तारातरा मठ में संपन्न हुई मूर्ति प्राण प्रतिष्ठा और भव्य भण्डारा महोत्सव
बाड़मेर के प्रसिद्ध श्री तारातरा मठ में मूर्ति प्राण प्रतिष्ठा और भण्डारा महोत्सव बड़ी ही भव्यता से संपन्न हुआ। हर दिन विशाल भंडारे के साथ साथ देश के कई पावन संतों की मौजूदगी में हर दिन लाखों भक्तों ने इस महाआयोजन का आनंद लिया। राजस्थान की मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे ने तारातरा मठ के महान संत श्री मोहनपुरी जी महाराज की मूर्ति का अनावरण किया।
कार्यक्रम में देश के महान संतों ने भी शिरकत की। जूना अखाड़ा के आचार्य महामंडलेश्वर स्वामी अवधेशानंद गिरी जी महाराज और स्वामी रामदेव जी महाराज ने प्राण प्रतिष्ठा और भण्डारा महोत्सव में हिस्सा लिया।
सत्संग ही समाधान कारक है।तारातरा मठ बाड़मेर राजस्थान के आध्यात्मिक महोत्सव में पूज्य @yogrishiramdev के साथ सम्मिलित होकर आनन्द-अनुभूति हुई । pic.twitter.com/L2zDdOLvpW
— Swami Avdheshanand (@AvdheshanandG) February 16, 2018
हमारे भारत के सन्यास परंपरा के गौरव, ऋषि सत्ता के मूर्तरूप आचार्य @AvdheshanandG जी के साथ तारातर मठ, बाड़मेर, राजस्थान में एक लाख से भी अधिक लोगों को धर्म दीक्षा दी pic.twitter.com/gC93S2fcz1
— स्वामी रामदेव (@yogrishiramdev) February 16, 2018
तारातरा गांव की कथा
सौजन्य – पाञ्चजन्य
बाड़मेर जिला मुख्यालय से ही 30 किलोमीटर दक्षिण-पश्चिम में स्थित है तारातरा गांव। बताते हैं कि लगभग 250 साल पूर्व जैतपुरी महाराज तारातरा गांव की पहाड़ियों में तपस्या करते थे। जिस गुफा में ये संत तपस्या करते थे उसके बाहर एक छोटा सा जल कुंड था। जहां गांव के लोग अपने मवेशियों को जल पिलाने लाते थे। एक दिन एक भील चांदाराम शिकार करते हुए जल की तलाश में संत की गुफा के बाहर पहुंचा। जब संत ने उसे देखा तो पूछा कि तुम कौन हो और क्या करते हो? चांदाराम भील ने बताया कि मैं भील हूं और पशु-पक्षियों का शिकार करता हूं। संत ने उस भील को उपदेश दिया और कहा कि पाप मत करो, जीव हत्या महापाप है। संत की मधुर वाणी सुनकर उस भील का मन परिवर्तित हो गया और उसने वह घृणित कार्य छोड़ दिया। उसके घर में संपन्नता का वास हुआ। भील की संपन्नता को देख गांव में चर्चा होने लगी। जब गांव वालों ने भील से अचानक मिली समृद्धि के बारे मे पूछा तो उसने पहाड़ियों में बसे जैतपुरी महाराज का नाम बताया और उनके द्वारा दिया उपदेश कह सुनाया। भील के मुंह से जैतपुरी महाराज का गुणगान सुनकर गांव के लोगों का उनके पास आना-जाना ज्यादा ही हो गया। भील ने महाराज को कहा कि लोगों का आवागमन अब अधिक हो गया है। आप पहाड़ियों से तलहटी में विराजें तो सभी को आपका आशीर्वाद मिलेगा। यह सुनकर संत ने हां भर दी। भील एक स्थान पर एक कुटिया बनाता, किन्तु कुटिया को कोई रात्रि में नष्ट कर देता। यह तीन-चार बार हुआ तो भील ने जैतपुरी महाराज को सारी बात बताई। महाराज ने रात्रि में चौकीदारी करके देखा। रात्रि में गौमऋषि वहां प्रकट हुए और उन्होंने जैतपुरी महाराज को कहा कि आप पिछले जन्म में एक योगी थे। आपकी तपस्या का स्थान यह नहीं है। आपका स्थान इस स्थान से 3 किलोमीटर दक्षिण दिशा में गायों व बछड़ों के एक बाड़े के पास है। वहां लगभग 3 फीट गड्ढा खोदने पर आपको आपका साधना स्थल मिलेगा। यह कह कर ऋषि चले गए और सुबह लोगों के सहयोग से वहां की खुदाई की तो वहां जले कोयलों एवं राख के कण मिले। उसी स्थान पर आज के तारामठ की स्थापना हुई। मठ में आज भी अखण्ड अग्नि प्रज्ज्वलित रहती है और उसे राजस्थानी भाषा में “धूणा” कहते हैं। इस मठ ने समरसता का संदेश गुंजाया है। भील चांदाराम की मृत्यु के बाद उसका भी “धूणा” महाराज जैतपुरी के धूणे के पास बनाया गया। सभी वर्ग के लोगों का इस धूणे पर आकर शीश झुकाना और अपनी समस्याओं से मुक्ति पाने की परम्परा आज भी कायम है। जैतपुरी महाराज के ब्राह्मलीन के बाद उनके शिष्य श्यामपुरी, जो बीकानेर राजपरिवार से थे, ने उनकी साधना आगे बढ़ाई। श्यामपुरी जी के बाद विजयपुरी, तेजपुरी एवं धर्मपुरी ने तारातरा मठ को पवित्र तप:स्थली बनाया। धर्मपुरी जी के शिष्य, जो वर्तमान तारातरा मठ के महंत हैं, वे हैं मोहनपुरी जी। मोहनपुरी जी ने तारातरा मठ का संपूर्ण विकास कराया है। गिरनार, आबू, काशी एवं अनेक स्थानों पर रहते हुए मोहनपुरी जी ने अपना अध्ययन पूर्ण किया। तारातरा मठ का विकास भक्तों के चढ़ावे से आरंभ किया गया था। मोहनपुरी जी ने अपने शिष्यों प्रतापपुरी, जगराजपुरी और जितेन्द्र देव को हिन्दू धर्म प्रचार, गो सेवा एवं मानव परोपकार के लिए कार्य सौंपा है। तारातरा मठ की ओर से फसल खराब होने वाले वर्ष में गरीब किसानों की पुत्रियों के विवाह तक का कार्य सम्पन्न किया जाता है। बाड़मेर में एक विद्यालय की स्थापना की गई है जिसका नाम मोहन बाल निकेतन रखा गया है। वहां प्रारंभिक से माध्यमिक कक्षा तक की शिक्षा दी जाती है। इस मठ द्वारा जिला मुख्यालय से 30 किलोमीटर दूर सियाणी गांव में भी एक विद्यालय बनवाया गया है। जहां गांव के बाल-बालिकाएं शिक्षा ग्रहण करते हैं। मोहनपुरी एवं प्रतापपुरी जी ने जिला मुख्यालय से 3 किलोमीटर दूर लंगेरा गांव में एक अन्य विद्यालय आरंभ कराया और बाड़मेर-जोधपुर सीमा पर स्थित कल्याणपुर गांव में भी एक विद्यालय का निर्माण करवाया है। श्री मोहन गोशाला के नाम से एक विशाल गोशाला स्थापित की, जिसमें इस वक्त 450 गायों की सेवा हो रही है। गो सेवा के साथ गोवध रोकने के लिए सड़कों पर भी उतरे।
सौजन्य – पाञ्चजन्य