बद्रीनाथ की ज्योतिषपीठ पर फिर से शंकराचार्य बनेंगे स्वरूपानंद सरस्वतीजी महाराज : 29 नवंबर को अभिषेक
हिंदु धर्म के चार पीठों में से एक ज्योतिषपीठ पर शंकराचार्य के तौर पर स्वामी स्वरूपानंदजी की नियुक्ति 29 नवंबर 2017 को की जाएगी। वे इस पीठ पर सर्वसम्मति से स्थान ग्रहण करेंगे। इलाहाबाद हाईकोर्ट के आदेश के बाद ज्योतिषपीठ में कोई भी शंकराचार्य नहीं था। हाईकोर्ट ने आदि शंकराचार्य द्वारा दी गई व्यवस्था की बात कहते हुए तीन महीने में ज्योतिषपीठ, बद्रीनाथ में नया शंकराचार्य नियुक्त करने का फैसला दिया था। हाईकोर्ट ने अखिल भारत धर्म महामण्डल व काशी विद्वत परिषद को योग्य सन्यासी ब्राह्मण को तीनों पीठों के शंकराचार्यों की मदद से नया शंकराचार्य घोषित करने का आदेश दिया था। कोर्ट ने कहा है कि इसमें 1941 की प्रक्रिया ही अपनाई जाए।
अब इस पीठ पर 29 नवंबर को विधि विधान और सभी संस्थाओं और शंकराचार्यों की सहमति से स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती जी का अभिषेक उनके परमहंसी आश्रम नरसिंहपुर, जबलपुर में किया जाएगा। इसके लिए अखिल भारत धर्म महामण्डल व काशी विद्वत परिषद के सभी सदस्य और अध्यक्ष और साथ ही काशी के कई विद्वान और पंडित पधार रहे है। पुरी और श्रंगेरी मठ के शंकराचार्यों ने पत्र देकर इस पद पर स्वामी स्वरूपानंद जी की नियुक्ति का समर्थन किया है। ये सारे पत्र इलाहाबाद हाईकोर्ट के रजिस्ट्रार को भेज दिए गए है।
परमहंसी आश्रम नरसिंहपुर में 29 नवंबर को 11-1 बजे तक होने वाले अभिषेक के आयोजन में हजारों लोग जुटेंगे। इसके लिए भारी इंतजाम किए गए। 7 दिसंबर 1973 को ज्योतिषपीठ पर स्वामी स्वरूपानंदजी को शंकराचार्य के पद पर बिठाया गया था। वे इस पीठ के 45वें शंकराचार्य थे। करपात्री जी महाराज की मौजूदगी में काशी में ये अभिषेक संपन्न हुआ था।
हाईकोर्ट में इस पद पर शंकराचार्य कौन होगा, को लेकर काफी समय से विवाद जारी था। इलाहाबाद की ही एक निचली अदालत ने पद पर दावा जताने वाले स्वामी वासुदेवानंद सरस्वती की याचिका पर फैसला दिया था कि वे इस पद से जुड़ी चीजों का इस्तेमाल नहीं कर सकते है। बाद में इलाहाबाद हाईकोर्ट ने पद पर दोनों दावेदारों को दावेदारी को निरस्त कर दिया और अगले तीन महीने में नए शंकराचार्य की नियुक्ति का आदेश दिया था। जिसके तहत अब नियुक्त संगठनों और शंकराचार्यों से विमर्श के बाद स्वामी स्वरूपानंदजी का अभिषेक फिर से हो रहा है।
अभिषेक की प्रक्रिया काफी लंबी होती है, और इसके लिए सभी तीर्थों से जल मंगवाएं जाते है। साथ ही वेदों की ऋचाओं के उद्घोष और मंत्रोच्चार से ये संपन्न होता है।