Post Image

तंत्र साहित्य: जानिए तांत्रिक साहित्य का परिचय,विशेषताएं और वर्गीकरण

भारतीय तंत्र साहित्य विशाल और विचित्र साहित्य है। यह प्राचीन भी है तथा व्यापक भी। वैदिक साहित्य से भी किसी किसी अंश में इसकी विशालता अधिक मानी जाती है। चरणाव्यूह नामक ग्रंथ से वैदिक साहित्य का थोड़ा  परिचय मिलता है, परंतु इसकी अपेक्षा हम लोगों को उपलब्ध वैदिक साहित्य एक प्रकार से साधारण मालूम पड़ता है।



तांत्रिक साहित्य का परिचय 

तंत्र साहित्य: जानिए तांत्रिक साहित्य का परिचय,विशेषताएं और वर्गीकरण

हालांकि तांत्रिक साहित्य का अति प्राचीन रूप लुप्त हो गया है। परंतु उसके विस्तार का जो परिचय मिलता है उससे अनुमान लगाया जा सकता है कि प्राचीन काल में यह वैदिक साहित्य से भी अधिक विशालता  और व्यापक था।

तंत्र’ तथा ‘आगम’ दोनों समानार्थक शब्द हैं। किसी स्थान में आगम शब्द के स्थान में ‘निगम’ शब्द का भी प्रयोग दिखाई देता है। फिर भी यह सच है कि तंत्र समझने के लिये आगम शब्द को प्रामाणिक रूप में व्यवहार में लाते थे।अगर हम अंग्रेजी शब्द रिविलेशन की बात करें तो यह आगम आगम प्राय: वही हैं।

लौकिक आप्तपुरूषों से अलौकिक आप्तपुरूषों का महत्व अधिक है, इसमें संदेह नहीं। वेद जैसे हिरणयगर्भ अथवा ब्रह्म के साथ संश्लिष्ट है उसी प्रकार तंत्र भी शिव और शक्ति के साथ संश्लिष्ट है। जैसे शिव के, वैसे ही शक्ति के भिन्न रूप हैं। भिन्न रूपों से विभिन्न प्रस्थानों के तंत्रो का आविर्भाव हुआ था। इसी प्रकार शैव तथा शाक्त तंत्र के अनुरूप वैष्णव तंत्र भी है।

पांचरात्र अथवा सात्वत, आगम इसी का नामांतर है।  वैष्ण्णव के सद्यश गणपति, और सौर आदि संप्रदायों में भी अपनी धारा के अनुसार आगम का प्रमार है। अहिर्बुध्न्य संहिता, की भूमिका में पांचरात्र आगम के विषय में एक उत्कृष्ट लेख है जिससे पता चलता है कि वैष्णव आगम का भी अति विशाल साहित्य है।

यह भी पढ़ें-मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने किया रागगीरी के सालाना कैलेंडर का विमोचन

तांत्रिक साहित्य की विशेषताएँ

वैसे तो तंत्र एक समांगी परिपाटी नहीं कही जा सकती किन्तु तांत्रिक साहित्य की प्रमुख विशेताओं पर ध्यान दें तो-

शिव एवं शक्ति प्रमुख अराध्य (देवता/देवी) हैं।

अधिकांशत: शिव और पार्वती के संवाद के रूप में है।

बातों को रहस्यमय एवं लाक्षणिक ढ़ंग से कहा गया है।

तंत्र की तीन प्रमुख धाराएं हैं – दक्षिण, वाम और मध्यम।

कर्मकाण्डों की प्रधानता है तथा इसके अधिकांश ग्रन्थ एक प्रकार से ‘व्यावहार-पुस्तिका’ (प्रैक्टिकल मैनुअल) जैसे ग्रन्थ हैं।

तंत्र साहित्य का वर्गीकरण

मूल तंत्र साहित्य सामान्यत: तीन भागों में विभक्त हो सकता है-

सबसे पहले आदि आगम, अथवा उपागम विभाग

उसके बाद आगमों का एक द्वितीय विभाग जिसका प्रामाण्य प्राय: प्रथम विभाग के ही अनुरूप है। इस प्रकार के ग्रंथों की संख्या अति विशाल है।



इसके अनंतर विभिन्न ऋषियों आदि के द्वारा उपदिष्ट भिन्न-भिन्न ग्रंथ भी हैं। ये सब प्रामाणिक ज्ञानधारा का आश्रय लेकर ज्ञान, योग, चर्या तथा क्रिया के विषय में बहुसंख्यक प्रकरण ग्रंथ रचित हुए हैं। केवल इतना ही नहीं, तत्संबंधी उपासना, कर्मकांड और यहाँ तक कि लौकिक प्रयोग साधन और प्रयोग विज्ञान के विषय में अनेक ग्रंथ तंत्र साहित्य के अंतर्गत हैं।

यह भी पढ़ें-नवरात्रि स्वास्थ्य: नौ दिन में अपनाएं ये नौ कदम, बनाएं अपनी हेल्थ जर्नी आसान

यह भी पढ़ें-आयुष क्वाथ काढ़ा: जानिए कैसे काम करता है यह काढ़ा

सोर्स-तंत्रतत्व,स्टडीज इन तंत्राज खंड, विकिपीडिया 

[video_ads]
[video_ads2]
You can send your stories/happenings here:info@religionworld.in

Post By Shweta