आदिवासी महाकुंभ में जुटे देशभर के श्रद्धालु: त्रिवेणी संगम में आस्था की डुबकी
राजस्थान के डूंगरपुर जिले में स्थित बेणेश्वर धाम प्राकृतिक सौंदर्य और पर्यटन का केंद्र तो है ही साथ ही इस धरा की एक और खास पहचान है। हर साल यहां लगने वाले बेणेश्वर मेला दुनियाभर में आदिवासियों के महाकुंभ नाम से प्रसिद्ध है।
माघ पूर्णिमा पर संगम में महास्नान
जाखम, माही और सोम नदियों के संगम पर स्थित होने की वजह से बेणेश्वर को त्रिवेणी संगम कहा जाता है। बेणेश्वर धाम को वागड़ प्रयाग और वागड़ वृंदावन नाम से भी जाना जाता है।
माघ पूर्णिमा पर श्रद्धालु संगम में स्नान कर पुण्य लाभ लेते हैं। साथ ही अपने पूर्वजों की अस्थियां विसर्जन, तर्पण और मुंडन जैसे कार्य भी संपन्न करते हैं।
माघ शुक्ल एकादशी को यह मेला शुरू होता है जो माघ पूर्णिमा के दिन परवान पर होता है। बुधवार को माघ पूर्णिमा पर राजस्थान के साथ ही महाराष्ट्र, मध्यप्रदेश और गुजरात से पहुंचे लाखों श्रद्धालुओं ने पवित्र स्नान का लाभ उठाया।
मेले में बिखरते हैं आदिवासी संस्कृति के रंग
उत्तर भारत में आदिवासियों के इस सबसे बड़े आयोजन में समाज की विशेष धार्मिक मान्यताओं और संस्कृति की झलक देखने को मिलती है। मेले में लोकवाद्य तानपुरे, तंबूरे, ढोल, मंजीरों और हारमोनियम की लय पर भजनों के सुर हर जगह सुनाई देते हैं।
वीडियो – मेले की झलक…
धार्मिक आयोजनों से सराबोर आदिवासी कुंभ
मेले में अलग–अलग संप्रदायों, मठों और अखाड़ों के संत–महंत शामिल होते हैं। मेले के दौरान श्रद्धालु यहां स्थित जगतपिता ब्रह्मा, वेदमाता, बेणेश्वर शिवालय और राधाकृष्ण मंदिर के दर्शनों का लाभ भी लेते हैं। बेणेश्वरधाम को संत मावजी की लीलास्थली भी माना जाता है। संत मावजी को श्रद्धालु भगवान श्रीकृष्ण के अवतार के रूप में पूजते हैं। मेले में संत मावजी के गुणगान के साथ ही मीरा, कबीर, गुरु गोविंद और कई अन्य संतों, लोक देवताओं और भक्ति रस के कवियों का बखान भी होता है।
मेले की खास परंपराएं
मेले के दौरान वागड़ क्षेत्र में जगह-जगह रास लीलाओं का आयोजन होता है जिनके प्रति श्रद्धालुओं का उत्साह देखते ही बनता है। अमृतमयी है सोम नदी- मान्यता है कि संगम की तीन नदियों में शामिल सोम नदी अगर सबसे पहले अपने पूरे वेग के बहती है तो उस वर्ष फसल अच्छी होती है। वहीं माही नदी में पहले वेग होने को अच्छा नहीं माना जाता।
अमृतमयी है सोम नदी
मान्यता है कि संगम की तीन नदियों में शामिल सोम नदी अगर सबसे पहले अपने पूरे वेग के बहती है तो उस वर्ष फसल अच्छी होती है। वहीं माही नदी में पहले वेग होने को अच्छा नहीं माना जाता।
आदिवासी पुजारी करते हैं पूजा
यहां स्थित राधा-कृष्ण मंदिर में मेले के दौरान साबला का पुजारी पूजा कार्य करता है। बाकी दिनों में आदिवासी पुजारी ही पूजा कार्य करता है।
माघ शुक्ल एकादशी से शुरू होने वाला यह मेला पंचमी पर पूर्ण होगा। पूर्णिमा के दिन मेले में श्रद्धालुओं की भारी भीड़ रहती है और मेला परवान पर होता है।
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रिपोर्ट – देवेन्द्र शर्मा
sharmadev09@gmail.com