महापुरुष श्रीराम शर्मा आचार्य जी : जन्मदिवस विशेष ( 20 सितंबर, 1911 )
आज युगदृष्टा संत श्रीराम शर्मा आचार्य जी का तिथि के अनुसार पावन जन्मदिवस है।इस अवसर पर ये खास संस्मरण रिलीजन वर्ल्ड परिवार की ओर से…
किसी भी वाह्य हलचल से बेखबर वे पलंग पर बैठे, घुटनों पर पैड रखे लिख रहे थे। आसपास कुछ पुस्तकें बिखरी पड़ी थी, जिनमें कभी किसी विशेष संदर्भ की जरूरत पड़ने पर देख लेते।
अचानक कलम रखी, जीभ को होठों पर फिराया, शायद प्यास अनुभव कर रहे थे। हाथ यंत्रचालित की भाँति मेज के कोने पर पहुँचा। कोने पर रखा गिलास उठा और अधरों पर जा पहुँचा। जिह्वा ने स्वाद चखा, कुछ विचित्र सा। मन जब तक चिंतन की गहराइयों से उबरता, तब तक एक घूँट हलक के नीचे था। वे चौंके, तब क्या सचमुच पानी नहीं है, फिर क्या है यह! इतनी देर में मन प्रकृतिस्थ हो गया था। गिलास को ध्यान से देखा। विश्वास हुआ, यह पानी नहीं है, पर क्या है यह, नहीं सूझ रहा था। स्वाद अपरिचित जो था।
मौसमी का रस? वे सकते में आ गये। बिना कुछ बोले नाली नजदीक गये, मुँह में ऊँगली डालकर उल्टी की। गिलास के पानी से मुँह साफ किया और कहा कि सब कुछ त्याग कर आये कार्यकर्त्ताओं के बच्चों के लिए मैं दूध का इंतजाम न कर सकूँ और स्वयं मौसमी का जूस पियूँ। धिक्कार है ऐसे जीवन पर। संवेदनशीलता उन समेत सभी की आँखों से आँसू बनकर बरस पड़ी। भावों के उद्रेक को कुछ क्षण पश्चात स्वयं शांत करते हुए बोले यदि मैं ऐसे चीजों का प्रयोग करने लगूँ, तो लोकसेवी की सिद्धान्त निष्ठा चकनाचूर हो जायेगी। ऐसे सिद्धान्त निष्ठ एवं विश्व व्यापी संगठक महापुरुष पं० श्रीराम शर्मा आचार्य जी को उत्तर प्रदेश के आगरा जिले के आँवलखेड़ा गाँव की पवित्र माटी ने आज के दिन ही जन्म दिया।
उन्होंने 24 वर्षों तक जौ की रोटी और गाय की छाछ पर 24-24 लाख के 24 गायत्री महामंत्र के महापुरश्चरण सम्पन्न किये। इस बीच गाँधी के स्वतंत्रता संग्राम चल रहा था। 18 वर्ष की उम्र में वे घरवाले के प्रबल विरोध के बावजूद रात में एक दिन चुपचाप निकलकर आगरा जाकर आन्दोलन में भर्ती हो गये, और इतने संघर्ष पूर्ण एवं दुस्साहसी कारनामे प्रस्तुत किये, जिन्हें देखकर मृत्यु भी सहम जाये। इसी कारण देश में मतवाले राष्ट्रीयता भावना से सराबोर पं० श्रीराम शर्मा जी को लोग ‘मत्त जी’ कहते थे।
पं० श्रीराम शर्मा आचार्य जी में सृजन की कितनी विलक्षण क्षमता थी। अपने निश्छल एवं पवित्र प्रेम से सींच कर करोड़ों भावनाशील लोगों को अपना मानस पुत्र बनाकर विशाल गायत्री परिवार का संगठन खड़ा किया। धर्म तंत्र से लोकशिक्षण की प्रक्रिया सम्पन्न कराने हुए, चार हजार शक्तिपीठों, हजारों प्रज्ञापीठों का निर्माण। गायत्री तपोभूमि मथुरा से लेकर शांतिकुंज की स्थापना। भौतिकता और अंधी दौड़ लगाते कथाकथित प्रबुद्ध वर्ग को भटकाव से बचाकर सही राह दिखाने वाला साहित्य रचकर विचार क्रांति अभियान का सूत्रपात जीवन के हर पहलु का समाधान प्रदान करने वाली तीन हजार पुस्तकें। अध्यात्म का वैज्ञानिक प्रतिपादन और उस प्रतिपादन का सिद्ध करने हेतु ब्रह्मवर्चस शोध संस्थान की स्थापना, अखण्ड ज्योति, युग निर्माण योजना, युग शक्ति गायत्री आदि पत्रिकाओं का अनवरत लेखन। गायत्री और यज्ञ को घर-घर, जन-जन तक पहुँचाने का शुभ संकल्प, स्त्रियों एवं शूद्र को भी गायत्री का अधिकार।
80 वर्ष के जीवन में उन्होंने समय के एक-एक क्षण का भरपूर उपयोग करते हुए इतना विराट् कर्तृत्व प्रस्तुत किया और कहा कि आगे का कार्य और भी विराट् है। वह इस स्थूल काया से संभव नहीं है। 2 जून 1990 को वे अपनी जीवन लीला संवरण करते हुए माँ गायत्री की गोद में गायत्री जयन्ती के दिन ही समाहित हो गये।
वे युगद्रष्टा तो थे ही, सच्चे अर्थों में युग स्रष्टा भी थे। उनकी सामर्थ्य राष्ट्रीय संदर्भ से प्रकट होती रही। भारत को स्वतंत्रता प्राप्त होने का अहसास होते ही, नेताओं में राजनैतिक वर्चस्व की होड़ लग गयी। किन्तु आचार्यश्री अपने सृजन सामर्थ्य पर विश्वास करके अकेले साधनहीन स्थिति में भी ‘नये राष्ट्र को मैं नयी शक्ति दूँगा’ के उद्घोष के साथ व्यक्ति निर्माण, परिवार निर्माण एवं समाज निर्माण के सृजनात्मक अभियान के सूत्रधार बन गये।
पूज्य पं० श्रीराम शर्मा आचार्य जी के विराट् व्यक्तित्व के बारे में भूतो न भविष्यति कहा जाय, तो अतिशयोक्ति नं होगी। उन्होंने अपना सम्पूर्ण जीवन सर्वजनहिताय सर्वजनसुखाय अपना सर्वस्व अर्पण कर जिया। अपना सब कुछ सर्वहित में अर्पण करके कलिकाल में विश्वजित यज्ञ की महिमा को पुनर्जीवित कर गये।
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