मंदिर, मस्जिद, चर्च और अन्य धार्मिक स्थलों तथा चैरिटेबल संस्थाओं पर सुप्रीम कोर्ट का सख्त निर्देश
- केंद्र और राज्य सरकारों के साथ कोर्ट भी धार्मिक स्थलों की देखभाल के लिए जवाबदेह
- ‘धार्मिक और चैरिटेबल संस्थानों की रिपोर्ट जिला जज हाई कोर्ट में भेजेंगे’ – सुप्रीम कोर्ट
- जिला जज की रिपोर्ट को हाई कोर्ट में पीआईएल की तरह लेने का आदेश दिया सुप्रीम कोर्ट ने
- देश में मौजूद धार्मिक स्थलों की संख्या के हिसाब से इससे कोर्ट पर अतिरिक्त दबाव बनेगा
नई दिल्ली : सुप्रीम कोर्ट ने देश के लाखों धार्मिक स्थानों – मंदिरों, मस्जिदों और चर्चों में साफ-सफाई, उनकी संपत्तियों और इन जगहों पर आने जाने वालों का लेखा-जोखा और धार्मिक स्थलों में आने वालों को होने वाली परेशानी पर कड़ा रूख अपनाया है। सुप्रीम कोर्ट ने ऐसे किसी भी मामले को जनहित याचिका के तौर लिए जाने का निर्देश दिया है। यह आदेश अब मंदिर, मस्जिद, चर्च और अन्य धार्मिक स्थलों तथा चैरिटेबल संस्थाओं पर भी लागू होगा।
सुप्रीम कोर्ट ने जिला मजिस्ट्रेट को धार्मिक स्थानों की साफ-सफाई, लोगों को आने वाली परेशानियों, कुप्रबंधन और श्रद्धालुओं के चढ़ावों के सही उपयोग से जुड़ी शिकायतों की जांच का निर्देश दिया है। कोर्ट ने साफ कहा है कि ये आदेश सभी धार्मिक स्थलों पर लागू होगा और इसमें धार्मिक आधार पर किसी तरह का भेद नहीं किया जाएगा।
देश में मौजूदा आंकड़ों के अनुसार 20 लाख से अधिक हिंदू-बौद्ध और जैन मंदिर हैं, और तकरीबन तीन लाख मस्जिदें हैं। साथ ही हजारों चर्च और गुरुद्वारा भी हैं। कोर्ट ने जिलाधिकारियों को इस संबंध में रिपोर्ट अपने राज्यों के हाई कोर्ट में पेश करने को कहा। इन रिपोर्ट्स को जनहित याचिकाओं के तौर पर लिए जाने का निर्देश भी दिया है।
सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस आदर्श गोयल और एस अब्दुल नजीर ने पिछले महीने यह आदेश दिया था। सुप्रीम कोर्ट का इस आदेश से हालांकि न्यायालयों का काम बढ़ सकता है। देश में पहले से ही 3 करोड़ से अधिक मामले अदालतों में लंबित हैं। देशभर की अदालतों में 23,000 से अधिक जगह भी खाली हैं