सूर्य नमस्कार : वैज्ञानिक महत्त्व, प्रकिया, लाभ और सावधानियां
सूर्य नमस्कार आसन के अभ्यास से शरीर में लचीलापन आता है
तथा विभिन्न प्रकार के रोगों में लाभ होता है
सूर्य नमस्कार के बारे में जानने से पहले से सूर्य के महत्त्व के बारे में जान लें। संसार में दिखाई देने वाली सभी वस्तुओं का मूल आधार सूर्य ही है। सभी ग्रह और उपग्रह सूर्य की आकर्षण शक्ति के द्वारा ही अपने निश्चित आधार पर घूम रहे हैं। संसार में ऊर्जा का सबसे बड़ा स्रोत सूर्य ही है और इसके द्वारा ही संसार की गतिविधियों का संचालन होता है। सूर्य से निकलने वाली ऊर्जा के कारण ही प्रकृति में परिवर्तन आता है इसलिए योगशास्त्रों में सूर्य नमस्कार आसन का वर्णन किया गया है। सूर्य नमस्कार आसन से मिलने वाले लाभों को विज्ञान भी मानता है। सूर्य नमस्कार आसन के अभ्यास से शरीर में लचीलापन आता है तथा विभिन्न प्रकार के रोगों में लाभ होता है।
आयुर्वेद तो अपने जन्मकाल से ही सूर्य को आरोग्य का देवता मानता आ रहा हैं। अब यूरोप और अमेरिका के सभी विख्यात पुरुषों ने भी हाईजीनिया की जगह सूर्य को ही आरोग्य का देवता स्वीकार कर लिया हैं ‘फिजिकल कल्चर’ मासिक पत्रिका जुलाई 1926 में में डॉ. गार्डनर रों ने लिखा हैं…
“वस्त्र-रहित होकर धूप में बैठों, सूर्य वैद्यों तथा औषधियों का राजा हैं शास्त्र कहता हैं कि सूर्य आरोग्य का प्रदाता है
सूर्य नमस्कार से शारीरिक और मानसिक लाभ
सूर्य नमस्कार एक ऐसा व्यायाम हैं, जिसके शारीरिक बल बढ़ता ही है, मानसिक उन्नति भी होती है, क्योंकि कसेरू-संकोच तथा कसेरू-विकसन से स्नायु मंडल का व्यायाम होता हैं, जिससे स्नायु मंडल सशक्त होकर मानसिक बल प्राप्त करता हैं। हिन्दू सूर्य को ईश्वर का प्रतिक मानते हैं एवं उसकी उपासना द्वारा निश्चित रूप में अध्यात्मिक उन्नति करते हैं। इस प्रकार सूर्य-नमस्कार से सर्वांगीण विकास और अध्यात्मिक उन्नति होती हैं। नित्य प्रति सूर्य नमस्कार करनेवाले का अनायाम ही प्राकृतिक व्यायाम होकर शारीरिक अंग-प्रत्यंग सुदृढ़ व बलवान होता है और किसी प्रकार के रोगशोकादी पास नहीं फटकते। सूर्य नमस्कार में सूर्य भगवान जैसे भौतिक जगत में अंधकार मिटा प्रकाश फैलाते है, वैसे ही आन्तरिक-जगत में भी उनके प्रकाश-प्रसार से अशुभ और असुखमयी अंधकार की शक्तियों का नाश होता है।
सूर्य-नमस्कार से सर्वांगीण विकास और अध्यात्मिक उन्नति होती है
सूर्य नमस्कार का वैज्ञानिक लाभ
प्रात: काल जब तक सूर्य का रंग लाला रहता हैं, तब तक उसमें से अल्ट्रा वायलेट रेज़ नाम की किरणों का निकलना होता हैं। आज-कल कृत्रिम अल्ट्रा वायलेट रेज़ द्वारा कई दु:साध्य रोगों को दूर किया जाता हैं फिर प्राकृतिक अल्ट्रा वायलेट रेज़ में सूर्य नमस्कार व्यायाम किया जाय तो कितना लाभ होगा, यह प्रत्येक विचारशील मनुष्य स्वयं समझ सकता हैं।
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सूर्य नमस्कार आसन की 12 स्थितियां
पहली स्थिति
सूर्य नमस्कार आसन के लिए पहले सीधे खड़े होकर पीठ, गर्दन और सिर को एक सीध में रखें. दोनों पैरों को मिलाकर सावधान की स्थिति बनाएं. दोनों हाथों को जोड़कर छाती से सटाकर नमस्कार या प्रार्थना की मुद्रा बना लें. अब पेट को अंदर खींचकर छाती को चौड़ा करें. इस स्थिति में आने के बाद अंदर की वायु को धीरे-धीरे बाहर निकाल दें और कुछ क्षण उसी स्थिति में रहें. इसके बाद स्थिति 2 का अभ्यास करें. अब सांस अंदर खींचते हुए दोनों हाथों को कंधों की सीध में ऊपर उठाएं और जितना पीछे ले जाना सम्भव हो ले जाएं।
दूसरी स्थिति
अब सांस अंदर खींचते हुए दोनों हाथों को कंधों की सीध में ऊपर उठाएं और जितना पीछे ले जाना सम्भव हो ले जाएं. फिर सांस बाहर छोड़ते और अंदर खींचते हुए सीधे खड़े हो जाएं. ध्यान रखें कि कमर व घुटना न मुड़े. इसके बाद 3 स्थिति का अभ्यास करें.
तीसरी स्थिति
सांस को बाहर निकालते हुए शरीर को धीरे-धीरे सामने की ओर झुकाते हुए हाथों की अंगुलियों से पैर के अंगूठे को छुएं. इस क्रिया में हथेलियों और पैर की एड़ियों को बराबर स्थिति में जमीन पर सटाने तथा धीरे-धीरे अभ्यास करते हुए नाक या माथे को घुटनों से लगाने का भी अभ्यास करना चाहिए. यह क्रिया करते समय घुटने सीधे करके रखें. इस क्रिया को करते हुए अंदर भरी हुई वायु को बाहर निकाल दें. इस प्रकार सूर्य नमस्कार के साथ प्राणायाम की क्रिया भी हो जाती है. अब चौथी स्थिति का अभ्यास करें. ध्यान रखें- आसन की दूसरी क्रिया में थोड़ी कठिनाई हो सकती है इसलिए नाक या सिर को घुटनों में सटाने की क्रिया अपनी क्षमता के अनुसार ही करें और धीरे-धीरे अभ्यास करते हुए क्रिया को पूरा करने की कोशिश करें. अब सांस अंदर खींचते हुए दोनों हाथ और बाएं पैर को वैसे ही रखें तथा दाएं पैर को पीछे ले जाएं और घुटने को जमीन से सटाकर रखें
चौथी स्थिति
अब सांस अंदर खींचते हुए दोनों हाथ और बाएं पैर को वैसे ही रखें तथा दाएं पैर को पीछे ले जाएं और घुटने को जमीन से सटाकर रखें. बाएं पैर को दोनो हाथों के बीच में रखें. चेहरे को ऊपर की ओर करके रखें तथा सांस को रोककर ही कुछ देर तक इस स्थिति में रहें. फिर सांस छोड़ते हुए पैर की स्थिति बदल कर दाएं पैर को दोनो हाथों के बीच में रखें और बाएं पैर को पीछे की ओर करके रखें. अब सांस को रोककर ही इस स्थिति में कुछ देर तक रहें. फिर सांस को छोड़े. इसके बाद पांचवीं स्थिति का अभ्यास करें. अब सांस को अंदर खींचकर और रोककर दोनों पैरों को पीछे की ओर ले जाएं. इसमें शरीर को दोनो हाथ व पंजों पर स्थित करें.
पांचवीं स्थिति
अब सांस को अंदर खींचकर और रोककर दोनों पैरों को पीछे की ओर ले जाएं. इसमें शरीर को दोनो हाथ व पंजों पर स्थित करें. इस स्थिति में सिर, पीठ व पैरों को एक सीध में रखें. अब सांस बाहर की ओर छोड़ें. इसके बाद छठी स्थिति का अभ्यास करें. अब सांस को अंदर ही रोककर रखें तथा हाथ, एड़ियों व पंजों को अपने स्थान पर ही रखें. अब धीरे-धीरे शरीर को नीचे झुकाते हुए छाती और मस्तक को जमीन पर स्पर्श कराना चाहिए
छठी स्थिति
अब सांस को अंदर ही रोककर रखें तथा हाथ, एड़ियों व पंजों को अपने स्थान पर ही रखें. अब धीरे-धीरे शरीर को नीचे झुकाते हुए छाती और मस्तक को जमीन पर स्पर्श कराना चाहिए और अंदर रुकी हुई वायु को बाहर निकाल दें. इसके बाद सातवीं स्थिति का अभ्यास करें. फिर सांस अंदर खींचते हुए वायु को अंदर भर लें और सांस को अंदर ही रोककर छाती और सिर को ऊपर उठाकर हल्के से पीछे की ओर ले जाएं
सातवीं स्थिति
फिर सांस अंदर खींचते हुए वायु को अंदर भर लें और सांस को अंदर ही रोककर छाती और सिर को ऊपर उठाकर हल्के से पीछे की ओर ले जाएं और ऊपर देखने की कोशिश करें. इस क्रिया में सांस रुकी हुई ही रहनी चाहिए. इसके बाद आठवीं स्थिति का अभ्यास करें. अब सांस को बाहर छोड़ते हुए आसन में नितम्ब (हिप्स) और पीठ को ऊपर की ओर ले जाकर छाती और सिर को झुकाते हुए दोनों हाथों के बीच में ले आएं.
आठवीं स्थिति
अब सांस को बाहर छोड़ते हुए आसन में नितम्ब (हिप्स) और पीठ को ऊपर की ओर ले जाकर छाती और सिर को झुकाते हुए दोनों हाथों के बीच में ले आएं. आपके दोनों पैर नितंबों की सीध में होने चाहिए. ठोड़ी को छाती से छूने की कोशिश करें और पेट को जितना सम्भव हो अंदर खींचकर रखें. यह क्रिया करते समय सांस को बाहर निकाल दें. यह भी एक प्रकार का प्राणायाम ही है.
नौवीं स्थिति
इस आसन को करते समय पुन: वायु को अंदर खींचें और शरीर को तीसरी स्थिति में ले आएं. इस स्थिति में आने के बाद सांस को रोककर रखें. अब दोनों पैरों को दोनों हाथों के बीच में ले आएं और सिर को आकाश की ओर करके रखें. इसके बाद दसवीं स्थिति का अभ्यास करें. इसमें सांस को बाहर छोड़ते हुए अपने शरीर को दूसरी स्थिति की तरह बनाएं. आपकी दोनो हथेलियां दोनो पैरों के अंगूठे को छूती हुई होनी चाहिए.
दसवीं स्थिति
इसमें सांस को बाहर छोड़ते हुए अपने शरीर को दूसरी स्थिति की तरह बनाएं. आपकी दोनो हथेलियां दोनो पैरों के अंगूठे को छूती हुई होनी चाहिए. सिर को घुटनों से सटाकर रखें और अंदर की वायु को बाहर निकाल दें. इसके बाद ग्याहरवीं स्थिति का अभ्यास करें. अब पुन: फेफड़े में वायु को भरकर पहली स्थिति में सीधे खड़े हो जाएं. इस स्थिति में दोनों पैरों को मिलाकर रखें
ग्याहरवीं स्थिति
अब पुन: फेफड़े में वायु को भरकर पहली स्थिति में सीधे खड़े हो जाएं. इस स्थिति में दोनों पैरों को मिलाकर रखें और पेट को अंदर खींचकर छाती को बाहर निकाल लें. इस तरह इस आसन का कई बार अभ्यास कर सकते हैं. अब सांस बाहर छोड़ते हुए पहली वाली स्थिति की तरह नमस्कार मुद्रा में आ जाएं. शरीर को सीधा व तानकर रखें.
बारहवीं स्थिति
अब सांस बाहर छोड़ते हुए पहली वाली स्थिति की तरह नमस्कार मुद्रा में आ जाएं. शरीर को सीधा व तानकर रखें. इसके बाद दोनों हाथ को दोनों बगल में रखें और पूरे शरीर को आराम दें. इस प्रकार इन 12 क्रियाओं को करने से सूर्य नमस्कार आसन पूर्ण होता है।
सूर्य नमस्कार आसन की 10 स्थितियों से अलग-अलग लाभ प्राप्त होते हैं
पहली स्थिति पेट, पीठ, छाती, पैर और भुजाओं के लिए लाभकारी होती है.
दूसरी स्थिति में हथेलियों, हाथों, गर्दन, पीठ, पेट, आंतों, नितम्ब, पिण्डलियों, घुटनों और पैरों को लाभ मिलता है.
तीसरी स्थिति में पैरों व हाथों की तलहथियों, छाती, पीठ और गर्दन को लाभ पहुंचता है.
चौथी स्थिति में हाथ, पैरों के पंजों और गर्दन पर असर पड़ता है.
पांचवी स्थिति में बाहों और घुटनों पर बल पड़ता है और वह शक्तिशाली बनते हैं.
छठी स्थिति में भुजाओं, गर्दन, पेट, पीठ के स्नायुओं और घुटनों को बल मिलता है.
सातवीं स्थिति में हाथों, पैरों के पंजों, नितम्बों (हिप्स), भुजाओं, पिण्डलियों और कमर पर दबाव पड़ता है.
आठवीं स्थिति में हथेलियों, हाथों, गर्दन, पीठ, पेट, आंतों, नितम्ब (हिप्स), पिण्डलियों, घुटनों और पैरों पर बल पड़ता है.
नौवीं स्थिति में हाथों, पंजों, भुजाओं, घुटनों, गर्दन व पीठ पर बल पड़ता है.
दसवीं स्थिति में पीठ, छाती और भुजाओं पर दबाव पड़ता है तथा उस स्थान का स्नायुमण्डल में खिंचाव होता है. परिणामस्वरूप वह अंग शक्तिशाली व मजबूत बनता है.
सूर्य नमस्कार के साथ पढ़े जाने वाले मंत्र
विभिन्न स्थानों पर सूर्य नमस्कार के 12 मंत्रों (12 Surya Mantras With Name of Sun) का उच्चारण किया जाता है परन्तु वास्तविकता में सूर्यनमस्कार के 13 मंत्र होते है जो कि क्रमशः निम्नानुसार हैः-
- ॐ मित्राय नमः।
- ॐ रवये नमः।
- ॐ सूर्याय नमः।
- ॐ भानवे नमः।
- ॐ खगाय नमः।
- ॐ पूष्णे नमः।
- ॐ हिरण्यगर्भाय नमः।
- ॐ मरीचये नमः।
- ॐ आदित्याय नमः।
- ॐ सवित्रे नमः।
- ॐ अर्काय नमः।
- ॐ भास्कराय नमः।
- ॐ श्री सवितृसूर्यनारायणाय नमः।
आसन के अभ्यास से रोग में लाभ
- सूर्य नमस्कार आसन का अभ्यास करने से शरीर स्वस्थ व रोगमुक्त रहता है. इससे चेहरे पर चमक व रौनक रहती है.
- यह स्नायुमण्डल को शक्तिशाली बनाता है और ऊर्जा केन्द्र को ऊर्जावान बनाता है.
- इसके अभ्यास से मानसिक शांति व बुद्धि का विकास होता है तथा स्मरण शक्ति बढ़ती है.
- इस आसन को करने से शरीर में लचीलापन आता है तथा यह अन्य आसनों के अभ्यास में लाभकारी होता है.
- इससे सांस से सम्बंधित रोग, मोटापा, रीढ़ की हड्डी और जोड़ो का दर्द दूर होता है.
- इस आसन को करने से आमाशय, जिगर, गुर्दे तथा छोटी व बड़ी आंतों को बल मिलता है और इसके अभ्यास से कब्ज, बवासीर आदि रोग समाप्त होते हैं.
सावधानियां
वैसे तो सूर्य नमस्कार के अभ्यास के लिए उम्र का कोई संबंध नहीं है। बच्चे, युवा और बुजुर्ग सभी इसे कर सकते हैं। फिर भी इसकी कुछ सावधानियां भी है।
- शरीर में अधिक मादक या विषैले पदार्थ होने से सूर्य नमस्कार के अभ्यास के दौरान यदि बुखार की दशा उत्पन हो तो सूर्य नमस्कार का अभ्यास रोक देना चाहिए।
- बिना किसी थकान के अभ्यासी जितने चक्रों का अभ्यास कर सकता है उसे उतना ही करना चाहिए। शरीर पर व्यर्थ जोर न डाले।
- ध्यान रखिए महिलाओं को मासिक धर्म के दौरान और गर्भ के तीसरे महीने के बाद सूर्य नमस्कार का अभ्यास नहीं करना चाहिए।
- उच्च रक्तचाप, हृदय रोगी तथा अन्य रोगी सूर्य नमस्कार का अभ्यास योग्य विशेषज्ञ के मार्गदर्शन में करें।
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