज्ञान कहता है, सोते समय अगर पति-पत्नी कुछ बातों का ध्यान रखें तो वैवाहिक जीवन की कई समस्याओं से बच सकते हैं. यहां तक कि संतान सुख में आने वाली बाधाओं को भी इससे कम किया जा सकता है.अक्सर पति-पत्नी सोते समय बेपरवाह होकर सोते हैं. वह यह भी नहीं सोचते कि उनका गलत तरीके से सोना वैवाहिक जीवन में टकराव और तालमेल में कमी की वजह हो सकता है. वास्तुविद पंडित दयानन्द शास्त्री ने बताया की वास्तुविज्ञान में कहा गया है कि दाम्पत्य जीवन में आपसी प्रेम और तालमेल के लिए पत्नी को पति के बायीं ओर सोना चाहिए. इसके पीछे एक कारण यह है कि पत्नी को पति का बायां अंग माना गया है. जबकि पति को पत्नी का दायां हिस्सा माना गया है. इससे पारिवारिक जीवन में संतुलन बना रहता है. नवविवाहित पति-पत्नी को उत्तर पूर्व दिशा के कमरे में या कमरे में उत्तर पूर्व की ओर बेड नहीं लगना चाहिए. वास्तु विज्ञान के अनुसार उत्तर पूर्व दिशा का स्वामी गुरु होता है जो यौन संबंध में उत्साह की कमी लाता है जिसकी वजह से दाम्पत्य जीवन निरस होने लगता है और आपस में तालमेल की कमी होने लगती है.पति-पत्नी में यौन इच्छा की कमी होने के कारण आपसी तालमेल की कमी हो रही हो और अक्सर वाद-विवाद हो रहा हो तो उन्हें दक्षिण पूर्व दिशा के कमरे में सोना चाहिए या अपने बेड को इस दिशा में लगाना चाहिए. यह दिशा शुक्र ग्रह से प्रभावित होता है और इस दिशा में अग्नि वास माना जाता है इसलिए इस दिशा में सोने से दाम्पत्य जीवन के प्रति उत्साह और उर्जा का भरपूर संचार होता है.वास्तु विज्ञान के अनुसार उत्तर पश्चिम दिशा का शयन कक्ष पति-पत्नी के लिए हर तरह से बेहतर होता है. इससे आपसी प्रेम और तालमेल बढ़ता है. संतान सुख के लिए भी यह अच्छा होता है.

यदि आप यदि पश्चिम की ओर सिर तथा पूर्व दिशा में पैर रखकर सोते है तो पृथ्वी की चुम्बकीय बल रेखाएं आपके शरीर के लम्बवत जाएगी. महाभारत में बताया गया है कि इस तरह सोने से मनुष्य बीमार हो जाता है तथा संतान के लिए कष्टकारी होता है.

वास्तुविद पंडित दयानन्द शास्त्री बताते हैं की पश्चिम में सिर रखकर सोने से वास्तु शास्त्र के अनुसार भौतिक सुख व धन की प्राप्ति नहीं होगी शतपथ ब्राह्मण में बताया है कि पूर्व दिशा में देवताओं का वास है अत: इस दिशा में पैर करके सोने से देवताओं का अपमान होगा.

वास्तुविद पंडित दयानन्द शास्त्री के अनुसार पूर्व में सिर तथा पश्चिम में पैर रखकर सोने को शास्त्र सम्मत माना गया है इस अवस्था में गहरी नींद आती है तथा नींद से जागने पर व्यक्ति स्फुर्ति महसुस करता है सिरदर्द नहीं होता तथा ब्लडप्रेशर ठीक रहता है. सिर का कारक सूर्य गिना गया है तथा पूर्व दिशा में देवताओं का वास गिना है अत: इस प्रकार सोना शास्त्र सम्मत गिना गया है.

दक्षिण की ओर सिर रखकर सोना तथा उत्तर दिशा में पैर रखकर सोना सर्वश्रेष्ठ गिना गया है इस प्रकार सोने से विपरीत ध्रुवो में आकर्षण के कारण सुखद नींद आती है सुख सम्पति की प्राप्ति होती है. तथा शरीर स्वस्थ रहता है . यदि आप बीमार है तो दक्षिण की ओर सिर तथा उत्तर में पैर रखकर सोयेंगे तो आप की बीमारी जल्दी ठीक हो जायेगी.

कई वास्तुशास्त्री पश्चिम में सिर व पूर्व में पैर रखकर सोने को सम समझते है अर्थात न लाभ होता है न न हानि होती है ऐसा मानते है.

स्वस्थ रहने के लिए अच्छी नींद आना जरूरी है परन्तु ऐसा नहीं हो पाता तथा अच्छी नींद न आने पर मन में खिन्नता, आलस्य,थकावट,कमजोरी आदि विकार उत्पन्न होते है. जिसके परिणामस्वरूप दिन में सारे कार्य आप पूर्ण मन लगाकर नहीं कर पायेंगे. यही स्थिति ज्यादा दिनों तक रही तो आप बीमार पड़ सकते है.

जब आप वास्तु नियमों के अनुसार सोते है तो आपको ऊर्जा प्राप्त होती है तथा उस ऊर्जा का उपयोग आप दैनिक जीवन में कर सकते है. यदि आप बीमार है तथा सोने में वास्तु-नियमों का पालन करेंगे तो आप जल्दी स्वस्थ हो जायेंगे.

पंडित दयानन्द शास्त्री,

(ज्योतिष-वास्तु सलाहकार)

 

 

Post By Shweta